मिर्ज़ापुर (उत्तर प्रदेश): ईंट की दीवारों पर पुआल और घास-फूस की छत वाला मकान ही 30 वर्षीय संजू की कुल संपत्ति है। उनके पति मुंबई में मज़दूरी करते हैं जो प्रति माह 10,000 रुपये कमा पाते हैं। वह अपने पांच लोगों के परिवार को 5,000 रुपये ही भेज पाते हैं। हालांकि, आसमान छूती महंगाई के चलते इस रक़म से परिवार का ख़र्च पूरा नहीं हो पाता है।
संजू पिछले क़रीब छह महीने से गुर्दे की पथरी की बीमारी का इलाज करा रही हैं, ऐसे में इस पैसे का बड़ा हिस्सा डॉक्टर और दवाओं पर ख़र्च हो जाता है।
चार बच्चों की मां को नहीं पता कि वह इस मुसीबत से कब तक जुझती रहेगी। इनके बच्चों में सबसे बड़ी 21 साल की लड़की है।
उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर ज़िले के मरिहान विधानसभा क्षेत्र के पटेहरा ब्लॉक के गोहिया खुर्द गांव की निवासी ने द मूकनायक को बताया, “चुनाव हर पांच साल में होते हैं। सरकारें आती और जाती हैं। हालांकि, जो न बदलने वाली बात है वह है हमारी स्थिति। ग़रीब लोग पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता है।"
पीने के पानी में कैल्शियम की ज़्यादा मौजूदगी के कारण इस क्षेत्र में गुर्दे की पथरी के मामले आम हैं जो गुर्दे में क्रिस्टल के जमने के कारण होते हैं।
दीप नगर में एक निजी नर्सिंग होम चलाने वाले डॉ. संजय सिंह बताते हैं, "इस क्षेत्र में हर छठा या सातवां व्यक्ति इस तकलीफदेह बीमारी से पीड़ित है। यहां स्वास्थ्य सुविधाएं अभी भी उपलब्ध नहीं हैं।" इसी अस्पातल में संजू का इलाज चल रहा है।
उन्होंने कहा, इस बीमारी के प्राथमिक कारणों में से एक कैल्शियम का ख़तरनाक स्तर और पीने के पानी की भारी कमी है।
डॉ. सिंह कहते हैं कि गुर्दे की पथरी को बाहर निकालने के लिए भरपूर पानी का इस्तेमाल करने की ज़रूरत है, लेकिन यहां लोगों को पीने के पानी की कमी है।
संजू को पपीते का जूस, पथरचट्टा या पत्थरी तोड़ने वाला (एक मशहूर पौधा) पीने के अलावा हर रोज़ कम से कम सात लीटर पानी पीने के लिए कहा गया है।
हलिया गांव निवासी 31 वर्षीय चंदन मौर्य पिछले 15 वर्षों से इस बीमारी से पीड़ित हैं। उन्होंने कहा कि भारी काम करते वक़्त उनके पेट में तेज़ दर्द होता है।
वह हाल ही में मिर्ज़ापुर ज़िला अस्पताल में एक डॉक्टर के पास गए थे, जहां उन्हें इंटराविनस पाइलोग्राम (आईवीपी) कराने के लिए कहा गया था। आईवीपी किडनी से जुड़ा एक्स-रे है जो रेडियोलॉजिस्ट को पेशाब के रास्ते में पथरी के कारण होने वाली किडनी की समस्याओं की पहचान करने में मदद करता है।
चूंकि अस्पताल में ज़रूरी उपकरण नहीं होने के कारण मौर्य को बाहर से एक्स-रे कराने के लिए कहा गया है। इस अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग में विशेषज्ञ डॉक्टर तक नहीं हैं।
मौर्य पास के हार्डवेयर स्टोर में सेल्समैन का काम करके 5,000 रुपये प्रति माह कमाते हैं। प्राइवेट डायग्नोस्टिक सेंटर में एक्स-रे की कीमत लगभग 3,000 रुपये है। उनके लिए इतनी बड़ी रक़म ख़र्च करना काफ़ी मुश्किल है।
वे पूछते हैं कि "अगर सरकारी अस्पताल ये सुविधाएं नहीं दे सकते तो उनके पास जाने का क्या मतलब है?"
सरसावा गांव के रहने वाले राम बालक को भी पिछले चार साल से किडनी में पथरी है। उन्हें सर्जरी कराने के लिए कहा गया है, लेकिन अपनी बदतर आर्थिक स्थिति के कारण वह सर्जरी नहीं करा पा रहे हैं।
कोल जनजाति के 39 वर्षीय राम बालक कहते हैं, “मैं दिहाड़ी मज़दूर हूं। चूंकि जिला अस्पताल में कोई नेफ्रोलॉजिस्ट नहीं है इसलिए मुझे एक निजी अस्पताल में सर्जरी करानी होगी।'' वे आगे कहते हैं, ''हर बार मैंने अपने कम आमदनी में से इसके लिए पैसे बचाए, लेकिन अचानक कोई घटनाएं घटीं और पैसे ख़त्म हो गए।”
बालक कहते हैं, सरकार स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में सुधार का दावा करती है, लेकिन अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के कारण इलाज न होना इन बड़े-बड़े वादों पर सवाल उठाता है।
विध्यांचल क्षेत्र के ज़िलों में सरकारी अस्पतालों की हालत बदतर है। स्थानीय अस्पतालों की ख़राब सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के कारण लोगों को इलाज के लिए आस-पास के शहरों का रूख़ करने करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
ज़िले के 96 विधानसभा क्षेत्र में हालात कुछ ऐसे ही हैं। उदाहरण के लिए ज़िले के पटेहरा ब्लॉक के पटेहरा कलां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में पांच डॉक्टर हैं, जिन्हें हर दिन आना होता है। डॉ. सिंह अनुबंध के आधार पर वहां कार्यरत थे। उन्होंने आरोप लगाया, "हालांकि, उनमें से हर कोई सप्ताह में केवल एक बार ही आता है।"
जिले के 96 ग्राम पंचायतों में हालात कुछ ऐसे ही हैं। उदाहरण के लिए, जिले के पटेहरा ब्लॉक के पटेहरा कलां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में पांच डॉक्टर हैं, जिन्हें हर दिन आना होता है। डॉ. सिंह, जो अनुबंध के आधार पर वहां कार्यरत थे, ने आरोप लगाया, "कई डॉक्टर सप्ताह में सिर्फ एक बार ही आते हैं।"
इस पीएचसी में उत्तर में 12 किमी, दक्षिण में 25 किमी, पूर्व में 8 किमी और पश्चिम में 15 किमी तक के गांवों के लोग इलाज कराने आते हैं। हालांकि मरिहान में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) है जो इन सभी दूरदराज के लोगों को सेवा देता है। लोग जिला अस्पताल जाने के लिए 30 से 50 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं।
अफ़सोस की बात है कि आगामी आम चुनावों में यह कोई मुद्दा नहीं है। सभी नेता अपर्याप्त स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के गंभीर मुद्दे को उठाने से बचते नज़र आ रहे हैं। चुनावी पंडित कहते हैं कि विपक्ष भी मौजूदा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की आलोचना करने के बजाय जातिगत कार्ड खेलना पसंद कर रहा है।
ग़रीबी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मतदाताओं की एक बड़ी आबादी के लिए दिन में दो बार भोजन मिलना ही काफ़ी है। वे बाहरी दुनिया से बेख़बर हैं। हो सकता है कि वे अपने दुख से भरे क़िस्मत को स्वीकार कर चुके हों।
द मूकनायक ने ज़िले के सिविल सर्जन से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने चुनावी कार्यक्रम की घोषणा के बाद से लागू आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) का हवाला देते हुए कुछ भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। ज़िला सिविल अस्पताल के डॉक्टरों ने भी बात करने से इनकार कर दिया।
