तिरुवनंतपुरम- "रिदम ऑफ दमाम" (2024), एक महत्वपूर्ण फिल्म जो सिद्धी समुदाय की कहानी को उजागर करती है, 29वें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ केरल (IFFK) में प्रदर्शित होगी। यह फिल्म 13 से 20 दिसंबर तक तिरुवनंतपुरम में आयोजित इस महोत्सव में "इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन" श्रेणी में दिखाई जाएगी। सिद्धी समुदाय एक एथनिक अफ्रीकी समूह है, जो 7वीं सदी में अरबों द्वारा भारत लाया गया था।
"रिदम ऑफ दमाम" कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के येल्लापुर में सेट है, जहां हिंदू सिद्दियों की एक बड़ी आबादी रहती है। फिल्म के मुख्य कलाकार सभी गैर-कलाकार समुदाय से हैं। फिल्म में चिनामया सिद्धी ने फिल्म में जयाराम सिद्धी की प्रमुख भूमिका निभाई है। जबकि अन्य कलाकारों में प्रशांत सिद्धी , गिरिजा सिद्धी, नागराज सिद्धी एव मोहन सिद्धी ने अभिनय किया है।
फिल्म में 12 साल के जयाराम सिद्धी की कहानी है, जो अपने मृत दादा की आत्मा से प्रेतबाधित है। चाहे वह स्थानीय काले जादूगरों से मदद ले या अन्य उपाय करे, जयाराम की हालत में कोई सुधार नहीं होता। आखिरकार, वह एक सपने की दुनिया में भाग जाता है, जहाँ वह अपने दादा के जादुई उपकरणों का उपयोग करके अपने पूर्वजों से जुड़ता है। वह अपनी पूर्वजों की दर्दनाक गुलामी की इतिहास से अभिभूत हो जाता है और वास्तविकता से जुड़ने में असमर्थ हो जाता है। परिवार जयाराम की स्थिति सुधारने के लिए आदिवासी अनुष्ठान और दमाम संगीत का सहारा लेता है।
इस फिल्म के निर्देशक जयान चेरियन हैं, जो केरल से हैं और जिनके पास सिटी कॉलेज न्यू यॉर्क से फिल्म निर्माण में मास्टर डिग्री (MFA) है। उन्होंने हंटर कॉलेज से फिल्म और क्रिएटिव राइटिंग में बीए भी किया है। चेरियन की फिल्में दुनियाभर के फिल्म महोत्सवों में प्रदर्शित हो चुकी हैं, जिनमें बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, डर्बन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, बीएफआई लंदन लेस्बियन और गे फिल्म फेस्टिवल, कोलकाता इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, और मॉन्ट्रियल वर्ल्ड फिल्म फेस्टिवल शामिल हैं। उनके कुछ प्रमुख फिल्म प्रोजेक्ट्स में "का बॉडीस्केप्स" (2016), "पापीलियो बुद्धा" (2013) और "द शेप ऑफ द शेपलेस" (2010) शामिल हैं।
इस फ़िल्म का प्रीमियर नवंबर में गोवा में 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में भी हुआ था। "रिदम ऑफ दमाम एक समुदाय की परेशानियों पर अपनी सहानुभूतिपूर्ण रोशनी डालती है। लेकिन यह फिल्म न केवल उन लोगों को आवाज़ देती है जो बेज़ुबान हैं, बल्कि यह उन सभी लोगों से भी बात करती है जो खुद को इतिहास के एक कोने में पाते हैं।
नृत्य और संगीत सिद्धी समुदाय की सांस्कृतिक पहचान का अहम हिस्सा हैं और वे अपनी अभिव्यक्तिपूर्ण नृत्य शैली, सिद्धी धमाल के लिए प्रसिद्ध हैं, जो उनके सामुदायिक जीवन को दर्शाता है। सिद्धियों की सांस्कृतिक धरोहर लगभग 300 साल पुरानी है। उनका नृत्य और संगीत बेहद अद्वितीय और आकर्षक हैं।
भारत में ऐसे बसा सिद्धी समुदाय
सिद्धी समुदाय एक एथनिक अफ्रीकी समूह है, जो 7वीं सदी में अरबों द्वारा भारत लाया गया था। इसके बाद पुर्तगालियों और ब्रिटिशों ने भी उन्हें गुलाम बनाया। सिद्धी समुदाय बंटू लोगों का वंशज माना जाता है, जो दक्षिण-पूर्व अफ्रीका से हैं।
भारत में सिद्धियों की संख्या लगभग 50,000 है, और ये मुख्यतः कर्नाटका, गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्रों में रहते हैं।
कर्नाटका में इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है, और गुजरात में इन्हें 1982 में विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूह (PVTGs) के रूप में पहचान मिली है।
गुजरात के दो गांव जम्बुर और सिरवान में इनकी तादाद काफी है। ये लोग गिर के जंगल और आसपास के इलाकों में रहते हैं और कहा जाता है कि जूनागढ़ में इनकी 15 हजार की आबादी है। इनमें से कुछ लोग गिर के जंगलों में टूरिस्ट गाइड का काम भी करते हैं।
सिद्धी समुदाय के लोग मुख्यतः सुन्नी इस्लाम के अनुयायी हैं। हालांकि कुछ सिदी हिंदू और कैथलिक चर्च से भी ताल्लुक रखते हैं। उनका पारंपरिक पहनावा हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रकार के परिधानों का मिश्रण है, और वे मांसाहारी होते हैं। सिद्धी महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले समाज में कम दर्जा दिया जाता है।
1980 के दशक में, भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) ने सिद्धी समुदाय के बच्चों के लिए विशेष खेल कार्यक्रम शुरू किया, जिससे कई युवा लड़के और लड़कियाँ भारतीय खेलों में हिस्सा लेने लगे।
सिद्धी समुदाय से कर्नाटका के शंकरम बुदना सिद्धी पहले व्यक्ति बने हैं जिन्हें राज्यसभा सदस्य (MLC) के रूप में चुना गया।
भारत में सिद्धी समुदाय के सबसे प्रसिद्ध शासक मलिक अंबर थे (1548-1626), जिन्होंने अपनी कुशल शासकता और सैन्य रणनीतियों से इतिहास में जगह बनाई।