भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में सोमवार को ओबीसी आरक्षण से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले पर सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने याचिका क्रमांक WP/18105/2021 और इससे जुड़ी 82 अन्य याचिकाओं पर सुनवाई की। यह मामला ओबीसी आरक्षण के तहत चयनित अभ्यर्थियों को होल्ड किए जाने और सरकारी भर्तियों में आरक्षण के अनुपालन को लेकर उठा है।
याचिका राजनीतिक पार्टी, यूथ फॉर इक्वालिटी, द्वारा दायर की गई थी। इसमें सामान्य प्रशासन विभाग के 2 सितंबर 2021 को जारी निर्देशों को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने इस याचिका पर 4 अगस्त 2023 को एक अंतरिम आदेश पारित करते हुए इन निर्देशों पर रोक लगा दी थी।
ओबीसी वर्ग की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने अदालत में तर्क दिया कि 27% आरक्षण का मामला उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन इसे किसी भी स्तर पर स्थगित नहीं किया गया है। इसके बावजूद, महाधिवक्ता कार्यालय ने भर्तियों को 87% पर सीमित कर दिया और 13% ओबीसी उम्मीदवारों को होल्ड कर दिया गया।
होल्ड अभ्यर्थियों की स्थिति
अधिवक्ता ठाकुर ने बताया कि महाधिवक्ता कार्यालय के निर्देशों के कारण 2019 से शिक्षकों की भर्तियों सहित अन्य विभागों में ओबीसी के हजारों अभ्यर्थियों को होल्ड किया गया। इनमें लोक सेवा आयोग, शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग और पुलिस भर्ती जैसे प्रमुख विभाग शामिल हैं।
इन अभ्यर्थियों ने याचिका क्रमांक WP/18105/2021 में हस्तक्षेप याचिका दायर की, जिसमें कोर्ट से यह मांग की गई कि उन्हें होल्ड किए जाने के आदेश को निरस्त किया जाए और उनकी नियुक्तियों को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाए।
रामेश्वर सिंह ठाकुर ने अदालत को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दो ट्रांसफर याचिकाओं को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि जिन मामलों में कोई स्थगन आदेश नहीं है, वहां हाईकोर्ट मामले का निपटारा कर सकता है। हाईकोर्ट में भी ओबीसी के 27% आरक्षण को स्टे नहीं किया गया है, बावजूद इसके महाधिवक्ता कार्यालय की ओर से भर्तियों में यह आरक्षण प्रभावी रूप से लागू नहीं किया जा रहा है।
भर्ती प्रक्रिया पर प्रभाव
2019 से 2023 के बीच आयोजित लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं और 2022 में शुरू हुई शिक्षक, स्वास्थ्य और पुलिस विभाग की भर्तियों में ओबीसी उम्मीदवारों को होल्ड किए जाने के कारण हजारों उम्मीदवारों का भविष्य अधर में है।
अधिवक्ता ने आरोप लगाया कि महाधिवक्ता कार्यालय ने इन प्रकरणों में रूचि न लेकर मामले को उलझाने का काम किया है, जिससे ओबीसी वर्ग के हजारों उम्मीदवारों के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है।
आगामी सुनवाई 9 दिसंबर को
अदालत ने महाधिवक्ता कार्यालय को दो सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 9 दिसंबर 2024 को होगी
द मूकनायक से बातचीत करते हुए अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने कहा, "मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण के 27% प्रावधान को न तो हाईकोर्ट और न ही सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित किया है। इसके बावजूद, महाधिवक्ता कार्यालय द्वारा जारी अभिमत के आधार पर हजारों ओबीसी अभ्यर्थियों को भर्तियों से वंचित किया गया है। यह न केवल उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि वर्गीय न्याय की भावना के खिलाफ भी है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जिन मामलों में स्थगन नहीं है, वहां सुनवाई पूरी कर निर्णय दिया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को उनका अधिकार जल्द से जल्द मिले।"
इस मामले में विधि विशेषज्ञों का मानना है कि ओबीसी आरक्षण के तहत नियुक्ति प्रक्रिया में हो रही देरी संविधान के अनुच्छेद 16 और 15(4) का उल्लंघन है। यह वर्गीय न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है और राज्य सरकार को इस मामले में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।