भोपाल। मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में आदिवासी किसान की जमीन विक्रय से जुड़ा एक मामला प्रशासनिक लापरवाही और अनुशासनहीनता का उदाहरण बन गया है। इस प्रकरण में कलेक्टर ऋषव गुप्ता ने जब फाइल देखी, तो एसडीएम बजरंग बहादुर की लापरवाही देखकर वह चौंक गए। उन्होंने तुरंत एसडीएम को फोन कर फटकार लगाई और फिर उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया।
मामला क्या है?
गुड़ीखेड़ा गांव के आदिवासी किसान कृपाराम पिता गुलाल अरसे ने अपनी 9 एकड़ जमीन एक गैर-आदिवासी को बेचने के लिए कलेक्टर से अनुमति मांगी थी। चूंकि मामला अनुसूचित जनजाति के सदस्य की भूमि विक्रय से संबंधित था, इसलिए यह मप्र भू-राजस्व संहिता की धारा 165(6) के अधीन आता है, जिसके तहत इस प्रकार की बिक्री के लिए जिला कलेक्टर की अनुमति आवश्यक होती है।
कलेक्टर ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी जांच एसडीएम को सौंपी थी। एसडीएम बजरंग बहादुर ने तहसीलदार से जांच कराई। तहसीलदार ने जांच रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि अगर कृपाराम अपनी 9 एकड़ जमीन बेचते हैं, तो उनके पास केवल सवा एकड़ (0.720 हेक्टेयर) जमीन ही शेष रहेगी, जो नियमानुसार न्यूनतम भूमि सीमा से कम है।
एसडीएम ने तहसीलदार की रिपोर्ट की अनदेखी की
तहसीलदार की रिपोर्ट के बावजूद एसडीएम बजरंग बहादुर ने न तो रिपोर्ट का समुचित अवलोकन किया, न ही अपने स्तर पर पुनः जांच की। उन्होंने सीधे कलेक्टर को रिपोर्ट भेज दी, जिसमें यह सुझाव दिया गया कि आदिवासी किसान को जमीन बेचने की अनुमति दी जाए। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि एसडीएम की रिपोर्ट में किसान के पास शेष रहने वाली भूमि का कोई उल्लेख तक नहीं किया गया।
कलेक्टर ने जताई नाराजगी
कलेक्टर ऋषव गुप्ता ने जब दोनों रिपोर्टें देखीं तो पाया कि तहसीलदार और एसडीएम की रिपोर्टों में गंभीर असंगतियां हैं। उन्होंने इसे शासकीय कार्य में लापरवाही और स्वेच्छाचारिता मानते हुए एसडीएम को कारण बताओ नोटिस जारी किया।
कलेक्टर ऋषभ गुप्ता ने कहा, "एसडीएम बजरंग बहादुर ने न तो मप्र भू-राजस्व संहिता की धारा 165(6) के अनुरूप जांच की, न ही तहसीलदार की रिपोर्ट का अध्ययन किया। उन्होंने रिपोर्ट भेजते समय गंभीर लापरवाही बरती, जिससे शासकीय कार्य प्रभावित हुआ है। यह कृत्य मप्र सिविल सेवा (आचरण) नियमों के विपरीत है और अनुशासनात्मक कार्रवाई के योग्य है।"
नोटिस में क्या?
कलेक्टर ने एसडीएम को दिए नोटिस में कहा, “आपका कृत्य शासकीय कार्य के प्रति लापरवाही, अनुशासनहीनता एवं स्वेच्छाचारिता को दर्शाता है। क्यों न मप्र सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण तथा अपील) नियमों के तहत आपके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए?”
कलेक्टर ने स्पष्ट किया है कि यदि निर्धारित समय में संतोषजनक उत्तर प्राप्त नहीं हुआ तो यह मान लिया जाएगा कि अधिकारी के पास कहने के लिए कुछ नहीं है, और एकतरफा कार्रवाई की जाएगी।
जानिए क्या है प्रावधान हैं?
मप्र भू-राजस्व संहिता की धारा 165(6): कोई अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) अपनी कृषि भूमि को गैर-आदिवासी को तभी बेच सकता है जब उसके पास विक्रय के बाद भी सिंचित भूमि न्यूनतम 5 एकड़ अथवा असिंचित भूमि न्यूनतम 10 एकड़ शेष रहे।
मप्र सिविल सेवा (आचरण) नियम: शासकीय कार्यों में लापरवाही, अनुशासनहीनता अथवा नियमों की अवहेलना अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई का आधार बनती है।
एसडीएम बोले- जवाब देंगे
इस पूरे मामले में एसडीएम बजरंग बहादुर ने कहा, “नोटिस मिलना अब तो सामान्य बात हो गई है। जो नोटिस मिला है, उसका जवाब एक-दो दिन में दे दूंगा।”