इम्फाल: मणिपुर के दो प्रमुख संगठनों थाडौ इनपी मणिपुर और मैतेई अलायंस ने केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय को ज्ञापन देकर मांग की है कि राज्य की अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची से 'एनी कुकी ट्राइब्स' (AKT) श्रेणी को तुरंत हटाया जाए। उनका आरोप है कि यह श्रेणी संवैधानिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से अमान्य है और इसके कारण जनजातीय अधिकारों का दुरुपयोग, विदेशियों का घुसपैठ और सामुदायिक तनाव बढ़ रहा है।
जनजाति मंत्री जुएल ओराम को भेजे ज्ञापन में बताया गया कि मणिपुर सरकार ने 19 अक्टूबर 2018 और 2 जनवरी 2023 को कैबिनेट बैठकों में AKT को हटाने की सिफारिश की थी। 8 फरवरी 2023 को केंद्रीय मंत्रालय को भेजे गए पत्र में भी इसकी पुष्टि हुई। संगठनों का कहना है कि 2003 में राजनीतिक फायदे के लिए इसे गैर-पारदर्शी तरीके से सूची में शामिल किया गया था।
'AKT एक कृत्रिम श्रेणी, कोई ऐतिहासिक या सांस्कृतिक आधार नहीं'
ज्ञापन में बताया गया कि AKT के तहत कोई विशिष्ट जनजाति, भाषा या संस्कृति नहीं आती। यह एक ढीला-ढाला शब्द है, जिसमें कुकी-खोंगसाई, कुकी-रोहिंग्या जैसे नाम जोड़कर अवैध घुसपैठियों को भी जनजातीय अधिकार दिलाए जा सकते हैं।
AKT का 95% हिस्सा थाडौ जनजाति से मेल खाता है, जो 1951 से ही मणिपुर की एसटी सूची में है। 2011 की जनगणना में थाडौ की आबादी 2,15,913 थी, जबकि AKT के नाम पर 28,306 लोगों को अलग से गिना गया, जो आधारहीन है।
1956 से पहले 'एनी कुकी', 'एनी नागा' जैसे अस्थायी श्रेणियां थीं, लेकिन काका कालेलकर आयोग की सिफारिश पर इन्हें हटाकर 29 स्पष्ट जनजातियों को सूची में जगह दी गई। 2003 में AKT को फिर से जोड़ना इतिहास की उपेक्षा है।
इससे बढ़ रहा है सामाजिक विभाजन और अवैध घुसपैठ का खतरा
ज्ञापन में दावा किया गया है कि AKT के नाम पर म्यांमार, बांग्लादेश से आए लोग भी खुद को मणिपुर की जनजाति बता रहे हैं। इससे जमीन, संसाधनों और आरक्षण पर अवैध दावे बढ़ रहे हैं।
मणिपुर में भी 10 लाख से ज्यादा फर्जी जनजातीय प्रमाणपत्र जारी होने का खतरा है, जैसा महाराष्ट्र में हुआ था। AKT को लेकर थाडौ, मैतेई और नागा समुदायों में तनाव है। मई 2023 में हुई हिंसा का एक कारण यह भी था।
संगठनों का कहना है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 342 के अनुसार एसटी मान्यता के लिए अलग भाषा, संस्कृति और भौगोलिक एकाकीपन जरूरी है। AKT में ये सभी मानक गायब हैं।
AKT की कोई अपनी भाषा नहीं, ये लोग थाडौ, पैते या अन्य जनजातियों की भाषा बोलते हैं।इनके रीति-रिवाज, पोशाक थाडौ जैसे ही हैं। AKT का कोई निश्चित इलाका नहीं, जबकि अन्य जनजातियों के पारंपरिक क्षेत्र स्पष्ट हैं।
संगठनों का कहना है कि AKT को हटाने से मणिपुर की मूल जनजातियों के अधिकार सुरक्षित होंगे। अगर हर उप-समूह को अलग एसटी दर्जा मिलने लगा, तो समाज टुकड़ों में बंट जाएगा।ज्ञापन में कहा गया कि मणिपुर की अन्य अनुसूचित जनजातियाँ भी 'एनी कुकी ट्राइब्स' को मान्यता नहीं देतीं। इस अस्पष्ट श्रेणी के कारण सामाजिक एकता टूट रही है और विवाद बढ़ रहे हैं। मणिपुर के लिए अनुसूचित जनजातियों की वर्तमान सूची में ऐतिहासिक रूप से मान्यता प्राप्त और विशिष्ट सभी जनजातियाँ (थाडौ, पैते, वैफेई, सिमटे, हमार, गंगटे, आदि) शामिल हैं। उनमें से केवल AKT में परिभाषा या उपसर्ग/प्रत्यय का अभाव है, जो इसे कानूनी विसंगति बनाता है। यह अन्य सभी जनजातियों की अच्छी तरह से परिभाषित और सुसंगत मान्यता के विपरीत है।
ज्ञापन में कहा गया कि असम और मेघालय में 'कोई भी कुकी जनजाति' या नागालैंड में 'कुकी' का उपयोग मणिपुर पर लागू नहीं किया जा सकता। ये उन राज्यों के लिए विरासत वर्गीकरण हैं जहाँ जनजातीय मानचित्रण कम परिष्कृत है। दूसरी ओर, मणिपुर में ऐतिहासिक, भाषाई और नृवंशविज्ञान (ethnographic clarity) स्पष्टता के आधार पर पूरी तरह से परिभाषित एसटी सूची है।
AKT के समर्थकों का कहना है कि यह श्रेणी कुकी-चिन-मिजो समुदायों को एक साथ लाती है, लेकिन विरोधी इसे राजनीतिक षड्यंत्र बताते हैं।
अब देखना होगा कि केंद्र सरकार इस मांग पर क्या कदम उठाती है। मणिपुर में पहले से ही जनजातीय समूहों के बीच तनाव चल रहा है, और यह मुद्दा और विवाद पैदा कर सकता है।