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जातिगत भेदभाव से तंग MNNIT के प्रोफेसर ने PM मोदी से पूछा—क्या भारत का संविधान ST समुदाय की रक्षा नहीं करता?

इलाहाबाद- मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (MNNIT) इलाहाबाद में सहायक प्रोफेसर डॉ. एम. वेंकटेश नायक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि पिछले आठ सालों से उनके साथ जातिगत भेदभाव, संस्थागत उपेक्षा और प्रशासनिक दमन की घटनाएं हो रही हैं। उनका यह सवाल दिल दहला देने वाला है - "क्या भारत का संविधान अनुसूचित जनजाति के नागरिकों की रक्षा नहीं करता? क्या आदिवासियों को न्याय और समानता के संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा गया है?"

डॉ. नायक का यह मार्मिक पत्र सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। अम्बेडकरवादी इस बात पर सहमति जाहिर करते हैं कि संवैधानिक सुरक्षा के बावजूद प्रतिष्ठित संस्थानों में ST शिक्षकों को अक्सर व्यवस्थागत पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है। 

डॉ. नायक, जो इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं, ने 30 नवंबर 2012 को ST कोटे के तहत MNNIT अलाहाबाद में अपनी सेवाएं शुरू की थीं। वर्षों तक उन्होंने छात्रों के बीच अपनी शिक्षण क्षमता के लिए प्रशंसा अर्जित की। लेकिन उनका कहना है कि 2017 से उनके साथ लगातार जातिगत भेदभाव, पेशेवर रूप से बाधा डालने और प्रशासनिक उपेक्षा की घटनाएं हो रही हैं।

जनवरी 2025 में जब उनके सामान्य और SC वर्ग के साथियों को एसोसिएट प्रोफेसर (AGP 9500) के पद पर पदोन्नति मिली, तो उनकी पदोन्नति को बिना किसी ठोस कारण के रोक दिया गया। उनका आरोप है कि 2018-2019 के दौरान उन्हें जानबूझकर पीएचडी छात्र आवंटन और शोध संसाधनों से वंचित रखा गया, जबकि उनके कुछ सहकर्मियों को, जिनमें से कुछ प्रभावशाली जातियों से थे, केवल दो साल में पांच छात्र आवंटित किए गए।

इस संबंध में उन्होंने MNNIT के निदेशक, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष और आंतरिक SC/ST सेल से लगातार शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। बल्कि, उनका कहना है कि उन्हें धमकी भरे ईमेल, झूठी शिकायतें और अनुशासनात्मक नोटिस देकर चुप कराने की कोशिश की गई। SC/ST सेल, जिसका काम वंचित समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना है, प्रशासनिक दबाव में निष्क्रिय बना रहा।

न्याय की तलाश में डॉ. नायक ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST), शिक्षा मंत्रालय, जनजातीय कार्य मंत्रालय, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और यहां तक कि राष्ट्रपति भवन तक अपनी बात पहुंचाई। NCST ने उनके पक्ष में सिफारिशें भी जारी कीं, लेकिन MNNIT प्रशासन ने इन्हें लागू नहीं किया। शिकायतों को PG पोर्टल पर डाला गया, लेकिन उन्हीं अधिकारियों के पास भेज दिया गया जिनके खिलाफ शिकायत थी, और बिना किसी नतीजे के मामला बंद कर दिया गया। स्थानीय पुलिस में दर्ज कराई गई FIR भी प्रभावशाली हस्तक्षेप के कारण दबा दी गई।

सबसे दुखद बात यह रही कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में उनके अपने वकील ने ही उनके मामले को कमजोर कर दिया, जबकि विपक्षी वकील ने उन्हें केस लड़ने से रोकने के लिए धमकाया। डॉ. नायक का सवाल है - "क्या भारत में एक ST व्यक्ति वकील होने के बावजूद भी न्याय नहीं पा सकता?"

अपने पत्र में डॉ. नायक ने साफ किया है कि यह सिर्फ उनकी व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है, बल्कि हर उस वंचित शिक्षक की लड़ाई है जो ऐसी ही परिस्थितियों से जूझ रहा है। उन्होंने PM मोदी से तत्काल पिछली तारीख से पदोन्नति, MNNIT में जातिगत भेदभाव की CBI जांच, दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई और केंद्रीय संस्थानों में SC/ST अधिकारों की रक्षा के लिए सुधारों की मांग की है।

ज्ञातव्य है कि हाल ही आँध्रप्रदेश के श्री वेंकटेश्वर वेटरनरी यूनिवर्सिटी (SVVU) के डेयरी टेक्नोलॉजी कॉलेज के एक दलित शिक्षक ने भी इसी तरह अपने साथ जातिगत भेदभाव और संस्थागत उत्पीडन की शिकायत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पिछले माह भेजी थी।

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