चेन्नई- दलित मेडिकल एसोसिएशन, तमिलनाडु ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को पत्र लिखकर सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की है। संगठन के अध्यक्ष डॉ. के. पुगझेंधी ने पत्र में सर्वोच्च न्यायालय के दो फैसलों का हवाला देते हुए कहा है कि ये फैसले आरक्षण को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं देते, जिसे संविधान संशोधन के माध्यम से सुधारने की आवश्यकता है। पत्र में इस संशोधन को ऐतिहासिक कदम बताते हुए दबे-कुचले वर्गों के उत्थान की बात कही गई है
पत्र में यह भी उल्लेख है कि दिवंगत केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने 13 जून 2020 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस मुद्दे पर संविधान संशोधन की मांग की थी, जिसे तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने स्वीकार किया था। हालांकि, पासवान की असामयिक मृत्यु के कारण यह मुद्दा संसद में नहीं उठ सका। संगठन का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय में अपील दाखिल करना बेकार होगा, इसलिए संविधान संशोधन ही एकमात्र समाधान है।
पत्र में सर्वोच्च न्यायालय के दो महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख किया गया है। पहला मुकेश कुमार बनाम उत्तराखंड राज्य (सिविल अपील नंबर 1226/2020, 7 फरवरी 2020), जिसमें कहा गया कि सरकारी नियुक्तियों में आरक्षण कोई अधिकार नहीं है, बल्कि यह राज्य सरकार की इच्छा पर निर्भर है। दूसरा, सी.ए. राजेंद्रन बनाम भारत संघ (1968) का फैसला, जो इस बात को दोहराता है। पत्र में उद्धृत किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भले ही एससी/एसटी की कम प्रतिनिधिता का मुद्दा उठाया जाए, न्यायालय राज्य सरकार को आरक्षण लागू करने का आदेश नहीं दे सकता।
डॉ. पुगझेंधी ने बताया कि संगठन ने इस मुद्दे को पहले भी कई मंचों पर उठाया है। इसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 19 सितंबर 2022 को लिखा गया पत्र, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार को 6 जुलाई 2024 को भेजी गई याचिका, और विभिन्न सांसदों, एससी/एसटी और ओबीसी कल्याण समितियों, कम्युनिस्ट, मुस्लिम और ईसाई सांसदों के साथ पत्राचार शामिल है। राष्ट्रपति सचिवालय ने 11 अक्टूबर 2022 को इस मांग को सामाजिक न्याय मंत्रालय को भेजा था, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
पत्र में राहुल गांधी से अपील की गई है कि वे अपने पद का उपयोग कर संसद में जल्द से जल्द संशोधन लाएं, ताकि आरक्षण नीति को नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए। संगठन ने इसे संविधान निर्माताओं की मंशा के अनुरूप बताया, जो एक कल्याणकारी राज्य के माध्यम से सदियों से दबे-कुचले वर्गों के उत्थान के लिए था। पत्र में कहा गया है कि यह कदम भारत और विश्व में सामाजिक न्याय के लिए ऐतिहासिक होगा।
क्या है संविधान की नौवीं अनुसूची
इस अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानूनों की एक सूची है जिसे न्यायालयों में चुनौती नहीं दी जा सकती है जिसे संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951 द्वारा जोड़ा गया था।
पहले संशोधन में अनुसूची में 13 कानूनों को जोड़ा गया था। बाद के विभिन्न संशोधनों सहित वर्तमान में संरक्षित कानूनों की संख्या 284 हो गई है।
यह नए अनुच्छेद 31B के तहत बनाया गया था, जिसे अनुच्छेद 31A के साथ सरकार द्वारा कृषि सुधार से संबंधित कानूनों की रक्षा करने और ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करने हेतु लाया गया था।
अनुच्छेद 31A कानून के 'उपबंधों' को सुरक्षा प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 31B विशिष्ट कानूनों या अधिनियमों को सुरक्षा प्रदान करता है।
जबकि अनुसूची के तहत संरक्षित अधिकांश कानून कृषि/भूमि के मुद्दों से संबंधित हैं, सूची में अन्य विषय भी शामिल हैं।
अनुच्छेद 31B में एक पूर्वव्यापी संचालन भी है, जिसका अर्थ है कि यदि कानूनों को असंवैधानिक घोषित किये जाने के बाद नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है, तो उन्हें उनकी स्थापना के बाद से अनुसूची में माना जाता है, अतः उन्हें वैध माना जाता है।
इस तथ्य के बावजूद कि अनुच्छेद 31B न्यायिक समीक्षा के बाहर है, सर्वोच्च न्यायालय ने पहले कहा है कि नौवीं अनुसूची में सूचीबद्ध कानून भी समीक्षा के अधीन होंगे यदि वे मौलिक अधिकारों या संविधान के मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं।