नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार करने का निर्णय लिया है, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित एकल माताओं के बच्चों को ओबीसी प्रमाणपत्र जारी करने के लिए मौजूदा नियमों में बदलाव करने की मांग की गई है।
न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस याचिका में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया गया है। कोर्ट ने कहा, “यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिस पर सुनवाई की जानी चाहिए।”
यह याचिका दिल्ली निवासी एक महिला ने दाखिल की है। जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा था। केंद्र सरकार ने दलील दी कि इस विषय पर व्यापक विचार करने की आवश्यकता है, और सभी राज्यों को इस मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए ताकि कोर्ट इस पर उचित दिशा-निर्देश जारी कर सके।
अगली सुनवाई 22 जुलाई को निर्धारित की गई है। कोर्ट ने 2012 के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें इस प्रश्न पर विचार किया गया था कि यदि माता-पिता में से एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित है, तो बच्चे को किस वर्ग में शामिल किया जाएगा।
याचिकाकर्ता संतोष कुमारी, जिनका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता डावनीश शक्तिवत्स कर रहे हैं, ने तर्क दिया कि ओबीसी प्रमाणपत्र जारी करने में मां की जाति पहचान को आधार नहीं बनाया जाता है। ओबीसी प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करने वाले बच्चे को पिता के परिवार के किसी रिश्तेदार, जैसे पिता, दादा या चाचा का प्रमाणपत्र जमा करने के लिए बाध्य किया जाता है।
याचिका में कहा गया कि एकल माताओं के बच्चों को केवल मां के ओबीसी प्रमाणपत्र के आधार पर प्रमाणपत्र जारी न करना उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। जबकि अनुसूचित जाति/जनजाति से संबंधित एकल माताओं के बच्चों को केवल मां के आधार पर ही जाति प्रमाणपत्र मिल जाता है।
याचिका में दिल्ली सरकार के दिशा-निर्देशों का हवाला दिया गया, जिसके तहत ओबीसी प्रमाणपत्र पाने के लिए पिता, दादा या अन्य पितृ पक्ष के रिश्तेदार के ओबीसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता होती है।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अगले महीने फिर से सुनवाई करेगा। केंद्र सरकार से इस संवैधानिक और कानूनी प्रश्न पर अपना पक्ष रखने को कहा गया है।