जयपुर. राजस्थान के ट्रांसजेंडर समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल किए जाने के बाद गत सोमवार को जयपुर में एक ट्रांसजेंडर को पहला अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) प्रमाणपत्र जारी किया गया। जयपुर के उपखंड अधिकारी राजेश जाखड़ ने नूर शेखावत को प्रमाणपत्र सौंपा। नूर (30) राजस्थान की पहली व्यक्ति हैं, जिन्हें लिंग-वर्ग ट्रांसजेंडर लिखकर जन्म प्रमाणपत्र जारी किया गया। इधर, सरकार के इस कदम को लेकर ट्रांसजेंडर समुदाय से मिली-जुली प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है। समुदाय के कुछ लोगों ने जहां निर्णय को मील का पत्थर बताया है। वहीं कुछ ने इससे मिलने वाले फायदों पर शंका जाहिर की है।
जाखड़ ने कहा कि राजस्थान सरकार ने ट्रांसजेंडरों को अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में 92वें नंबर पर शामिल किया है, जिसके बाद ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग नियमानुसार अपना पिछड़ा वर्ग प्रमाणपत्र बनवा सकते हैं।
27 प्रतिशत मिलेगा आरक्षण
द मूकनायक से ट्रांसजेंडर नूर शेखावत ने कहा- "राज्य सरकार का यह कदम सराहनीय है। इससे राजस्थान के ट्रांसजेंडर समुदाय के करीब 35 हजार लोगों को फायदा मिलेगा। उनको ओबीसी के 27 प्रतिशत का आरक्षण मिलेगा। इससे उनको सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व व उच्च शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिलेगी।"
रहने को किराए पर मकान नहीं मिलता
"ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को शहरों में रहने के लिए बड़ी मुश्किल से किराए से मकान मिलता है। आरक्षण मिलने से हमें सरकार के आवासन मण्डल से प्लाट व आवास आरक्षित दरों पर प्राथमिकता से मिल पाएगा।" नूर ने कहा।
कौन हैं नूर शेखावत?
नूर शेखावत किन्नरों के अधिकारों के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया। कुछ दिनों पहले तक किसी भी ट्रांसजेंडर के नाम से जन आधार कार्ड नहीं बना था, क्योंकि ये परिवार की महिला मुखिया के नाम से बनता है. नूर शेखावत पहली ट्रांसजेंडर हैं, जिन्होंने जन आधार कार्ड के लिए अप्लाई किया था।
जन आधार कार्ड बनाने वाली पहली ट्रांसजेंडर हैं नूर शेखावत
नूर शेखावत पहली ट्रांसजेंडर हैं, जिन्होंने जन आधार कार्ड के लिए अप्लाई किया था। राजस्थान जनाधार अथॉरिटी के संयुक्त निदेशक सीताराम स्वरूप ने नूर शेखावत के मामले को देखा तो प्राथमिकता के तौर पर जन आधार कार्ड बनाने के निर्देश दिए। ऐसे में नूर शेखावत प्रदेश की पहली ऐसी ट्रांसजेंडर है जिनके नाम से जन आधार कार्ड बना है।
आरक्षण को लेकर शंका जताई
द मूकनायक से राजस्थान ट्रांसजेंडर बोर्ड की सदस्य पुष्पा माई ने कहा- "सरकार का कदम सराहनीय है, लेकिन समुदाय को ओबीसी में शामिल कर लेने से उनका भला नहीं होगा। ओबीसी के आरक्षण में हमारा प्रतिशत तय होना चाहिए। यानि आरक्षण के अंदर हमारा कितना आरक्षण होगा। तभी सही तरीके से समुदाय के लोगों को इसका फायदा मिल पाएगा।"
सरकारें उदासीन हैं
"मुझे सरकार के निर्णय को लेकर इसलिए शंका है कि 2016 में राजस्थान ट्रांसजेंडर बोर्ड के गठन के बाद कभी भी बोर्ड के पदाधिकारियों व सदस्यों की नियमित बैठक नहीं हुई है। बोर्ड की अंतिम बैठक नवम्बर 2022 में हुई थी। अब 2024 है। सरकार भले ही ओबीसी में शामिल कर ले, महज प्रमाणपत्र दे देने से समुदाय की स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं आएगा, जब तक जमीनी स्तर से बदलाव के लिए प्रयास नहीं किए जाएंगे।" पुष्पा माई ने कहा।