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TM Exclusive: पदोन्नति को लेकर MP में बढ़ा विवाद, सपाक्स ने नकारा सरकार का प्रस्ताव, अजाक्स ने कहा, गोरकेला ड्राफ्ट लागू करें! फैसला अधर में

भोपाल। मध्यप्रदेश में कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण को लेकर सरकार एक बार फिर मुश्किल में फंसती नजर आ रही है। सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) द्वारा तैयार किए गए नए पदोन्नति प्रस्ताव को लेकर सपाक्स (मध्य प्रदेश सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था) ने सख्त आपत्ति जताई है, वहीं अजाक्स (अनुसूचित जाति जनजाति कर्मचारी संगठन) ने अधिकतर बिंदुओं पर सहमति जताई है। इससे साफ है कि सरकार अभी भी इस संवेदनशील मुद्दे पर किसी ठोस निर्णय पर नहीं पहुंच पाई है।

सरकार का फॉर्मूला विवादों में

मुख्य सचिव अनुराग जैन ने दो दिन पहले पदोन्नति नियमों को लेकर अजाक्स और सपाक्स के प्रतिनिधियों के साथ अलग-अलग बैठकें की थीं। बैठक में सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से जो प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया, उस पर अजाक्स ने कुछ बिंदुओं पर सहमति जताई लेकिन सपाक्स ने इसे स्पष्ट रूप से नकार दिया।

सपाक्स का कहना है कि सरकार का प्रस्ताव 2002 के पहले की व्यवस्था जैसा है, जो कोर्ट द्वारा खारिज की जा चुकी है। सपाक्स के डॉ. केएस तोमर ने कहा कि "सरकार ने लिखित में कुछ नहीं दिया, पर जो ड्राफ्ट है, वह पूरी तरह एससी-एसटी को फायदा पहुंचाने वाला है और योग्यता की अनदेखी करता है।"

सपाक्स की प्रमुख आपत्तियाँ

क्रीमीलेयर को पदोन्नति में आरक्षण न मिले – जबकि प्रस्ताव में यह प्रावधान रखा गया है।

रिवर्ट का पालन नहीं – कोर्ट ने जिनकी पदोन्नति रद्द की थी, उन्हें रिवर्ट नहीं किया गया है।

अनारक्षित पदों पर भी आरक्षण का लाभ – आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को अनारक्षित पदों पर प्रमोशन देने का प्रस्ताव है।

कैटेगरी में ही प्रमोशन हो – सपाक्स की मांग है कि आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को उनके कैटेगरी में ही पदोन्नति दी जाए।

एफिशिएंसी टेस्ट लागू किया जाए – तोमर ने कहा कि सामान्य और ओबीसी वर्ग के अधिकारी-कर्मचारी की अच्छी गोपनीय प्रतिवेदन (CR) के बावजूद प्रमोशन नहीं मिल रहा है। ऐसे में सरकार को एफिशिएंसी टेस्ट लेना चाहिए ताकि सबको बराबरी का मौका मिले।

अजाक्स की सहमति और मांगें

अजाक्स के महासचिव एसएल सूर्यवंशी के नेतृत्व में अजाक्स ने मुख्य सचिव और एसीएस संजय दुबे के समक्ष प्रस्तुतीकरण देखा और अधिकतर बिंदुओं पर सहमति जताई। अजाक्स ने कहा कि—

पूर्व की पदोन्नतियों को रिवर्ट न किया जाए।

पदोन्नति प्रक्रिया 2002 के नियमों और गोरकेला ड्राफ्ट के आधार पर ही होनी चाहिए।

डीपीसी प्रक्रिया पहले अनारक्षित पदों के लिए, फिर एसटी और उसके बाद एससी वर्ग के लिए चलाई जाए।

क्यों फंसी है सरकार?

दरअसल, सरकार 2017 के पदोन्नति अधिनियम (गोरकेला ड्राफ्ट) को पूरी तरह लागू करने की बजाय नया फार्मूला लाने की कोशिश कर रही है। लेकिन इस नए फॉर्मूले ने एक पक्ष को खुश किया तो दूसरे पक्ष को नाराज़, और यही वजह है कि मामला फिर अटक गया है।

डॉ. केएस तोमर का यह भी कहना है कि सरकार सिर्फ एससी-एसटी को 36 प्रतिशत आरक्षण देने की बात करती है, लेकिन वर्टिकल बेस पर सामान्य और ओबीसी वर्ग को 64 प्रतिशत आरक्षण देने को तैयार नहीं है। इस प्रस्ताव से अगले 15 साल तक योग्यता को दरकिनार कर आरक्षण के आधार पर प्रमोशन होते रहेंगे।

क्या है पदोन्नति अधिनियम 2017 (गोरकेला ड्राफ्ट)?

यह अधिनियम सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था, जिसमें पदोन्नति में आरक्षण के लिए कुछ शर्तें तय की गई थीं, जैसे:-

- प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता

- प्रशासनिक दक्षता

- डाटा आधारित समीक्षा

लेकिन सरकार ने इस ड्राफ्ट को छोड़कर नया प्रस्ताव लाने की कोशिश की, जो विवाद का कारण बन रहा है।

अब क्या होगा आगे?

सूत्रों के अनुसार, सरकार अब फिर से दोनों पक्षों की अलग-अलग बैठक बुला सकती है ताकि किसी सहमति पर पहुंचा जा सके। लेकिन स्पष्ट है कि फिलहाल कोई भी निर्णय जल्द होता नहीं दिख रहा। पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा अब एक बार फिर राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का विषय बन गया है।

गोरकेला ड्राफ्ट लागू करे सरकार: कांग्रेस

राज्य अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य और कांग्रेस नेता प्रदीप अहिरवार ने गोरकेला समिति द्वारा तैयार किए गए प्रमोशन नियमों के ड्राफ्ट को लेकर मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव अनुराग जैन पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। द मूकनायक से बातचीत में उन्होंने आरोप लगाया कि, “ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्य सचिव इस विधिसम्मत ड्राफ्ट को लागू नहीं होने देना चाहते। कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के सामाजिक न्याय से ही आपत्ति है?”

अहिरवार ने मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों पर भी निशाना साधते हुए कहा कि मुख्यमंत्री तक सही जानकारी नहीं पहुंचाई जा रही है। उनके अनुसार, “मंत्रालय की चौथी और पांचवीं मंज़िल पर बैठे अधिकारी मुख्यमंत्री को वास्तविक स्थिति से अवगत नहीं करा रहे। वे एक नया ड्राफ्ट बना रहे हैं जो कानूनी पेचीदगियों में उलझ सकता है। यह सिर्फ प्रक्रिया को लंबा खींचने की रणनीति है। उन्होंने कहा, यही वजह है कि नए फॉर्मूले पर कर्मचारी संगठन सहमत नहीं हो रहे हैं।”

उन्होंने यह भी याद दिलाया कि वर्ष 2017 में तैयार किया गया प्रमोशन से संबंधित ड्राफ्ट आज तक लागू नहीं हो सका है, जबकि उस पर किसी भी तरह की वैधता को लेकर आपत्ति नहीं थी। प्रदीप अहिरवार ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “प्रशासन के भीतर कुछ अधिकारी, जो मनुवादी सोच से प्रेरित हैं, वे हर उस योजना को रोकने में लगे हैं जो सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाती है।”

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