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दलित प्रोफेसर के साथ जातिगत उत्पीड़न के आरोपी IIM बैंगलोर निदेशक का विवादित कदम: बहुजन कार्यकर्ताओं ने कहा —क्या मज़ाक चल रहा है?

बेंगलुरु: IIM बेंगलुरु (IIMB) के निदेशक प्रोफेसर ऋषिकेश टी. कृष्णन पर जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा देने और संविधान व IIM संशोधन अधिनियम के प्रावधानों की अवहेलना करने के आरोप लग रहे हैं। बहुजन कार्यकर्ताओं ने उन पर गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें तुरंत हटाने की मांग की है। उनका कहना है कि निदेशक लंबे समय से भेदभावपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं और हाल की घटनाओं ने इसे और स्पष्ट कर दिया है।

कार्यकर्ताओं का कहना है कि हाल ही में प्रोफेसर कृष्णन ने जातिगत भेदभाव के आरोप झेल रहे दो प्रोफेसरों — चेतन सुब्रमण्यम और श्रीलता जोन्नालागेड्डा — को IIMB बोर्ड का सदस्य नामित किया है। टी. कृष्णन सहित इन दोनों के विरूद्ध एफआईआर (नं. 0467/2024) दर्ज है जिसमे आईआईएम के पांच अन्य शिक्षक भी नामजद हैं।

सूत्रों के मुताबिक, चेतन सुब्रमण्यम और श्रीलता जोन्नालागेड्डा की बोर्ड में नियुक्ति 26 दिसंबर को वोटिंग के बाद पक्की मानी जा रही है।

बहुजन अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा, "जब खुद निदेशक एफआईआर में आरोपी हैं, तो वो अन्य आरोपियों को इतने महत्वपूर्ण पदों पर कैसे नामित कर सकते हैं? क्या यह नैतिक है?"

गौरतलब है कि IIM संशोधन अधिनियम (IIM Amendment Act) के अनुसार, बोर्ड में शामिल सदस्यों का साफ-सुथरा रिकॉर्ड होना चाहिए और वे किसी भी आपराधिक मामले में दोषी/आरोपी नहीं हो सकते।

पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, निदेशक कृष्णन और 7 अन्य प्रोफेसरों के खिलाफ जातिगत अत्याचार और भेदभाव के आरोप में केस दर्ज है। इन पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 2014 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 की कई धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज है।

आंतरिक सूत्रों ने बताया कि बोर्ड में इन प्रोफेसरों को नामित करने का निर्णय कई लोगों के लिए चौंकाने वाला था। उनका कहना है कि यह फैसला रणनीतिक है। चूंकि निदेशक बोर्ड में कुछ महीने ही है, वह अपने करीबी सहयोगियों को बोर्ड में रखना चाहते हैं ताकि वे अगले 2-3 वर्षों तक वहां बने रहें और जातिगत भेदभाव के मामलों में उनका बचाव कर सके।

प्रमुख जाति-विरोधी कार्यकर्ता और अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर के सदस्य अनिल एच वागड़े ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा, "आईआईएम का बोर्ड भारत के माननीय राष्ट्रपति, जो विजिटर/चांसलर हैं, के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्णय लेने वाला अधिकार है। बोर्ड छात्रों, कर्मचारियों और शिक्षकों से जुड़े रोज के फैसलों के लिए जिम्मेदार है। निदेशक ऋषिकेश टी कृष्णन का यह फैसला दबे-कुचले और हाशिए पर पड़े समुदायों, छात्रों और कर्मचारियों पर होने वाले अत्याचारों को बढ़ावा देने वाला साबित हो सकता है , जो समाज के लिए बहुत चिंता की बात है।"

उन्होंने आगे कहा, "यह पहली बार नहीं है जब आईआईएम बैंगलोर के निदेशक ने जांच के घेरे में आए प्रोफेसर को बढ़ावा दिया है। प्रोफेसर चेतन को आरबीआई चेयर प्रोफेसर के पद पर तब बढ़ावा दिया गया जब उनके खिलाफ जाति भेदभाव का मामला लंबित था और अभी भी जांच चल रही है।"

