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हरियाणा के इस गांव में 70 दलित परिवार 4 माह से हैं बहिष्कृत—गलती क्या? उच्च जाति के उम्मीदवार को वोट नहीं दिया!

हिसार- हरियाणा के हिसार जिले के हांसी तहसील के मदनहेड़ी गांव में दलित परिवारों के लिए नाई बाल नहीं काटता—दूधवाला दूध नहीं देता—पानीवाला पानी नहीं देता—किराने की दुकान सामान नहीं देती—चक्कीवाला आटा नहीं पीसता। यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि वाल्मीकि समुदाय के 70 दलित परिवारों की वास्तविक त्रासदी है, जो पिछले चार महीनों से इस जाट बहुल गांव में क्रूर सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे हैं।

इन परिवारों की “गलती”? उन्होंने सितंबर 2024 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनी मर्जी से वोट दिया, न कि जाट समुदाय के पसंदीदा उम्मीदवार को। जाट समुदाय के करीब 1500 घरों वाले इस गांव में वाल्मीकि समुदाय के मात्र 70-80 घर हैं, और यह बहिष्कार उनकी जिंदगी को नरक बना चुका है। दूध, किराना, पानी, और रोज़गार से वंचित इन परिवारों को 6-7 किलोमीटर दूर हांसी, महम, या सामन जैसे कस्बों और गांवों से अपनी ज़रूरतें पूरी करनी पड़ रही हैं। यह कहानी जातिगत भेदभाव, खाप पंचायत की तानाशाही, और दबाव की उन रणनीतियों की है, जो इन परिवारों को कानूनी लड़ाई छोड़ने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रही हैं।

दलित अधिकार कार्यकर्ता और वकील रजत कलसान ने द मूकनायक को बताया, “यह विवाद हरियाणा विधानसभा चुनाव से शुरू हुआ, जब जस्सी पेठवाल नारनौंद सीट से चुनाव लड़ रहे थे।

ये है विवाद की जड़

विवाद की जड़ सितंबर 2024 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में है। मदनहेड़ी गांव नारनौंद विधानसभा क्षेत्र में आता है, जहां से जसविंदर उर्फ जस्सी पेठवाल चुनाव लड़ रहे थे। जस्सी ने गांव की एक जाट लड़की से शादी की थी, जिसके कारण जाट समुदाय उन्हें गांव का “दामाद” मानकर सभी से उनके पक्ष में वोट देने का दबाव बना रहा था। लेकिन वाल्मीकि समुदाय के युवा रविंद्र पुत्र ऋषिराज ने इस दबाव को ठुकराते हुए कहा कि वह अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट देगा। इस बात से नाराज़ मोहन पुत्र ओमप्रकाश, अजीत उर्फ अजय पुत्र अजमेर, सज्जन, रामभगत उर्फ कुकु पुत्र ओमप्रकाश, और अजमेर की पत्नी संतोष ने रविंद्र पर लाठी, डंडों, और गंडासे से हमला कर दिया। रविंद्र ने इस हमले के खिलाफ बास थाने में मुकदमा नंबर 275/24 दर्ज करवाया, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 115(2), 238(सी), 3(5), और अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3 के तहत मामला दर्ज हुआ। यह मामला अब हिसार की जी.डी. मित्तल की अदालत में विचाराधीन है, और आगामी पेशी में गवाहियां होनी हैं।

कलसान बताते हैं, "SC/ST एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज होने से जाट समुदाय नाराज़ हो गया और परिवार पर मामला विथड्रा करने के दबाव बनाने लगे, उन्होने इनकार किया तो आरोपियों ने खाप पंचायत के ज़रिए 70 दलित परिवारों का बहिष्कार शुरू कर दिया। यह बहिष्कार पिछले चार महीनों से जारी है, और अब जब मामला गवाही के चरण में पहुंचा है, तो दबाव बढ़ाने के लिए नए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।”

सितबर 2024 में मुकदमा दर्ज होने के बाद जाट समुदाय में रोष फैल गया। करीब 20 दिन बाद, जनवरी 2025 में, गांव की नई चौपाल में खाप पंचायत बुलाई गई। इस पंचायत में सरपंच प्रतिनिधि प्रदीप पूनिया, मोहन पुत्र ओमप्रकाश, सज्जन पुत्र छाजू, सज्जन पुत्र उदय, मंदीप मोर पुत्र देशराज, नरेंद्र उर्फ बुल्ली पुत्र धूपा, अंकित पुत्र आनंद, और अन्य जाट समुदाय के लोग शामिल थे। पंचायत में मोहन, प्रदीप पूनिया, और संदीप मोर ने ऐलान किया कि अगर वाल्मीकि समुदाय रविंद्र का मुकदमा वापस नहीं लेता, तो उनका सामाजिक बहिष्कार होगा। इसके बाद, पूरे जाट समुदाय ने मिलकर इन 70 परिवारों का “हुक्का-पानी” बंद कर दिया। गांव के दुकानदारों ने किराना सामान देना बंद कर दिया। सुनिल, जिसकी बस स्टैंड पर किराने की दुकान है, ने रविंद्र, नवीन पुत्र चंदा, और सागर पुत्र कुलदीप सहित कई लोगों को सामान देने से मना कर दिया। सुनिल की पत्नी ने बहिष्कार का हवाला देते हुए सामान देने से इनकार किया।

