भारत में मैनुअल स्कैवेंजरों की मौतें रुकने का नाम नहीं ले रहीं — क्या सरकार जानबूझकर कर रही है नजरअंदाज़?

09:56 AM May 24, 2025 | The Mooknayak

नई दिल्ली — भारत सरकार द्वारा मैनुअल स्कैवेंजिंग के उन्मूलन का दावा ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर नज़र आता है। हाल ही में देश के विभिन्न हिस्सों में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हो रही मौतों की श्रृंखला ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं — क्या यह सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही है, या जातिगत अन्याय की गहराई में जमी एक संरचनात्मक समस्या?

दिल्ली और कोलकाता में फरवरी की शुरुआत में दर्दनाक घटनाएँ

2 फरवरी को दिल्ली के नरेला स्थित मंसा देवी अपार्टमेंट्स के पास दो सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई, जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया। इन कर्मचारियों को निजी ठेकेदार ने बिना किसी सुरक्षा उपकरण के जहरीले सीवर में उतारा था।

उसी दिन कोलकाता के बंटाला क्षेत्र में तीन मजदूरों — फर्ज़ेम शेख, हाशी शेख और सुमन सरदार — की जान चली गई, जब पाइप फटने के कारण वे मैनहोल में बह गए। ये सभी मजदूर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के निवासी थे और कोलकाता महानगर विकास प्राधिकरण (KMDA) द्वारा नियोजित थे।

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद जारी हैं मौतें

उक्त घटनाएं 29 जनवरी को आए उस ऐतिहासिक फैसले के चार दिन बाद घटीं जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने मैनुअल स्कैवेंजिंग और खतरनाक सीवर सफाई को देश के प्रमुख महानगरों में प्रतिबंधित कर दिया था। यह आदेश जस्टिस सुधांशु धूलिया और अरविंद कुमार की पीठ ने दिया था।

मार्च से मई 2025 तक मौतों का भयावह सिलसिला

  • तिरुप्पुर, तमिलनाडु (19 मई): तीन दलित मजदूर — सरवनन, वेणुगोपाल और हरिकृष्णन — अलाया डाइंग मिल्स में जहरीली गैस की चपेट में आकर मारे गए। एक अन्य अस्पताल में भर्ती है।

  • खंडवा, मध्य प्रदेश (3 अप्रैल): गंगौर त्योहार से पहले कुएं की सफाई करते हुए आठ लोगों की जान चली गई।

  • फरीदाबाद, हरियाणा (21 मई): सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान एक सफाई कर्मी की मौत हुई, और उसे बचाने गए मकान मालिक की भी जान चली गई। पुलिस ने FIR दर्ज नहीं की।

  • अहमदाबाद, गुजरात (16 मई): तीन युवा मजदूर एक बंद फैक्ट्री के सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मारे गए। किसी प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी।

फरवरी से मई 2025 के बीच देशभर में कम से कम 20 सफाईकर्मियों की जान जा चुकी है।

संरचनात्मक अन्याय और जातिगत भेदभाव

आंकड़ों के अनुसार, भारत के 92% सफाई कर्मचारी अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्गों से आते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि ये मौतें केवल ‘दुर्घटनाएँ’ नहीं, बल्कि प्रणालीगत जातिवाद और आर्थिक शोषण की परिणति हैं।

दलित-आदिवासी संगठन DASAM की मांगें

दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (DASAM) ने इन घटनाओं पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए सरकार से निम्नलिखित माँगें की हैं:

  • सभी घटनाओं में FIR की तत्काल दर्ज़गी (मैनुअल स्कैवेंजर्स अधिनियम 2013, SC/ST एक्ट, और BNS की संबंधित धाराओं के तहत)।

  • प्रत्येक मामले की स्वतंत्र और समयबद्ध न्यायिक जांच।

  • पीड़ितों के परिजनों को 30 लाख रुपये मुआवज़ा, साथ ही आवास, शिक्षा, और आजीविका का पूर्ण पुनर्वास।

  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित करने हेतु केंद्रीय निगरानी निकाय का गठन।

  • ऐसे कार्यों में लगे ठेकेदारों के लाइसेंस रद्द किए जाएँ।

  • पूरे देश में सफाई व्यवस्था और निजी ठेकों का राष्ट्रीय ऑडिट।

सवाल व्यवस्था पर है, न कि सहानुभूति पर

DASAM का कहना है कि यह केवल दया या करुणा का विषय नहीं, बल्कि संवैधानिक कर्तव्यों, कानूनी जवाबदेही और मानवीय गरिमा का मामला है। सफाईकर्मियों की मौतों को सामान्य मान लेना, एक सभ्य समाज के चेहरे पर धब्बा है।

संगठन ने बयान में कहा, "इन मजदूरों की जान की कीमत है। उनकी मौतें रोकी जा सकती थीं। और अगर हमने अब भी चुप्पी साधी, तो हम भी इस अन्याय में भागीदार होंगे।"