आरोपियों के खिलाफ जातिगत उत्पीडन के आरोपों की पुष्टि एक आंतरिक डीसीआरई जांच में हुई थी। इसके बावजूद, प्रोफेसर कृष्णन ने उनकी नियुक्ति की सिफारिश की, जिससे भारतीय संविधान द्वारा अनिवार्य समानता और न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठ रहे हैं।

भेदभाव का इतिहास: आईआईएम इंदौर में हुआ ऐसा वाक्या

डॉ. कृष्णन से जुड़ा विवाद नया नहीं है। आईआईएम इंदौर के निदेशक के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, हाशिए के समुदाय की एक छात्रा के लिए 'अनुकूल' माहौल नहीं होने के कारण संस्थान राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) की जांच के घेरे में आया।

यह मामला सक्षिका राघव का था, जो एक अनुसूचित जाति की छात्रा थीं और 2012 में आईआईएम इंदौर के पांच साल के एकीकृत प्रबंधन कार्यक्रम (आईपीएम) में दाखिला लिया था।

तैराकी और भगवद गीता जैसे गैर-प्रबंधन विषयों में कमजोर प्रदर्शन के कारण राघव का सीजीपीए जरूरी अंकों से नीचे गिर गया। उससे कहा गया कि वे या तो पहला साल दोबारा करें या फिर कोर्स छोड़ दें। राघव ने कोर्स छोड़ने का फैसला किया और एनसीएससी में शिकायत दर्ज की। उन्होंने आरोप लगाया कि संस्थान ने उनकी पढ़ाई के लिए अनुकूल माहौल नहीं दिया। उन्होंने यह भी कहा कि दाखिले के समय आईआईएम इंदौर ने डिग्री देने की अपनी स्थिति के बारे में उन्हें गुमराह किया।

2015 में, एनसीएससी सदस्य राजू परमार ने राघव के पक्ष में फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि संस्थान ने सहायक माहौल नहीं बनाया, जिसकी वजह से उनका प्रदर्शन कमजोर रहा। आयोग ने आईआईएम इंदौर को उनकी पहले साल की फीस लौटाने का आदेश दिया। आयोग ने कहा कि अनुकूल माहौल न होने की वजह से ही उन्हें कोर्स छोड़ना पड़ा।

प्रोफेसर दीपक मालघन ने जनवरी में लिखे एक पत्र में IIMB में विविधता और समावेशन पर गभीर सवाल उठाये जिसके बाद उन्हें पदावनत कर दिया गया.

एक खुला पत्र जिसमें IIMB में विविधता और समावेशन पर उठे सवाल

17 जनवरी 2024 को, आईआईएम बैंगलोर के प्रोफेसर दीपक मालघन ने रोहित वेमुला की पुण्यतिथि पर निदेशक कृष्णन को एक खुला पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने बताया कि संस्थान बहुजन शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों के लिए समावेशी माहौल बनाने में विफल रहा है। मालघन ने प्रशासन की आलोचना करते हुए लिखा कि बाहरी दबाव में कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों से कुछ शिक्षकों की भर्ती करने के बावजूद, विविधता के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं से संस्थान पीछे हट रहा है।

मालघन ने यह भी बताया कि उन्होंने अप्रैल 2023 में आईआईएमबी के एक वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ जाति उत्पीड़न की औपचारिक शिकायत दर्ज की थी। लेकिन विविधता और समावेशन शिकायत निवारण समिति (डीआई-जीआरसी) ने जांच शुरू नहीं की। इसके बजाय, संस्थान ने उनके खिलाफ ही अपने आप शिकायत दर्ज कर दी। मालघन का आरोप है कि डीआई-जीआरसी के सामने उनकी प्रारंभिक पेशी के दौरान, एक समिति सदस्य ने जातिवादी टिप्पणी की। उन्होंने डीआई-जीआरसी को एससी-एसटी सेल जैसी वैधानिक संस्थाओं का " दंतहीन विकल्प" बताया। उन्होंने कहा कि इस समिति को संस्थान के नियमों में औपचारिक मान्यता नहीं थी और छात्रों को इसकी जानकारी उनके हस्तक्षेप के बाद ही दी गई। जवाबी कार्रवाई में, डॉ. मालघन को मार्च 2024 में पदावनत कर दिया गया, हालांकि कर्नाटक हाई कोर्ट दवारा मामले में हस्तक्षेप के बाद फैसले पर रोक लगा दी गई।

