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उच्च शिक्षण संस्थानों में जातीय भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट ने UGC को मसौदा विनियमों को अंतिम रूप देने की दी अनुमति

नई दिल्ली: उच्च शिक्षण संस्थानों (HEIs) में जातीय भेदभाव के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को यूजीसी मसौदा विनियम, 2025 को अंतिम रूप देने और अधिसूचित करने की अनुमति दे दी। ये प्रस्तावित विनियम कैंपस में जातीय भेदभाव सहित कई गंभीर मुद्दों से निपटने के उद्देश्य से तैयार किए जा रहे हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह आदेश देते हुए कहा कि इससे पूर्व अमित कुमार बनाम भारत सरकार मामले में कोर्ट ने उच्च शिक्षण संस्थानों में आत्महत्याओं से जुड़े मुद्दों की जांच के लिए एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स गठित की थी।

कोर्ट ने स्पष्ट किया:

  1. यूजीसी को मसौदा विनियमों को अंतिम रूप देने और अधिसूचित करने की अनुमति है।

  2. अमित कुमार मामले में गठित टास्क फोर्स द्वारा की गई सिफारिशों के अतिरिक्त ये विनियम प्रभावी होंगे।

  3. जब तक टास्क फोर्स की सिफारिशों पर विचार या उनका क्रियान्वयन नहीं हो जाता, तब तक याचिकाकर्ता या कोई अन्य जनहितैषी व्यक्ति विनियमों में उपयुक्त संशोधन, विलोपन या समावेशन के सुझाव प्रस्तुत कर सकते हैं।

कोर्ट ने कहा कि “ऐसे सुझावों पर अमित कुमार मामले में टास्क फोर्स को सौंपी गई जिम्मेदारी के तहत विचार किया जाएगा।”

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुईं, ने बताया कि याचिकाकर्ताओं ने यूजीसी को पहले ही अपने सुझाव सौंप दिए हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि उसे “कोई संदेह नहीं” है कि यूजीसी मसौदा विनियम अधिसूचित करने से पूर्व विभिन्न पक्षों द्वारा दिए गए सुझावों पर विचार करेगा। कोर्ट ने टास्क फोर्स के समक्ष भी सुझाव देने की अनुमति याचिकाकर्ताओं को दी।

जयसिंह ने इस बात पर भी चिंता जताई कि प्रस्तावित मसौदा विनियमों में रैगिंग, जातीय भेदभाव और यौन उत्पीड़न जैसे मुद्दों को एक साथ मिला दिया गया है, जबकि इन सभी के लिए अलग-अलग कानूनी ढांचे मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि इससे प्रशासनिक जटिलताएं बढ़ेंगी और जातीय भेदभाव से संबंधित विशिष्ट सुरक्षा प्रावधान कमजोर हो सकते हैं।

उन्होंने कहा कि पुराने विनियमों में जातीय भेदभाव की स्पष्ट परिभाषाएं थीं—जैसे आरक्षण से इनकार, जाति प्रमाण पत्र देने से इनकार, अंक काटने जैसे व्यवहार—जो नए प्रस्तावित विनियमों में नहीं हैं। अतः उन्होंने मांग की कि जब तक टास्क फोर्स की सिफारिशें नहीं आ जातीं, तब तक नए विनियमों को लागू न किया जाए।

सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस याचिका का विरोध करते हुए कहा कि अमित कुमार मामले में शुरू की गई प्रक्रिया को रोका नहीं जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि मसौदा विनियमों को अंतिम रूप देने के लिए उसी दिन एक बैठक आयोजित की गई है और सभी पक्षों की टिप्पणियाँ प्राप्त हो चुकी हैं।

इसके बाद न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि यदि ये विनियम अधिसूचित हो जाते हैं, तो टास्क फोर्स इन्हें भी जांच सकता है और यदि आवश्यक हुआ तो इनमें सुधार की सिफारिश कर सकता है। उन्होंने कहा, “ऐसे कई लोग हैं जिनकी आवाज़ नहीं सुनी जाती, और ये विनियम उन्हें सुरक्षा और सम्मान प्रदान कर सकते हैं।” इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर आवेदन को निस्तारित कर दिया गया।

पूरा मामला

यह जनहित याचिका 2019 में रोहित वेमुला और पायल तड़वी की माताओं—राधिका वेमुला और अबेदा सलीम तड़वी—द्वारा दाखिल की गई थी। रोहित वेमुला, हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र, ने 17 जनवरी 2016 को आत्महत्या कर ली थी। पायल तड़वी, जो एक आदिवासी छात्रा थीं और मुंबई के टीएन टोपिवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज में पढ़ती थीं, ने 22 मई 2019 को आत्महत्या कर ली थी। दोनों मामलों में जातीय भेदभाव के आरोप लगे थे।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय के विद्यार्थियों और शिक्षकों के खिलाफ जातीय भेदभाव व्यापक रूप से फैला हुआ है, और संस्थाएं इस पर ध्यान नहीं देतीं। मौजूदा नियमों का पालन नहीं होता और उनमें स्वतंत्र व निष्पक्ष शिकायत निवारण तंत्र की कमी है। साथ ही, ऐसे संस्थानों पर दंडात्मक कार्रवाई का भी कोई प्रावधान नहीं है जो जातीय भेदभाव को रोकने में विफल रहते हैं।

याचिका में यह भी मांग की गई है कि सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में समान अवसर प्रकोष्ठ (Equal Opportunity Cells) गठित किए जाएं, जिनमें अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय के सदस्य, सामाजिक कार्यकर्ता या एनजीओ प्रतिनिधि शामिल हों ताकि प्रक्रिया निष्पक्ष और प्रभावी हो।

एक पूर्व सुनवाई में केंद्र सरकार ने सूचित किया था कि यूजीसी ने संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए मसौदा विनियम तैयार कर लिए हैं। कोर्ट ने तब कहा था कि वह इस दिशा में “मजबूत और प्रभावी व्यवस्था” सुनिश्चित करना चाहता है ताकि “वास्तव में” जातीय भेदभाव जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं पर रोक लगाई जा सके।

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