भोपाल। हरदा में भाजपा नेता और पूर्व मंत्री कमल पटेल के बेटे संदीप पटेल और हरदा कृषि मंडी समिति के अधिकारियों ने मंडी की जमीन को लेकर एक बड़े घोटाले को अंजाम दिया है। द मूकनायक की पड़ताल में खुलासा हुआ है कि मंडी की जमीन को कागजों में हेरफेर कर एक पेट्रोलपंप कंपनी को उप-पट्टे पर दे दिया गया। खास बात यह है कि मध्य प्रदेश कृषि उपज मंडी अधिनियम, 1972 के तहत ऐसी जमीन को उप-पट्टे पर दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। इसके बावजूद, संदीप पटेल और मंडी समिति ने एक बैठक आयोजित कर फर्जी प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव के आधार पर एक फर्जी नोटशीट तैयार की जिससे जमीन को उप-पट्टे पर देना वैध हो गया।
पड़ताल के अनुसार, अधिनियम में संशोधन हुए बगैर एक नोटशीट बनाई गई जिसके आधार पर संदीप पटेल को पेट्रोल पंप कंपनी के साथ एग्रीमेंट करने अधिकृत कर दिया गया। इससे साफ है कि मंडी समिति और पूर्व मंत्री कमल पटेल के बेटे संदीप पटेल ने झूठे दस्तावेज तैयार करवाए और इस घोटाले को अंजाम दिया। इस प्रक्रिया में मंडी समिति के अधिकारियों और पेट्रोलपंप कंपनी के बीच मिलीभगत होने की आशंका है। इसके साथ ही संदीप पटेल ने 23,500 रुपये प्रतिमाह का पेट्रोल पंप कम्पनी से एक एग्रीमेंट किया। जिसका मासिक किराया संदीप पटेल ले रहे हैं। सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 (RTI) से मिले दस्ताबेजों से यह खुलासा हुआ है। द मूकनायक की इस खास रिपोर्ट में हर पहलू से समझिए 'हरदा मंडी घोटाले' की कहानी।
दरअसल, साल 2005 में मंडी समिति ने अपनी जमीन का एक हिस्सा पूर्व मंत्री के बेटे संदीप पटेल को पट्टे पर दिया था। पट्टे की शर्तों के अनुसार, दो वर्षों के भीतर जमीन का उपयोग किया जाना था। साथ ही, इसे उप पट्टे पर देना भी निषिद्ध था। हालांकि, 2009 तक जमीन पर कोई कार्य शुरू नहीं हुआ। नियमों के उल्लंघन के बावजूद, रसूख के चलते न तो पट्टा निरस्त किया गया और न ही कोई कार्रवाई हुई। बता दें की 2003 से 2013 तक कमल पटेल भाजपा से विधायक थे। उनका हरदा क्षेत्र में रसूख है।

उप पट्टे पर देने का ऐसे हुआ खेल
साल 2010 में संदीप पटेल ने मंडी को पत्र लिखकर उक्त भूमि को पेट्रोल पंप लगाने के लिए उप पट्टे (सबलीज) पर देने की अनुमति मांगी। इसके बाद हिंदुस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड ने भी मंडी सचिव को पत्र लिखकर जमीन की मांग की। इस घटनाक्रम से मंडी समिति, संदीप पटेल, और पेट्रोल पंप कंपनी के बीच मिलीभगत स्पष्ट नजर आई।
साल 2010 में मंडी समिति ने मध्यप्रदेश राज्य कृषि विपणन (मंडी) बोर्ड, भोपाल को एक प्रस्ताव भेजा। इसमें मध्य प्रदेश कृषि उपज मंडी अधिनियम, 1972 की नियमावली के तहत मंडी समिति-संदीप पटेल के बीच एग्रीमेंट (अनुबंध) की शर्तों की कंडिका आठ में संशोधन की मांग की गई ताकि उप पट्टे पर देने का रास्ता साफ हो सके। बोर्ड से मंजूरी न मिलने पर तत्कालीन मंडी सचिव संजीव श्रीवास्तव ने एक फर्जी नोटशीट तैयार की और उसमें मंडी समिति की बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लेकर कंडिका आठ को समाप्त कर दिया। जबकि यह मंडी समिति के अधिकार क्षेत्र में था ही नहीं।
02 अगस्त 2010 को संदीप पटेल से किये गए एग्रीमेंट की कंडिका आठ में संशोधन दिखाकर जमीन को उप पट्टे पर देने का प्रावधान लागू किया गया। जिसमें यह साफ लिखा था, की संदीप उस भू-भाग को उप पट्टे पर नहीं दे सकता था।
लेकिन फर्जी नोटशीट के आधार पर 11 फरवरी 2011 को पूर्व मंत्री कमल पटेल के बेटे संदीप पटेल और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड के बीच अनुबंध हुआ। इस अनुबंध के तहत संदीप पटेल को 1 सितंबर 2010 से 31 जुलाई 2036 तक प्रतिमाह 23,500 रुपये किराया (रेंट) दिए जाना तय किया गया। यह अनुबंध इस बात का प्रमाण है कि जिस जमीन को सेवा कार्यों के लिए पट्टे पर दिया गया था, उसे व्यावसायिक उद्देश्य के लिए संदीप ने उपयोग में लाया।

मंडी समिति द्वारा दी गई जमीन को सेवा कार्यों के लिए उपयोग न करते हुए व्यापारिक हितों के लिए इस्तेमाल करना नियमों का उल्लंघन है। संदीप पटेल ने इस जमीन पर पेट्रोल पंप लगाकर न केवल मूल शर्तों को दरकिनार किया, बल्कि मंडी समिति की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर दिए। और यह सब इसलिए किया क्योंकि पिता कमल पटेल उस क्षेत्र के रसूखदार नेता हैं।
पूर्व मंत्री के बेटे ने इसलिए रचा फर्जीवाड़े का जाल
साल 2008 ( इससे पूर्व में भी) में संदीप पटेल पर हत्या के प्रयास का मामला दर्ज हुआ था, जिससे उसके नाम से पेट्रोल पंप स्थापित करने के लिए आवश्यक चरित्र प्रमाण पत्र और अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) मिलना असंभव था। नियमों के अनुसार, पुलिस अधीक्षक और जिला कलेक्टर से मंजूरी लेना अनिवार्य था। जो उसे नहीं मिल सकती थी। इसलिए पेट्रोल पंप के अधिकारियों से मिलकर संदीप ने यह योजना बनाई थी। उसने साठगांठ कर एचपीसीएल कंपनी को उप पट्टे पर जमीन दी और उस एवज में महीने का किराया मांगा। संदीप ने इस घोटाले को अंजाम देने के लिए अपने पिता पूर्व मंत्री कमल पटेल के रसूख का भरपूर इस्तेमाल किया।
संदीप पटेल ने मंडी समिति और पेट्रोल पंप कंपनी के साथ मिलीभगत कर फर्जी नोटशीट और दस्तावेज तैयार करवाए। इस प्रकरण में सत्ता और प्रभाव का दुरुपयोग साफ दिखाई देता है, जहां नियमों और कानून की अनदेखी कर निजी स्वार्थ सिद्ध किए गए।
संदीप पटेल को दिए गए पट्टे के भू-भाग का कृषि उपज मंडी द्वारा निर्धारित वार्षिक किराया 8,778 रुपये था। हालांकि, संदीप पटेल ने हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) के साथ अनुबंध करके पेट्रोल पंप के लिए प्रति माह 23,500 रुपये किराया तय किया। इस किराए में हर पांच वर्ष में 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी की शर्त भी जोड़ी गई, जो इस बात को दर्शाता है कि संदीप ने मंडी समिति से निर्धारित किराए से कहीं अधिक राशि प्राप्त की।
राजपत्र में नहीं हुआ संशोधन
मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी अधिनियम 1972 में आखिरी बार 25 मई 2009 को राजपत्र प्रकाशित हुआ, जिसमें 13(2) के तहत यह स्पष्ट किया गया कि पट्टे पर दी गई भूमि को किराए पर नहीं दिया जा सकता। इससे पहले 14 अक्टूबर 2005 के राजपत्र के 12(6) में यह स्पष्ट था कि पट्टे पर दी गई भूमि को उप पट्टे पर नहीं दिया जा सकता। इसके अलावा, 15(2) के तहत यह भी निर्धारित किया गया था कि यदि पट्टे पर दी गई भूमि का उपयोग दो वर्षों के भीतर नहीं किया जाता है, तो मंडी समिति के पास उसे वापस लेने का अधिकार है। बावजूद इसके, संदीप पटेल द्वारा उक्त भूमि को उप पट्टे पर दिया जाना और उपयोग न करना नियमों का उल्लंघन है।
मध्यप्रदेश राज्य कृषि विपणन (मंडी) बोर्ड भोपाल के अपर संचालक अरुण कुमार विश्वकर्मा (IAS) ने द मूकनायक के प्रतिनिधि से बातचीत के दौरान स्पष्ट किया कि मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी अधिनियम, 1972 में 25 मई 2009 के बाद कोई संशोधन नहीं हुआ है। उन्होंने 2010 में किसी भी नियम में किए गए संशोधन को पूरी तरह नकारा, यह बताते हुए कि अगर कोई संशोधन होता, तो उसे राजपत्र में प्रकाशित किया जाता।
अरुण कुमार विश्वकर्मा ने कहा कि नियमों में किसी भी प्रकार के बदलाव के लिए उसे राजपत्र में प्रकाशित किया जाना अनिवार्य है। इस प्रकार, उनके अनुसार 2010 में किसी भी संशोधन की बात पूरी तरह गलत है। (द मूकनायक से बातचीत के कुछ दिन बाद अरुण विश्वकर्मा का स्थान्तरण रायसेन कलेक्टर के पद पर हो गया है।)
जांच के बाद होगी कार्यवाही: कलेक्टर
इस संबंध में द मूकनायक के प्रतिनिधि ने हरदा जिला कलेक्टर आदित्य सिंह (IAS) से बातचीत की। कलेक्टर ने बताया कि यह मामला उनके संज्ञान में नहीं था, लेकिन अब जब यह जानकारी उनके पास आई है, तो वे इसकी जांच करवाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि यदि जांच में यह मामला सही पाया जाता है, तो नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी।
नोट: इस संबंध में द मूकनायक के पास आवेदक अंकित पचौरी द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 से प्राप्त सत्यापित दस्तावेज उपलब्ध हैं, जो इस घोटाले की पुष्टि करते हैं।