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Article 15(5) में SC/ST/OBC छात्रों को निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण: बहुजन आबादी 90 फीसदी लेकिन 0.53% आदिवासी, 0.89% दलित और 11% ओबीसी स्टूडेंट्स ही पहुंचे!

नई दिल्ली- कांग्रेस नेताओं राजेंद्र पाल गौतम, MLA डॉ. विक्रांत भूरिया और अनिल जयहिंद ने पिछले दिनों एक आक्रमक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी नीत केंद्र सरकार पर निजी शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के छात्रों के लिए संवैधानिक आरक्षण को लागू न करने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 15(5) के तहत दिए गए अधिकारों की अनदेखी को उजागर किया, जो निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में SC, ST और OBC छात्रों के लिए आरक्षण का प्रावधान करता है।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति की हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए, नेताओं ने खुलासा किया कि निजी संस्थानों में केवल 12% बहुजन छात्र ही पहुंच पाए हैं। इसमें SC की भागीदारी 0.89% और ST की 0.53% है जो बहुत दुखद है और समाज में व्याप्त भेदभाव और वंचित समुदायों के पिछड़ेपन को रेखांकित करती है।

उन्होंने इसका कारण बीजेपी की 11 साल की निष्क्रियता, शिक्षा का निजीकरण, और बढ़ती फीस को बताया। कांग्रेस ने तत्काल कानून, मुफ्त कोचिंग, छात्रवृत्ति, और भेदभाव-विरोधी उपायों की मांग की, ताकि बहुजन छात्रों को समान अवसर मिल सकें।

अनुच्छेद 15(5) और कानूनी जीत, फिर भी लागू नहीं

AICC के SC विभाग के राष्ट्रीयअध्यक्ष राजेंद्र पाल गौतम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत में भारत की बढ़ती जनसंख्या और उच्च शिक्षा की बढ़ती मांग पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि सरकारी शिक्षण संस्थानों की कमी के कारण निजी संस्थानों की संख्या बढ़ी है, लेकिन आरक्षण की अनुपस्थिति और ऊंची फीस ने SC, ST और OBC छात्रों के लिए इन संस्थानों को पहुंच से बाहर कर दिया है। गौतम ने यूपीए-1 सरकार के तहत पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा किए गए ऐतिहासिक संशोधन की चर्चा की, जिसने अनुच्छेद 15(5) को संविधान में जोड़ा। यह अनुच्छेद OBC के लिए 27%, SC के लिए 15%, और ST के लिए 7.5% आरक्षण का प्रावधान करता है, जिसमें निजी शिक्षण संस्थान भी शामिल हैं।

उन्होंने तीन महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट फैसलों का जिक्र किया, जिन्होंने इस प्रावधान को वैध ठहराया। 2008 में अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने निजी संस्थानों में SC/ST/OBC के लिए आरक्षण को सही ठहराया। 2011 में भारतीय चिकित्सा संघ की चुनौती को खारिज करते हुए इसे और मजबूत किया गया। अंततः, 2014 में प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अनुच्छेद 15(5) संवैधानिक है और यह किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता। गौतम ने जोर देकर कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें इसे लागू कर सकती हैं, लेकिन 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से 11 साल में कोई प्रभावी कानून नहीं बना।

गौतम ने निजी संस्थानों की फीस संरचना को भी बाधा बताया। उदाहरण के लिए: बिट्स पिलानी में बी.फार्म डिग्री की वार्षिक लागत 11 लाख रुपये है, जो चार साल की डिग्री के लिए 44 लाख रुपये तक पहुंचती है। ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में 2025-26 के लिए बीए प्रोग्राम की ट्यूशन फी 6.5 लाख रुपये और हॉस्टल फी 3.5 लाख रुपये है, जो प्रति वर्ष करीब 10 लाख रुपये है। छह साल के बीए ऑनर्स जैसे पाठ्यक्रमों की लागत 60 लाख रुपये से अधिक हो सकती है। गौतम ने कहा कि क्लास 1 नौकरशाहों के लिए भी ऐसी फीस वहन करना असंभव है, जिससे SC/ST/OBC छात्र शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।

संसदीय समिति की रिपोर्ट: केवल 12% बहुजन प्रतिनिधित्व

नेताओं ने दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला और युवा मामलों पर केंद्रित थी। विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, उच्च शिक्षा अधिकारियों और प्रमुख संस्थानों के साथ व्यापक संवाद के बाद, समिति ने चौंकाने वाले आंकड़े प्रस्तुत किए: निजी शिक्षण संस्थानों में SC छात्रों की हिस्सेदारी केवल 0.89%, ST की 0.53%, और OBC की 11.16% है। यह 90% बहुजन आबादी (SC/ST/OBC) के लिए केवल 12% प्रतिनिधित्व दर्शाता है, जो समानता के सिद्धांत को कमजोर करता है।