बहिष्कार का असर रोज़गार पर भी

सिंघवा गांव का दूधवाला अजमेर, जो दलित मोहल्ले में दूध बेचने आता था, ने नामज़द आरोपियों के कहने पर दूध देना बंद कर दिया। जितेंद्र, जो गांव में पानी के कैंपर सप्लाई करता है, ने भी दलित परिवारों को पानी देना बंद कर दिया। हरिबिशन, जिसकी गांव में आटे की चक्की है, ने अजय पुत्र मदनलाल सहित वाल्मीकि समुदाय के लोगों को आटा देने से मना कर दिया। गांव के नाई और डॉक्टर ने भी अपनी सेवाएं देना बंद कर दिया। नतीजतन, इन परिवारों को रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए दूर के कस्बों का रुख करना पड़ रहा है। पानी जैसी बुनियादी ज़रूरत के लिए उन्हें 6-7 किलोमीटर दूर सामन गांव जाना पड़ता है।

इस बहिष्कार का असर रोज़गार पर भी पड़ा। बलवान पूनिया ने नरेंद्र, अभिमन्यु, और पवन को अपने घर पर रंग-पेंट का काम देने से मना कर दिया। सुरेंद्र और भूप सिंह पुत्र होशियार सिंह ने महिपाल पुत्र जगदीश को चेजी के काम से हटा दिया। इन परिवारों के लिए यह बहिष्कार केवल सामाजिक नहीं, बल्कि आर्थिक संकट भी बन गया है। दबाव बढ़ाने के लिए, नामज़द आरोपियों ने कथित तौर पर कुछ वाल्मीकि समुदाय के लोगों को डरा-धमकाकर खाली कागजों पर अंगूठे और हस्ताक्षर लिए। नरेंद्र उर्फ बुल्ली ने इन कागजों का इस्तेमाल फर्जी राजीनामा तैयार करने में किया, ताकि मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाया जा सके। लेकिन दलित परिवारों ने इस दबाव को ठुकरा दिया, जिससे बहिष्कार और सख्त हो गया।

कुछ काम ना आया तो अब घरों से बेदखली का नया हथकंडा

वकील रजत कलसान ने बताया कि मामला अदालत में गवाही के चरण में पहुंचने के साथ ही जाट समुदाय और पंचायत ने दबाव बढ़ाने के लिए नया हथकंडा अपनाया। वाल्मीकि परिवारों को पंचायत की ज़मीन पर अतिक्रमण का नोटिस थमा दिया गया, जिसमें उन्हें अपने घर खाली करने को कहा गया। कलसान के अनुसार, ये परिवार पिछले 100 वर्षों से इन घरों में रह रहे हैं। गांव में जाट और अन्य समुदायों के लोग भी पंचायत की ज़मीन पर बने घरों में रहते हैं, जिनके पास बिजली, पानी, और पक्की सड़कें हैं। लेकिन केवल दलित परिवारों को निशाना बनाकर नोटिस जारी किया गया, ताकि उन्हें मुकदमा वापस लेने के लिए मजबूर किया जा सके।

दलित परिवारों ने आखिर उठायी आवाज, सामाजिक बहिष्कार की दर्ज हुई FIR

चार महीने तक डर और दबाव में जीने के बाद, वाल्मीकि समुदाय ने आखिरकार आवाज़ उठाई। हवासिंह पुत्र शीशूराम, जयपाल पुत्र जयकुमार, जगबीर पुत्र टेकराम, धर्मबीर पुत्र शोभाराम, सेवा पुत्र हरज्ञान, रविंद्र पुत्र ऋषिराज, आत्मा पुत्र उमेद, जगदीश पुत्र टेकराम, और मदन पुत्र भरथु ने पुलिस अधीक्षक, हांसी को शिकायत दी। इस शिकायत में प्रदीप पूनिया (सरपंच प्रतिनिधि), सज्जन पुत्र छाजू, सज्जन पुत्र उदय, मंदीप मोर पुत्र देशराज, मोहन पुत्र ओमप्रकाश, नरेंद्र उर्फ बुल्ली पुत्र धूपा, अंकित पुत्र आनंद, और अन्य अज्ञात जाट समुदाय के लोगों के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार का आरोप लगाया गया। 23 अप्रैल 2025 को बास थाने में मुकदमा नंबर 73 दर्ज किया गया। यह मुकदमा अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(zc) के तहत दर्ज किया गया, जिसमें सामाजिक बहिष्कार को अपराध माना गया है। मुकदमा SI सत्यवान की हाज़री में दर्ज किया गया, और इसकी जांच के लिए प्रवेक्षण अधिकारी, बास थाने को सौंपा गया है।

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