भोपाल। बीना विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे की सदस्यता पर अंतिम फैसला अगले सप्ताह आने की संभावना है। विधानसभा सचिवालय ने उन्हें अपनी बात रखने का अंतिम अवसर प्रदान किया है। बता दें लोकसभा चुनाव के दौरान सप्रे का भाजपा को समर्थन करना और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के साथ मंच साझा करना है। उन्होंने मंच पर भाजपा की सदस्यता ली थी। इसके बाद भाजपा प्रदेश कार्यालय में उन्होंने पार्टी की बैठकों में भी हिस्सा लिया था।
विधानसभा सचिवालय ने दिया आखिरी मौका
निर्मला सप्रे ने स्पष्ट किया है कि वे विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर अपनी बात रखेंगी। कांग्रेस विधायक दल ने अध्यक्ष से आग्रह किया है कि आगामी 16 दिसंबर से शुरू होने वाले विधानसभा के शीतकालीन सत्र से पहले इस मामले का निपटारा किया जाए।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा, सदस्यता समाप्त हो
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने अध्यक्ष को दिए आवेदन में कहा है कि सप्रे ने भाजपा में शामिल होने की घोषणा की थी और पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम किया। उन्होंने इसके प्रमाण स्वरूप वीडियो, समाचार पत्रों की खबरें, और भाजपा कार्यालय में आयोजित बैठकों में सप्रे की मौजूदगी के फोटो भी प्रस्तुत किए हैं।
निर्मला सप्रे के निर्णय में असमंजस
सदस्यता छोड़ने के सवाल पर निर्मला सप्रे का रुख अब भी स्पष्ट नहीं है। सूत्रों के अनुसार, उन्होंने पहले दो बार नोटिस का जवाब देते हुए समय मांगा और अब सीधे अध्यक्ष से भेंट कर अपनी बात रखने की बात कही है।
विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने आरोप लगाया कि सप्रे के मामले में सभी प्रमाण उपलब्ध होने के बावजूद निर्णय में देरी की जा रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि शीतकालीन सत्र से पहले कोई फैसला नहीं लिया गया, तो कांग्रेस न्यायालय का रुख करेगी।
क्या सप्रे का मामला टल सकता है?
सूत्रों का कहना है कि रामनिवास रावत के उपचुनाव हारने के बाद निर्मला सप्रे के मामले को टाला जा सकता है। सप्रे बीना को जिला बनाने की मांग कर रही थीं, लेकिन खुरई में विरोध के चलते यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। खुरई के विधायक और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि पार्टी भले ही कांग्रेस से आए लोगों को स्वीकार कर ले, लेकिन वे इस फैसले का समर्थन नहीं करेंगे। सागर जिले में भाजपा के अधिकांश नेता भी सप्रे को लेकर एकमत नहीं हैं।
इधर, विधानसभा के प्रमुख सचिव एपी सिंह ने कहा कि सप्रे ने अध्यक्ष से व्यक्तिगत भेंट करके अपनी बात रखने का अनुरोध किया है। जल्द ही मामले का निपटारा किया जाएगा।
निर्मला सप्रे का सदस्यता विवाद न केवल उनके राजनीतिक भविष्य बल्कि कांग्रेस और भाजपा के बीच सागर जिले में बदलते समीकरणों को भी प्रभावित करेगा। कांग्रेस के लिए यह मामला पार्टी की एकजुटता का सवाल बन चुका है, जबकि भाजपा में भी सप्रे को लेकर विरोध के स्वर स्पष्ट हैं।
क्या है दल बदल कानून?
दल बदल कानून (Anti-Defection Law) भारत में 1985 में संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत लागू किया गया। इसका उद्देश्य निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा दल बदलने की प्रवृत्ति को रोकना था, जो राजनीतिक अस्थिरता का कारण बनती थी। इस कानून के तहत, यदि कोई विधायक अपनी पार्टी के व्हिप का उल्लंघन करता है, पार्टी छोड़ता है, या किसी अन्य दल में शामिल होता है, तो उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है। स्वतंत्र उम्मीदवार के चुनाव जीतने के बाद किसी पार्टी में शामिल होने पर भी यह कानून लागू होता है।
हालांकि, अगर किसी पार्टी के दो-तिहाई सदस्य किसी अन्य दल में विलय कर लेते हैं, तो इसे दल बदल नहीं माना जाएगा। यह कानून राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद करता है, लेकिन इसे लेकर कई विवाद भी हैं, जैसे कि स्पीकर के निर्णयों पर सवाल और पार्टी नेतृत्व द्वारा जनप्रतिनिधियों की स्वतंत्रता का हनन।