भोपाल। बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री द्वारा अपने गृह ग्राम गढ़ा में देश का पहला "हिंदू गांव" बनाने की घोषणा के बाद मध्यप्रदेश की सियासत में नई बहस छिड़ गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इस पहल को धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण की कोशिश बताया है और संविधान तथा भगवान राम के मूल्यों के खिलाफ करार दिया है।
जीतू पटवारी का बयान – “राम ने इंसानियत और भाईचारे की शिक्षा दी”
बीते शनिवार को छतरपुर पहुंचे मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) अध्यक्ष जीतू पटवारी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए बिना नाम लिए धीरेंद्र शास्त्री पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “जो लोग कहते हैं कि वे एक हिंदू गांव बनाना चाहते हैं, मैं उनसे पूछता हूं—अगर राम अरबों साल पहले थे, तो पूरा विश्व ही हिंदू क्यों नहीं? सिर्फ एक गांव क्यों? दरअसल, ये वोटों का ध्रुवीकरण करने की साजिश है।”
पटवारी ने आगे कहा, “मैं गर्व से कहता हूं कि मैं हिंदू हूं। लेकिन मेरे राम ने मुझे सिखाया कि सबसे पहले गरीब की चिंता करो, इंसानियत की चिंता करो। हमारे संविधान ने हमें सिखाया—हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में हैं भाई-भाई। ये भाईचारे की भावना ही भारत की असली ताकत है।”
उमंग सिंघार का पलटवार – “भाजपा खुद फैलाती है वर्गभेद”
जीतू पटवारी के बयान के बाद मध्य प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार भी इस मुद्दे पर सामने आए। उन्होंने भाजपा पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा, “भाजपा गांव में हिंदू होने की बात करती है, लेकिन खुद ही समाज में वर्गभेद बढ़ाती है। बुंदेलखंड के कई गांवों का नाम आज भी चमार टोला, चमरौआ जैसे जातिसूचक नामों पर है। कई प्राथमिक विद्यालयों के नाम भी जातिगत पहचान से जुड़े हैं। भाजपा सरकार ने अब तक इन्हें क्यों नहीं बदला?”
सिंघार ने कहा कि ये नाम वर्षों से वंचित और पिछड़े वर्गों का अपमान करते आ रहे हैं, लेकिन भाजपा सरकार ने इन्हें हटाने की कभी कोई पहल नहीं की।
क्या है हिंदू गाँव?
धीरेंद्र शास्त्री द्वारा अपने गांव गढ़ा को “हिंदू गांव” के रूप में विकसित करने की योजना में मंदिरों का निर्माण, गोशालाएं, संस्कृत विद्यालय और धार्मिक आयोजनों की स्थायी व्यवस्था शामिल है। शास्त्री के समर्थक इसे “धार्मिक पुनर्जागरण” बता रहे हैं, जबकि आलोचक इसे सामाजिक विभाजन और राजनीतिक एजेंडा करार दे रहे हैं।
क्या वाकई यह धार्मिक आस्था का मामला है या सियासी एजेंडा?
विशेषज्ञों का मानना है कि धार्मिक पहचान को गांव या बस्तियों के स्तर पर स्थापित करने की कोशिशें संविधान के “धर्मनिरपेक्ष” मूल्यों से टकराती हैं। साथ ही, ऐसी योजनाओं के पीछे राजनीतिक ध्रुवीकरण की संभावनाएं भी नजर आती हैं।
द मूकनायक के विश्लेषण में समझिए क्या है कानूनी प्रावधान?
अनुच्छेद 15
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 यह सुनिश्चित करता है कि राज्य (सरकार) अपने किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग, वंश या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। इसका मुख्य उद्देश्य है कि हर व्यक्ति को समान अवसर और समान अधिकार मिले, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से संबंध रखता हो। यह अनुच्छेद समाज में व्याप्त असमानताओं को खत्म करने और सबको बराबरी का दर्जा देने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
क्या सिर्फ हिंदुओं का गाँव बसाना संविधानसम्मत है?
अगर कोई गाँव केवल एक धर्म या जाति के लोगों के लिए बसाया जाता है और जानबूझकर अन्य धर्म या जाति के लोगों को बाहर रखा जाता है, तो यह संविधान की भावना और अनुच्छेद 15 का उल्लंघन माना जाएगा। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहाँ हर नागरिक को कहीं भी बसने और रहने का अधिकार है। इसलिए केवल "हिंदू गाँव" बसाना और उसमें अन्य धर्मों के लोगों को शामिल न करना, संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध है और सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देता है।
देश के नागरिक को कहीं भी रहने की है स्वतंत्रता
अगर किसी क्षेत्र में जानबूझकर केवल एक धर्म, जाति या समुदाय के लोगों को बसाया जा रहा है और अन्य को उनके धर्म या जाति के आधार पर वहां बसने से रोका जा रहा है, तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 19(1)(e) (जो हर नागरिक को देश में कहीं भी बसने का अधिकार देता है) का उल्लंघन है। ऐसी स्थिति में यह कार्य भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक माना जाएगा, जिस पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। प्रभावित व्यक्ति या संगठन न्यायालय में याचिका दाखिल कर सकते हैं, और उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय ऐसे भेदभाव को असंवैधानिक घोषित कर सकता है। साथ ही, यदि इसमें कोई शासकीय संलिप्तता पाई जाती है, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई संभव है।