जयपुर- राजस्थान में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं सहित पार्टी कार्यकर्ताओं ने बुधवार 4 जून को सामाजिक सुधारकों महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित फिल्म 'फुले ' देखी। कांग्रेस ने ज्योतिबा फुले के विचार और आंदोलन से सीख लेते हुए समाज को न्यायपूर्ण और शिक्षित बनाने की प्रेरणा लेने का आह्वान किया।
पूर्व मुख्मंत्री अशोक गहलोत ने कहा, " समाज में फैली रूढ़िवादिता तथा कुरीतियों के खिलाफ महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले जी तथा देश की प्रथम महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले जी ने बहुत ही साहस और निडरता से मुकाबला किया। उन्होंने उस समय महिला शिक्षा की अलख जगाई जब ऐसा करना नामुमकिन समझा जाता था। गत रात्रि जयपुर में उनके जीवन पर आधारित फिल्म फुले देखी। यह फिल्म दिखाती है कि कैसे फुले दंपत्ति ने तमाम तरह की चुनौतियों का धैर्यपूर्वक सामना करते हुए महिला साक्षरता के लिए क्रांतिकारी कदम उठाए तथा अपने मार्ग से नहीं डिगे। यह फिल्म सभी को देखनी चाहिए, इससे फुले जी की राह पर चलने और सर्वसमाज की बेहतरी के लिए कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी।"

फिल्म देखने के बाद अपनी प्रतिक्रिया देते हुए नेता प्रतिपक्ष टीका राम जूली ने x पर पोस्ट किया, " साहस, समर्पण और समाज सुधार की मिसाल है 'फुले' गत रात्रि जयपुर में पूर्व मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत जी एवं कांग्रेस नेताओं के साथ 'फुले' फिल्म देखने का अवसर मिला। यह फिल्म केवल एक चलचित्र नहीं, बल्कि एक विचार, एक आंदोलन है l यह फिल्म उन दो महान व्यक्तित्वों "महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले" की संघर्षगाथा है, जिन्होंने रूढ़िवादी सामाजिक ढांचे को तोड़कर समता और साक्षरता का नया अध्याय रचा। यह फिल्म दिखाती है कि कैसे महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने विपरीत परिस्थितियों और सामाजिक विरोध के बीच रूढ़िवादिता और कुरीतियों से डटकर मुकाबला किया। जब महिलाओं की शिक्षा को पाप समझा जाता था, उस समय उन्होंने ज्ञान, अधिकार और समानता का दीप जलाया। यह फिल्म हम सभी को प्रेरणा देती है, सोच बदलने की, व्यवस्था से लड़ने की और सबके लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की। आइए, फुले जी के दिखाए रास्ते पर चलें और समाज को अधिक न्यायपूर्ण, समतामूलक और शिक्षित बनाने का संकल्प लें।"
विवादों में घिरी थी फिल्म
फुले फिल्म अपने रिलीज से पहले विवादों में भी घिरी रही। कुछ जाति-आधारित संगठनों ने फिल्म में दिखाए गए कुछ दृश्यों और संवादों, जैसे सावित्रीबाई पर एक ब्राह्मण बच्चे द्वारा गोबर फेंकने और ऐतिहासिक जातिगत उत्पीड़न के उल्लेख, को आपत्तिजनक बताया। सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन ने इन आपत्तियों के चलते फिल्म की रिलीज, जो मूल रूप से 11 अप्रैल 2025 को प्रस्तावित थी, को स्थगित कर दिया और विवादास्पद हिस्सों को संपादित करने का निर्देश दिया।
इससे सेंसरशिप और फुले के क्रांतिकारी योगदान को कमजोर करने के आरोप लगे। बहुजन कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया, जिसमें प्रयागराज में फिल्म की समीक्षा कर रहे पत्रकारों पर हमला भी शामिल है, जो सामाजिक ढांचे को चुनौती देने की आशंका को दर्शाता है। इन विवादों के बावजूद, फिल्म को फुले दंपति की कहानी को सामने लाने और जाति, शिक्षा और सामाजिक न्याय पर चर्चा शुरू करने के लिए व्यापक सराहना मिल रही है।