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MP: भोपाल के आयुर्वेदिक कॉलेज ने एपिसियोटामी घावों के लिए प्रभावी इलाज खोजा

भोपाल। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में जहां सर्जरी के बाद संक्रमण रोकने के लिए एंटीबायोटिक्स अनिवार्य मानी जाती हैं, वहीं भोपाल के पंडित खुशीलाल शर्मा शासकीय आयुर्वेद कॉलेज के एक शोध ने आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की प्रभावशीलता को प्रमाणित किया है। इस शोध ने दिखाया है, कि यदि कुछ आयुर्वेदिक दवाओं का निर्धारित मात्रा में उपयोग किया जाए, तो संक्रमण का खतरा नहीं रहता।

कॉलेज के गायनी विभाग द्वारा एपिसियोटामी (सामान्य प्रसव के दौरान सर्जिकल चीरा) के घावों के उपचार के लिए आयुर्वेदिक दवाओं का सफल परीक्षण किया गया। शोध में निंबादी वटी, शतधौत घृत, और नीम क्वाथ का उपयोग किया गया। शोध में शामिल 10 प्रसूताओं पर केवल आयुर्वेदिक दवाओं का प्रयोग किया गया। इनमें संक्रमण और अन्य जटिलताओं का कोई लक्षण नहीं देखा गया। उपचार में उपयोग की गई निंबादी वटी में नीम, आंवला और हल्दी जैसी औषधियों का मिश्रण है। नीम अपने एंटीबैक्टीरियल गुणों के लिए प्रसिद्ध है, जबकि हल्दी सूजन और संक्रमण को कम करती है।

नीम क्वाथ (नीम का काढ़ा) का उपयोग घाव को धोने के लिए किया गया, जिससे संक्रमण का खतरा कम हुआ। घावों पर शतधौत घृत का लेप किया गया। शतधौत घृत एक विशेष मरहम है, जो शुद्ध घी को औषधीय तरीके से 100 बार धोकर तैयार किया जाता है। यह त्वचा को गहराई से पोषण और ठंडक प्रदान करता है।

शोध में यह अपनाई प्रक्रिया

यह शोध एमडी की छात्रा डॉ. सोनल रामटेके द्वारा डॉ. बासंती गुरु के मार्गदर्शन में किया गया। डॉ. बासंती, जो स्त्री रोग और प्रसूति तंत्र विभाग की प्रमुख हैं, ने बताया कि एपिसियोटामी के घावों में तीन परतों को काटना पड़ता है, जिससे संक्रमण का खतरा अधिक होता है। प्रसूताओं की प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर होती है, ऐसे में आयुर्वेदिक उपचार बहुत प्रभावी साबित हुआ। शोध के दौरान महिलाओं को सात दिन तक ये दवाएं दी गईं। परिणामस्वरूप घाव तेजी से ठीक हुए, और संक्रमण की कोई शिकायत नहीं आई।

आयुर्वेदिक दवाओं के फायदे

डॉ. बासंती गुरु ने बताया कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति में एंटीबायोटिक्स और दर्द निवारक दवाओं का उपयोग आम है। हालांकि, इनसे गैस्ट्रिक समस्या, एसिडिटी, कब्ज, मतली, और एलर्जी जैसे दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं। इसके विपरीत, आयुर्वेदिक दवाओं का कोई दुष्प्रभाव नहीं देखा गया। निंबादी वटी और शतधौत घृत जैसी आयुर्वेदिक औषधियां संक्रमण रोकने के साथ-साथ त्वचा को पोषण भी देती हैं। यह उपचार पूरी तरह से सुरक्षित और प्रभावी है।

आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज से मिली जानकारी के मुताबिक, पायलट शोध की सफलता को देखते हुए अब इसे बड़े स्तर पर करने की योजना बनाई जा रही है। अधिक प्रसूताओं पर यह उपचार आजमाया जाएगा, जिससे इसे चिकित्सा जगत में व्यापक रूप से लागू किया जा सके।

क्या है एपिसियोटॉमी घाव?

एपिसियोटॉमी एक सामान्य शल्य प्रक्रिया है जो प्रसव के दौरान की जाती है। इसमें योनि और मलाशय के बीच के क्षेत्र (पेरिनियम) पर एक छोटा चीरा लगाया जाता है ताकि प्रसव के समय बच्चे के बाहर आने के लिए अधिक स्थान मिल सके। इस चीरे के बाद उस स्थान पर टांके लगाए जाते हैं, जिन्हें सही देखभाल की आवश्यकता होती है। इस घाव को ठीक करने के लिए इलाज किया जाता है।

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