बहुजन कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज समूहों ने आईआईएम इंदौर और आईआईएम बैंगलोर में निदेशक ऋषिकेश टी. कृष्णन के कार्यकाल की आलोचना की है। उनका कहना है कि कृष्णन जातिगत भेदभाव में लिप्त रहने वाले 'आदतन' व्यक्ति हैं। कार्यकर्ताओं ने संस्थान में बदलाव की मांग करते हुए आईआईएमबी बोर्ड में हाशिए के समुदायों का प्रतिनिधित्व बढाने को आवश्यक माना। वर्तमान में बोर्ड में उच्च जाति (privileged backgrounds) के लोगों का दबदबा है।

'द मूकनायक' से बात करते हुए अंबेडकर सेंटर फॉर जस्टिस एंड पीस (एसीजेपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नागसेन सोनारे ने कहा, "कृष्णन को पद पर बने रहने देना संविधान में दर्ज समानता और न्याय के मूल्यों को कमजोर करता है।" उन्होंने इस मुद्दे पर बेंगलुरु पुलिस से सभी आरोपियों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग की।

सोनारे ने कहा, "जब भारत संविधान के 75 साल पूरे कर रहा है, तब आईआईएम बैंगलोर जैसे संस्थानों में जातिगत भेदभाव की मौजूदगी यह दिखाती है कि जवाबदेही और संरचनात्मक बदलाव की कितनी जरूरत है।"

यह भी ध्यान देने योग्य है कि अभी तक डीसीआरई, शिकायतकर्ता के वकील और बेंगलुरु पुलिस को कर्नाटक हाई कोर्ट से FIR नं. 0467/ 2024 में आरोपियों पर कारवाई नहीं करने के संबध में किसी प्रकार का कोई स्टे ऑर्डर नहीं मिला है।

ऐसे में सोनारे कहते हैं कि मौखिक आदेश का हवाला देते हुए आईआईएम बंगलौर के पदाधिकारी गिरफ्तारी से बचने की राह ढूंढ रहे हैं, बिना कोर्ट आदेश के स्टे नहीं माना जा सकता, पुलिस को जल्द से जल्द आरोपियों को अरेस्ट करना चाहिए।

इस विवाद ने आईआईएमबी बोर्ड और उच्च अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए भारी दबाव डाला है। कार्यकर्ताओं का मानना है कि कृष्णन को हटाना केवल व्यक्तिगत गलतियों को ठीक करने का कदम नहीं है, बल्कि भारत के प्रमुख संस्थानों में व्यवस्थागत जातिगत भेदभाव को खत्म करने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।

'द मूकनायक' ने इस सम्पूर्ण घटनाक्रम और आरोपों पर प्रतिक्रिया जानने के लिए आईआईएम बैंगलोर के निदेशक से संपर्क किया। हमें संस्थान की ओर से कविता कुमार द्वारा भेजा हुआ संक्षिप्त बयान मिला, जिसमें लिखा था: "आपके द्वारा लगाए गए आरोप झूठे, बेबुनियाद और प्रेरित लगते हैं। कृपया ध्यान दें कि संस्थान सभी नियमों और कानूनों का पालन करते हुए चलाया जाता है। प्रोफेसर दास द्वारा उठाए गए मुद्दे न्यायाधीन हैं। 20.12.2024 की सुनवाई के संबंध में, हम पहले जारी किए गए बयान पर कायम हैं।"

बयान में आगे कहा गया कि " उच्च न्यायालय में अवकाश जाती है, जब न्यायालय के आदेश की प्रति रजिस्ट्री वेबसाइट पर अपलोड की जाएगी, तब इसे देखा जा सकता है।" साथ ही प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों से संपर्क करने का सुझाव दिया गया। हालांकि, आईआईएम बैंगलोर निदेशक ने दोनों आरोपी संकाय सदस्यों के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स में नामांकन और आईआईएम इंदौर प्रकरण से संबंधित सवालों का कोई जवाब नहीं दिया।

इस मामले में द मूकनायक को विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आरोपियों द्वारा स्थानीय न्यायालय में 23 दिसबर को अग्रिम जमानत की अर्जी लगाई गई थी जिसपर सुनवाई 26 दिसबर को होगी.

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