अखिल भारतीय आदिवासी कांग्रेस के चेयरमैन डॉ. विक्रांत भूरिया ने शिक्षा को “शेरनी का दूध” बताते हुए बाबासाहेब आंबेडकर के कथन को उद्धृत किया कि समानता के लिए वोट का अधिकार और आरक्षण अनिवार्य हैं। उन्होंने बीजेपी पर “नियोजित षड्यंत्र” का आरोप लगाया, जिसमें सरकारी संस्थानों को कमजोर करना, नए संस्थान न खोलना, और पुरानों को बंद करना शामिल है। इससे शिक्षा निजी क्षेत्र में चली गई, जहां आरक्षण लागू नहीं होता। भूरिया ने कहा कि 90% बहुजन समाज को केवल 12% प्रतिनिधित्व मिलना “लोकतंत्र की सबसे बड़ी विडंबना” है।

समिति, जिसमें 31 सांसद विभिन्न दलों से शामिल थे, ने सर्वसम्मति से निजी उच्च शिक्षा में SC के लिए 15%, ST के लिए 7.5%, और OBC के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की। भूरिया ने अनुच्छेद 15(5) को “क्रांतिकारी” बताया, लेकिन बीजेपी की 11 साल की निष्क्रियता को निशाना बनाया, यह कहते हुए कि सरकार कॉरपोरेट हितों को प्राथमिकता देती है। उन्होंने वोट चोरी, PSU निजीकरण, और शिक्षा से वंचित करने को 90% आबादी के खिलाफ व्यवस्थित अन्याय बताया।

रिपोर्ट में प्रीमियर संस्थानों में जाति-आधारित भेदभाव का भी जिक्र है, जहां आरक्षण कोटा के तहत भर्ती SC/ST छात्रों को सहपाठियों और फैकल्टी से कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जो उनके प्रदर्शन और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। समिति ने सख्त भेदभाव-विरोधी नीतियां, शिकायत निवारण सेल, संवेदीकरण कार्यक्रम, मुफ्त कोचिंग, ब्रिज कोर्स, और वित्तीय कारणों से ड्रॉपआउट रोकने के लिए छात्रवृत्ति की सिफारिश की।

बीजेपी की निष्क्रियता और तत्काल कार्रवाई की मांग

एआईसीसी के ओबीसी विंग के अध्यक्ष अनिल जयहिंद ने OBC होने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर मनुस्मृति समर्थकों से भी अधिक नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया। चौधरी ने कहा कि 29 जनवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने यूपीए के कानून को संवैधानिक ठहराया था, लेकिन बीजेपी ने 11 साल तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया, जबकि EWS आरक्षण 48 घंटे में पारित कर दिया गया।

उन्होंने संसदीय आंकड़ों का हवाला दिया: भारत में 517 निजी विश्वविद्यालय और 45,000 से अधिक डिग्री कॉलेज हैं, जिनमें केवल 21.5% सरकारी हैं (जहां आरक्षण लागू होता है) और 78.5% निजी हैं (बिना आरक्षण के)। चौधरी ने पिछले 11 वर्षों को स्वतंत्रता के बाद SC/ST/OBC के लिए “सबसे अंधकारमय” बताया, जिसमें महंगी शिक्षा और निजीकरण के जरिए मनुवादी व्यवस्था की वापसी हो रही है। उन्होंने नियुक्तियों में “नॉट फाउंड सूटेबल” (NFS) प्रथा की आलोचना की, जहां योग्य SC/ST/OBC उम्मीदवारों को अस्वीकार किया जाता है, और OBC क्रीमी लेयर आय सीमा (2017 से 8 लाख रुपये, 2020 में समीक्षा होनी थी) की अनदेखी की।

चौधरी ने मांग की कि गैर-क्रीमी लेयर OBC की खाली सीटें क्रीमी लेयर OBC को दी जाएं, जैसा EWS में होता है। उन्होंने राहुल गांधी की जाति जनगणना की मांग की सराहना की, बीजेपी की शुरुआती आलोचना और बाद में जन दबाव में स्वीकृति की तुलना की, लेकिन 2021 में होने वाली जनगणना की देरी पर सवाल उठाए। उन्होंने तेलंगाना जैसे व्यापक सर्वेक्षण की मांग की, जो सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, और राजनीतिक आयामों को कवर करे। मंडल आयोग की 38 बकाया सिफारिशों और तेलंगाना-बिहार की OBC आरक्षण मांगों को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की भी मांग की।

नेताओं ने दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट को मंडल आयोग की तरह सामाजिक न्याय का मील का पत्थर बताया। उन्होंने केंद्र सरकार से अनुच्छेद 15(5) के पूर्ण कार्यान्वयन, निजी संस्थानों में आरक्षण, और हाशिए के छात्रों के लिए सहायता तंत्र की मांग की। प्रेस कॉन्फ्रेंस पत्रकारों के सवालों के साथ समाप्त हुई, जिसमें कांग्रेस ने न्याय, समानता, और भाईचारे के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।

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