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फुले जयंती 2025: ब्रह्मा मासिक धर्म के दौरान कहाँ अलग बैठते थे? अंग्रेज ब्रह्मदेव के किस अंग से पैदा हुए?—ज्योतिबा फुले के वे चुभते सवाल जिसने 19वीं सदी के ब्राह्मणों को किया नाराज

11 अप्रैल को ज्योतिबा फुले की 198वीं जयंती के मौके पर उनकी किताब गुलामगिरी फिर से चर्चा में है। 1873 में लिखी गई यह किताब हिंदू मिथकों और ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर करारा प्रहार करती है। फुले ने कई सवाल पूछे थे—"ब्रह्मा मासिक धर्म के दौरान कहाँ अलग बैठते थे?" और "अंग्रेज ब्रह्मदेव के किस अंग से पैदा हुए?"—जिन्होंने 19वीं सदी के ब्राह्मणों को गुस्से से भर दिया। ये सवाल सिर्फ तर्क नहीं थे, बल्कि गुलामी की जड़ें उखाड़ने की कोशिश थे। आइए जानें कि गुलामगिरी में फुले ने क्या कहा और क्यों यह आज भी प्रासंगिक है।

ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 में सतारा, महाराष्ट्र में हुआ था। माली समुदाय से आने वाले फुले ने शिक्षा को हथियार बनाया। अपनी पत्नी सावित्रीबाई के साथ 1848 में उन्होंने लड़कियों का पहला स्कूल खोला और 1873 में सत्यशोधक समाज बनाया। उसी साल गुलामगिरी छपी, जिसमें उन्होंने ब्राह्मणवादी मिथकों को चुनौती दी। यह किताब फुले और एक काल्पनिक पात्र धोंडीराव के संवाद के रूप में है, जो बहुजनों को उनकी गुलामी का सच दिखाती है।

ब्रह्मा पर सवालों की बौछार

गुलामगिरी का एक अध्याय ब्रह्मा और सरस्वती की उत्पत्ति पर केंद्रित है। फुले ने ऋग्वेद के पुरुषसूक्त को निशाना बनाया, जिसमें कहा गया कि ब्राह्मण ब्रह्मा के मुंह से और शूद्र पैरों से पैदा हुए। फुले पूछते हैं, "अगर ब्राह्मण ब्रह्मा के मुंह से पैदा हुए, तो क्या ब्रह्मा के मुंह में गर्भाशय था? और अगर था, तो मासिक धर्म के दौरान ब्रह्मा कहाँ अलग बैठते थे?" यह सवाल उस समय के रिवाज से जुड़ा था, जब महिलाओं को मासिक धर्म में अलग रखा जाता था। फुले का तर्क था कि अगर यह मिथक सच है, तो ब्रह्मा पर भी ये नियम लागू होने चाहिए।

उन्होंने मनुस्मृति को भी कठघरे में खड़ा किया। धोंडीराव कहता है, "मनु के मुताबिक, ब्रह्मदेव ने शूद्रों को ब्राह्मणों की सेवा के लिए बनाया।" फुले पूछते हैं, "अंग्रेज जैसे लोग, जो इस धरती पर रहते हैं, वे ब्रह्मदेव के किस अंग से पैदा हुए? मनुस्मृति में उनका जिक्र क्यों नहीं?" धोंडीराव जवाब देता है, "मनुस्मृति में अंग्रेजों का उल्लेख नहीं, क्योंकि वे दुष्ट लोग हैं।" फुले इस जवाब को बेकार बताते हैं और कहते हैं कि मनु का वर्ण सिद्धांत झूठा है, क्योंकि यह पूरी मानव जाति पर लागू नहीं होता।

ये सवाल सुनते ही 19वीं सदी के ब्राह्मण भड़क गए। उनके लिए मिथक पवित्र थे, और फुले का उन पर हमला ईशनिंदा जैसा था। फुले ने लिखा कि ब्रह्मा आर्यों का सरदार था, जो ईरान से भारत आया। उसने मूल निवासियों को हराया और गुलाम बनाया। ब्रह्मा की मृत्यु के बाद उसके लोग "ब्राह्मण" कहलाए। मनु जैसे नेताओं ने ब्रह्मा के शब्दों को ईश्वरीय बनाकर गुलामी को जायज ठहराया। फुले का मकसद था कि बहुजन इन मिथकों को सच न मानें और अपनी गुलामी को समझें।

फुले बताते हैं कि ब्राह्मणों ने शूद्रों और अति-शूद्रों को, जो उनकी आबादी से दस गुना ज्यादा थे, कैसे गुलाम बनाया। जब इनकी संख्या बढ़ी, तो ब्राह्मणों ने आपसी नफरत फैलाई। उन्होंने जातियों की दीवारें खड़ी कीं—माली, कुणबी, सोनार, लोहार, तेली—और शास्त्र गढ़े। इन शास्त्रों को अज्ञानी लोगों ने सच मान लिया। जो ब्राह्मणों के खिलाफ खड़े हुए, उन्हें "अछूत" बनाकर समाज से बाहर कर दिया गया। छुआछूत के जहर ने इन वर्गों को भुखमरी में धकेल दिया, जिससे उन्हें मरे जानवरों का मांस खाना पड़ा।

ब्रिटिश शासन और शिक्षा

फुले ने ब्रिटिश शासन को शूद्रों के लिए राहत बताया। वे लिखते हैं, "ब्रिटिश सरकार ने शूद्रों और अति-शूद्रों को ब्राह्मणों की गुलामी से छुटकारा दिलाया। लेकिन उनकी शिक्षा पर ध्यान न देना अफसोसजनक है।" फुले मानते थे कि शिक्षा ही आजादी की कुंजी है, और ब्राह्मणों के शास्त्रों पर अंधविश्वास मानसिक गुलामी को बढ़ाता है।

अन्य मिथकों का विश्लेषण

  • दूसरा अध्याय: फुले मत्स्य और शंकासुर की कहानी को लेते हैं। वे कहते हैं कि आर्य समुद्र से आए, और उनका सरदार मत्स्य था, जिसने मूल सरदार शंकासुर को मारकर जमीन हड़पी।

  • तीसरा अध्याय: कच्छ ने मत्स्य कबीले को बचाया और भूदेव बना। कश्यप नामक मूल राजा हारा।

  • चौथा अध्याय: वराह, जिसे हिरण्यगर्भ ने "जंगली सुअर" कहा, ने उसे मार डाला।

फुले ने चातुर्वर्ण्य को खारिज किया और कहा कि ब्राह्मण विदेशी मूल के थे। वे आर्यों को ईरान से आए आक्रमणकारी मानते थे, जिन्होंने मिथक गढ़कर सत्ता बनाई। फुले ने विष्णु के अवतारों को गैर-आर्य योद्धाओं से जोड़ा और मिथकों को ऐतिहासिक बनाया।

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