MP इंदौर हाई कोर्ट का अहम फैसला: वयस्क महिला अपनी मर्जी से जहां चाहे रह सकती है, शादीशुदा होना बाधा नहीं

04:18 PM Dec 13, 2025 | Ankit Pachauri

भोपाल। “मैं पूरी तरह बालिग हूँ और कानून मुझे यह अधिकार देता है कि मैं अपनी जिंदगी से जुड़े फैसले खुद लूं। मैं अपनी मर्जी से जिसके साथ चाहूँ, उसके साथ रह सकती हूँ। मेरे माता-पिता मेरी इच्छा के खिलाफ मुझे जबरन अपने पास रखे हुए हैं। मैं किसी दबाव में नहीं हूँ और स्पष्ट रूप से कहना चाहती हूँ कि मैं धीरज के साथ रहना चाहती हूँ। मुझे अपनी पसंद के अनुसार जीवन जीने दिया जाए।”

पुलिस सुरक्षा के बीच शुक्रवार को इंदौर हाई कोर्ट पहुंची महिला ने न्यायालय के सामने यह स्पष्ट बयान दिया। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर पीठ ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि यदि महिला वयस्क है तो वह अपनी इच्छा के अनुसार किसी के साथ भी रह सकती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि महिला का शादीशुदा होना उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पसंद पर रोक नहीं लगा सकता। यह फैसला उस याचिका की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें एक युवक ने आरोप लगाया था कि उसकी साथी को उसके माता-पिता ने जबरन अपने पास रखा हुआ है।

यह मामला राजस्थान के सवाई माधोपुर निवासी धीरज नायक से जुड़ा है, जिन्होंने अपने अधिवक्ता जितेंद्र वर्मा के माध्यम से हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि धीरज ने संध्या नामक महिला से विवाह किया है और संध्या उसके साथ रहना चाहती है, लेकिन उसके माता-पिता उसे जबरदस्ती अपने घर में रखे हुए हैं और बाहर जाने की अनुमति नहीं दे रहे।

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पुलिस सुरक्षा में कोर्ट लाई गई महिला

इस मामले की पिछली सुनवाई 2 दिसंबर को हुई थी, जिसमें हाई कोर्ट ने महिला को स्वयं कोर्ट के सामने पेश कर बयान दर्ज कराने के निर्देश दिए थे। कोर्ट के आदेश पर शुक्रवार को पुलिस सुरक्षा के बीच महिला को इंदौर हाई कोर्ट लाया गया। सुनवाई के दौरान महिला ने साफ तौर पर कहा कि वह अपनी मर्जी से याचिकाकर्ता धीरज नायक के साथ रहना चाहती है और उसके माता-पिता उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध अपने पास रखे हुए हैं।

महिला ने यह भी बताया कि इससे पहले कोर्ट के निर्देश पर एक न्यायिक दंडाधिकारी (JMFC) के समक्ष भी उसके बयान दर्ज कराए जा चुके हैं। उन बयानों में भी उसने यही कहा था कि उसे जबरन अपने माता-पिता के नियंत्रण में रखा गया है और वह स्वतंत्र रूप से अपनी जिंदगी का फैसला नहीं कर पा रही है।

माता-पिता ने कहा, पहले से शादीशुदा है बेटी

वहीं, महिला के माता-पिता की ओर से यह दलील दी गई कि उनकी बेटी की पहले ही शादी हो चुकी है। उनका कहना था कि शादी के बाद महिला को अपने पति के साथ ही रहना चाहिए और किसी अन्य व्यक्ति के साथ रहने का उसे अधिकार नहीं है। माता-पिता ने इसे सामाजिक और पारिवारिक मर्यादाओं से जोड़ते हुए कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की।

हालांकि, हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद महिला की उम्र और उसकी स्वतंत्र इच्छा को सबसे महत्वपूर्ण आधार माना। अदालत ने कहा कि कानून की नजर में यदि महिला बालिग है, तो उसे यह तय करने का पूरा अधिकार है कि वह किसके साथ और कहां रहना चाहती है।

हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि किसी भी वयस्क महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध कहीं रोके रखना कानूनन गलत है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि शादीशुदा होना किसी महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खत्म नहीं करता। संविधान द्वारा प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) के तहत महिला अपने जीवन से जुड़े फैसले खुद लेने के लिए स्वतंत्र है।

कोर्ट ने यह भी माना कि माता-पिता या परिवार की असहमति के बावजूद, यदि महिला ने स्पष्ट रूप से अपनी इच्छा जाहिर कर दी है, तो उसे उसी के अनुसार निर्णय लेने दिया जाना चाहिए।

धीरज नायक को सौंपी गई महिला की सुपुर्दगी

शुक्रवार को हुई सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि महिला को धीरज नायक के साथ ही रहने दिया जाए। कोर्ट ने महिला की सुपुर्दगी धीरज को सौंपते हुए पुलिस को निर्देश दिए कि वह दोनों को सुरक्षा प्रदान करे और सुरक्षित रूप से सवाई माधोपुर तक छोड़कर आए। अदालत ने यह आदेश भी दिया कि इस दौरान किसी प्रकार का दबाव, धमकी या हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए, ताकि महिला बिना किसी भय के अपने फैसले पर अमल कर सके।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर फिर मुहर

यह फैसला एक बार फिर यह स्थापित करता है कि भारतीय न्यायपालिका वयस्क महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पसंद के अधिकार को सर्वोपरि मानती है। इससे पहले भी कई मामलों में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट यह कह चुके हैं कि बालिग महिला को यह अधिकार है कि वह अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुने और उसके साथ रहे, चाहे परिवार या समाज को यह पसंद हो या नहीं।

द मूकनायक से बातचीत में विधि विशेषज्ञ मयंक सिंह ने कहा, कि यह आदेश उन मामलों में नजीर बनेगा, जहां पारिवारिक दबाव के चलते महिलाओं की स्वतंत्रता छीनी जाती है। अदालत का यह रुख साफ संकेत देता है कि कानून की नजर में सबसे अहम महिला की सहमति और उसकी इच्छा है, न कि सामाजिक दबाव या पारिवारिक परंपराएं।