भोपाल। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में आदिवासी परिवारों को उनकी पुश्तैनी जमीन से बेदखल करने की कथित कार्रवाई ने एक बार फिर आदिवासी अधिकारों को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं! इसी मुद्दे को लेकर मध्यप्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को एक पत्र लिखकर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने मांग की है कि इन आदिवासियों को तत्काल प्रभाव से राहत दी जाए और यदि 15 दिनों के भीतर समाधान नहीं हुआ, तो कांग्रेस पार्टी और आदिवासी समुदाय को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा।
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को लिखा पत्र
नेता प्रतिपक्ष ने अपने पत्र में स्पष्ट किया है कि बुरहानपुर जिले के नेपानगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत धूलकोट इलाके के लगभग 40 गांवों में करीब 8 हजार आदिवासी परिवार पीढ़ियों से निवासरत हैं और खेती-किसानी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। लेकिन हाल ही में वन विभाग और जिला प्रशासन द्वारा इन परिवारों को बेदखल करने की मुहिम चलाई जा रही है। उन्हें खेती से रोका जा रहा है, उनके ट्रैक्टर, बैल और कृषि उपकरण जब्त किए जा रहे हैं, और बिना किसी कानूनी सुनवाई के उनके वन अधिकार दावे खारिज कर दिए गए हैं।
सिंघार ने आरोप लगाया है कि इन कार्रवाइयों में वन अधिकार अधिनियम 2006 तथा उसके तहत बनाए गए नियमों का स्पष्ट उल्लंघन किया गया है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि ग्राम सभा की स्वीकृति के बिना, आदिवासियों को अपनी जमीन से हटाया कैसे जा सकता है?
उमंग सिंघार का कहना है कि इन आदिवासियों को ना तो अपनी बात रखने का अवसर मिला, ना ही कोई कानूनी प्रक्रिया पूरी की गई। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मध्यप्रदेश सरकार ने अब तक करीब 6.5 लाख वन अधिकार दावों में से 3 लाख से अधिक दावे खारिज कर दिए हैं, जिनमें से अधिकांश मामलों में कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया है। इससे यह प्रतीत होता है कि आदिवासियों के अधिकारों को व्यवस्थित रूप से कुचला जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि बुरहानपुर की स्थिति कोई अपवाद नहीं है, बल्कि प्रदेश के कई अन्य जिलों में भी इसी तरह की स्थिति बनी हुई है, जहां आदिवासियों को उनकी ही जमीन से बेदखल करने की कोशिश की जा रही है।
दशकों से यहां बसे आदिवासी
पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि जिन आदिवासी परिवारों के पूर्वज दशकों से जंगलों और इन जमीनों पर रहते आए हैं, उनके नाम आज तक रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किए गए हैं, जिससे उन्हें अपने ही घर और जमीन से बेदखल करने की सरकारी कोशिशें आसान हो गई हैं। यह न केवल वन अधिकार कानून का उल्लंघन है, बल्कि संविधान में आदिवासियों को दिए गए संरक्षण का भी मखौल है। सिंघार ने कहा है कि यह मामला केवल जमीन का नहीं है, बल्कि यह उनकी अस्मिता, आजीविका और पीढ़ियों के संघर्ष से जुड़ा सवाल है।
आंदोलन की चेतावनी
पत्र के अंत में उमंग सिंघार ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि वे इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करें और 15 दिनों के भीतर सभी दावों की पुनः जांच कराकर उन्हें न्याय दिलाएं। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने आदिवासी हितों की अनदेखी की, तो कांग्रेस पार्टी और आदिवासी समाज मिलकर व्यापक जन आंदोलन करेंगे, जिसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी। इस पत्र के साथ उन्होंने ज्ञापन, खारिज दावों की सूची और प्रभावित गांवों की जानकारी भी संलग्न की है, जिससे मामले की गंभीरता को सर्वोच्च स्तर पर समझा जा सके।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा है, कि बुरहानपुर जिले के नेपानगर क्षेत्र में रहने वाले हजारों आदिवासी परिवारों को उनकी पुश्तैनी जमीन से जबरन बेदखल किया जा रहा है। आदिवासियों के वन अधिकार दावे बिना सुनवाई के खारिज कर दिए गए हैं और उन्हें खेती से रोका जा रहा है। उनके ट्रैक्टर, बैल और खेती के औज़ार तक जब्त किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि यह सब वन अधिकार कानून 2006 और उसमें बनाए गए नियमों के खिलाफ है। आदिवासियों को अपनी बात रखने और कानूनी प्रक्रिया का अवसर भी नहीं दिया गया है।
उमंग सिंघार ने मांग की है कि इस अन्याय को रोका जाए और आदिवासियों को उनकी जमीन पर ही रहने दिया जाए। उन्होंने कहा कि अगर 15 दिनों के भीतर आदिवासियों के दावों का सही तरीके से निराकरण नहीं किया गया, तो उन्हें आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ेगा। सिंघार ने यह भी बताया कि सिर्फ बुरहानपुर ही नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश के कई जिलों में आदिवासियों के साथ ऐसा ही हो रहा है, जो बहुत ही चिंता की बात है।