कोच्चि- केरल उच्च न्यायालय ने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (PoSH Act) के तहत गठित एक स्थानीय समिति (Local Committee - LC) की रिपोर्ट और तिरुवनंतपुरम के जिला कलेक्टर द्वारा जारी संबंधित आदेश को अवैध और कानून के प्रावधानों के खिलाफ घोषित करते हुए रद्द कर दिया है। जस्टिस राजा विजयराघवन वी और के. वी. जयकुमार की खंडपीठ ने यह फैसला W.A नंबर 1622 of 2025 में दिया, जो W.P.(C) नंबर 39915 of 2018 में एकल पीठ के फैसले के खिलाफ दायर की गई अपील थी।
मामला याचिकाकर्ता अब्राहम मथाई (अमस्टोर इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक) और कंपनी की पूर्व अकाउंटेंट/मैनेजर (अपीलकर्ता) के बीच का है। अपीलकर्ता की सेवाएं 7 नवंबर, 2017 को समाप्त कर दी गई थीं, जिसके बाद उन्होंने श्रम अदालत का रुख किया। इसी दौरान, जिला कलेक्टर को एक शिकायत प्राप्त हुई, जिसे PoSH अधिनियम के तहत गठित स्थानीय समिति को भेज दिया गया।
स्थानीय समिति ने जांच के बाद 22 अगस्त, 2018 को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें अब्राहम मथाई से लिखित माफी मांगने, ₹19.80 लाख का मुआवजा देने और कंपनी में एक आंतरिक शिकायत समिति (Internal Committee) गठित करने का निर्देश दिया गया। इस रिपोर्ट के आधार पर जिला कलेक्टर ने 19 सितंबर, 2018 को एक पत्र जारी कर इन निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने को कहा।
अब्राहम मथाई ने इन आदेशों के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
उच्च न्यायालय के एकल पीठ का निर्णय
उच्च न्यायालय में याचिका पर सुनवाई के बाद एकल पीठ ने 3 दिसंबर, 2024 को अपने फैसले में रिपोर्ट और पत्र को अवैध घोषित करते हुए रद्द कर दिया। एकल पीठ के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार थे:
लिखित शिकायत का अभाव: महिला ने स्वयं समिति के समक्ष स्वीकार किया कि उसने कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं कराई थी। PoSH अधिनियम की धारा 9 और नियम 6 के तहत लिखित शिकायत अनिवार्य है। एक अनाम शिकायत के आधार पर प्रक्रिया शुरू करना कानून का स्पष्ट उल्लंघन था।
यौन उत्पीड़न के तत्व का अभाव: शिकायतकर्ता ने स्वयं कबूला कि मथाई ने न तो उसे कभी छुआ और न ही किसी यौन अनुग्रह की मांग की। आरोपों में यौन उत्पीड़न की परिभाषा (धारा 2(n)) के तहत आने वाले तत्व नहीं पाए गए। यह मामला एक श्रमिक विवाद प्रतीत होता था।
प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन: अब्राहम मथाई को स्थानीय समिति द्वारा अपनाए गए साक्ष्यों या गवाहों का सामना करने या उनकी जिरह करने का अवसर नहीं दिया गया। गवाहों के बयान टेलीफोन पर Record किए गए थे, जो न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ है।
वैकल्पिक उपचार की उपलब्धता: एकल पीठ ने माना कि हालांकि PoSH अधिनियम के तहत एक वैकल्पिक उपाय (अपील) उपलब्ध था, लेकिन जब प्रक्रिया स्वयं अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत और अधिकार क्षेत्र से बाहर है, तो उच्च न्यायालय का अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप करना justified है।
महिला कर्मचारी ने एकल पीठ के इस फैसले के खिलाफ डिवीजन बेंच में अपील दायर की। अपील में तर्क दिया गया कि समिति ने साक्ष्यों के आधार पर यौन आशय के Remarks और प्रतिकूल कार्य वातावरण बनाने का पता लगाया था और श्रम अदालत में मुकदमा चलना PoSH अधिनियम के तहत राहत पाने में बाधा नहीं होनी चाहिए।
डिवीजन बेंच ने इसलिए की अपील खारिज
डिवीजन बेंच ने एकल पीठ के निर्णय को बरकरार रखा और अपील खारिज कर दी। न्यायालय ने माना PoSH अधिनियम की धारा 9 के तहत एक लिखित शिकायत (Written Complaint) अनिवार्य है, जिसकी इस मामले में पूरी तरह से कमी थी।
अपीलकर्ता के अपने बयान से स्पष्ट था कि यौन उत्पीड़न के कोई तत्व मौजूद नहीं थे। न्यायालय ने माना कि आरोप व्यक्तिगत या श्रमिक विवाद से संबंधित प्रतीत होते थे, न कि यौन प्रकृति के।
प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत (Principles of Natural Justice) का गंभीर उल्लंघन हुआ था, क्योंकि आरोपी को जवाब देने या गवाहों को cross-examine करने का उचित मौका नहीं दिया गया। चूंकि प्रक्रिया ही कानून के मूल प्रावधानों और न्याय के सिद्धांतों के विपरीत थी, इसलिए वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता उच्च न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग करने में बाधा नहीं बनी।