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MP: 27% OBC आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले कांग्रेस का वार, PCC चीफ बोले – 'कोर्ट का बहाना बनाकर भाजपा कर रही है ओबीसी वर्ग से धोखा'

भोपाल। मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27% आरक्षण देने का मामला एक बार फिर गरमा गया है। मंगलवार 22 अप्रैल को इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। इसके पहले, रविवार को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार अदालत का बहाना बनाकर ओबीसी आरक्षण के साथ न्याय नहीं कर रही है और इस वर्ग को लगातार गुमराह किया जा रहा है।

इस प्रेस वार्ता में ओबीसी महासभा की राष्ट्रीय कोर कमेटी के सदस्य धर्मेन्द्र कुशवाहा और सुप्रीम कोर्ट के वकील वरुण ठाकुर भी मौजूद रहे।

कमलनाथ सरकार ने दिया था 27% आरक्षण

पटवारी ने बताया कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ओबीसी समुदाय को 14% से बढ़ाकर 27% आरक्षण देने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया था। मार्च 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अध्यादेश लाकर यह व्यवस्था लागू की। इसके दो महीने बाद विधानसभा से इसे कानून का रूप दे दिया गया।

लेकिन इस बीच, एक एमबीबीएस की छात्रा से अदालत में याचिका दायर करवाई गई, जिसमें इस आरक्षण को चुनौती दी गई। पटवारी का आरोप है कि इस याचिका के पीछे भाजपा, आरएसएस और आरक्षण विरोधी ताकतें थीं। इसके बाद कोर्ट ने अध्यादेश पर रोक लगा दी और मामला आज तक लंबित है।

भाजपा सरकार ने कभी दिया, कभी छीना – ओबीसी वर्ग बना रहा असमंजस में

पटवारी ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ओबीसी आरक्षण को लेकर दोहरी नीति अपना रही है। कुछ नौकरियों में 27% आरक्षण लागू किया गया, लेकिन कई नियुक्तियों में इसे फिर से घटाकर 14% कर दिया गया। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार चुनाव के समय दिखावे के लिए आरक्षण लागू करती है और चुनाव बीतते ही उसे रोक देती है। जीतू पटवारी ने कहा, "यह आरक्षण नहीं, मज़ाक है। ओबीसी वर्ग को गुमराह करने का षड्यंत्र है।"

महाधिवक्ता पर लगे भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोप

प्रदेश के महाधिवक्ता प्रशांत सिंह पर भी पटवारी ने गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि प्रशांत सिंह ने सरकार के इशारे पर सुप्रीम कोर्ट में जानबूझकर मामले को उलझाया और इसके एवज में करोड़ों रुपये की फीस ली गई।

पटवारी ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि ओबीसी आरक्षण पर कोई स्टे नहीं है, तो फिर राज्य सरकार ने इसे लागू क्यों नहीं किया? उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि नर्सिंग घोटाले के मामलों में भी प्रशांत सिंह को मोटी फीस दी गई, जबकि आम लोगों के अधिकारों की अनदेखी की गई। पटवारी ने कहा, "हम इस पूरे मामले की शिकायत लोकायुक्त में करेंगे। यह जनता के पैसे की लूट है।"

जातिगत जनगणना की मांग – “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी”

कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा कि जातिगत जनगणना कराना अब वक्त की सबसे बड़ी ज़रूरत है। उन्होंने सामाजिक न्याय की मूल भावना को दोहराते हुए कहा कि जब तक हर जाति की आबादी का पता नहीं चलेगा, तब तक आरक्षण और भागीदारी का सही निर्धारण नहीं हो पाएगा।

पटवारी ने यह भी बताया कि 20 से अधिक युवाओं ने आत्महत्या कर ली क्योंकि उनकी नियुक्तियां वर्षों से रुकी हुई हैं। उन्होंने इसे प्रशासनिक पाप बताया और कहा कि सरकार को इस पर शर्म आनी चाहिए।

मांगें और चेतावनी

प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंत में कांग्रेस पार्टी और ओबीसी महासभा ने सरकार के सामने कुछ स्पष्ट मांगें रखीं:

  • मध्यप्रदेश में तुरंत 27% ओबीसी आरक्षण लागू किया जाए।

  • जातिगत जनगणना कराई जाए और उसके आधार पर योजनाएं बनाई जाएं।

  • नियुक्तियों में अटकी फाइलों को प्राथमिकता से हल किया जाए।

  • महाधिवक्ता और अन्य अधिकारियों की भूमिका की जांच कराई जाए।

  • जनता के टैक्स के पैसे से आरक्षण विरोधी वकीलों को फीस देना बंद किया जाए।

पटवारी ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने इन मांगों को अनसुना किया, तो ओबीसी महासभा के साथ कांग्रेस पूरे प्रदेश में जन-जागरण अभियान चलाएगी और सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेगी।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए, ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय कोर कमेटी सदस्य एडवोकेट धर्मेंद्र सिंह कुशवाहा ने कहा कि— "जब न्यायालय ने भर्ती प्रक्रिया पर कोई स्पष्ट रोक नहीं लगाई है, तो सरकार क्यों विभिन्न विभागों में भर्तियों को रोक रही है? हम मांग करते हैं कि जल्द से जल्द 27% आरक्षण के अनुरूप भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाए।"

कानून और संविधान का उल्लंघन?

संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) में राज्य सरकार को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने का अधिकार दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट भी कई मौकों पर यह स्पष्ट कर चुका है कि उचित आंकड़ों के आधार पर राज्य अपने स्तर पर आरक्षण का निर्णय ले सकते हैं।

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