मिर्ज़ापुर लोकसभा क्षेत्र
मिर्ज़ापुर संसदीय सीट के लिए मतदान 2024 के आम चुनाव के सातवें चरण में यानी 1 जून को होना निर्धारित है। पांच विधानसभा सीटों वाले मिर्ज़ापुर का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राज्यसभा सांसद अरुण सिंह जैसे मशहूर राजनेताओं के राजनीतिक करियर पर महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है। स्वर्गीय फूलन देवी ने 1996 में मिर्ज़ापुर से पहली महिला सांसद बनकर इतिहास रचा।
इस निर्वाचन क्षेत्र में 49% से अधिक आबादी पिछड़े वर्ग की और 25% अनुसूचित जाति/जनजाति की है। इस निर्वाचन क्षेत्र में पिछड़ी और अनुसूचित जाति के लोगों का एक बड़ा हिस्सा रहता है।
2019 के आम चुनाव में अपना दल (सोनेलाल) की उम्मीदवार अनुप्रिया सिंह पटेल ने 591,564 वोटों के साथ कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (एसपी) के उम्मीदवारों को हराया था। उन्होंने 2014 में भी इस सीट पर कब्ज़ा जमाया था।
अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार में मंत्री रह चुकी हैं।
सोनेलाल पटेल ने 1990 के दशक की शुरुआत में अपना दल की स्थापना की। लेकिन उनके निधन के बाद पार्टी दो खेमों में बंट गई। राज्य में 13 विधायकों के साथ अपना दल (एस) केंद्र और राज्य में भाजपा का गठबंधन सहयोगी है। अपना दल (एस) की स्थापना 2016 में सोनेलाल की बेटी अनुप्रिया ने की थी।
एनडीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री का पद संभाल चुकी 42 वर्षीय नेता अनुप्रिया पटेल वर्तमान में लोकसभा में अपना दूसरा कार्यकाल पूरा कर रही हैं।
उनके पिता दिवंगत सोनेलाल पटेल पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड में रहने वाली ओबीसी जाति कुर्मियों के बीच एक लोकप्रिय नेता थे। उन्होंने 1995 में अपना दल पार्टी की स्थापना की।
लेकिन मूल पार्टी की प्रमुख अपनी मां से असहमति के बाद अनुप्रिया ने 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले अपना दल (एस) की स्थापना की। पार्टी का कहना है कि उन्हें उत्तर प्रदेश में कुशवाहा, मौर्य, निषाद, पाल, सैनी और कुर्मी जैसे ग़ैर-यादव ओबीसी समूहों का समर्थन हासिल है।
अलग हुई इस पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनावों में 11 सीटों में से नौ पर जीत हासिल करते हुए भाजपा के साथ अपना गठबंधन बनाए रखा।
अनुप्रिया ने कानपुर के छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय से एमबीए की डिग्री प्राप्त की और राजनीति में प्रवेश करने से पहले एमिटी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में काम किया। उनकी शादी यूपी विधान परिषद सदस्य आशीष पटेल से हुई है।
कांग्रेस के साथ गठबंधन में यह चुनाव लड़ रही समाजवादी पार्टी ने अनुप्रिया से मुक़ाबले के लिए राजेंद्र एस बिंद को मैदान में उतारा है।
बिंद का जन्म और उनकी परवरिश भदोही ज़िले के ज्ञानपुर में हुई। इससे पहले उन्होंने बिंद सोशल वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में काम किया। राजनीति में क़दम रखने से पहले भी वह ज्ञानपुर और भदोही में सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे।
बिंद को सपा में शामिल हुए अभी छह माह ही हुए हैं। उन्होंने भदोही से सपा का टिकट पाने की कोशिश की। हालांकि, यह सीट पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के पास चली गई। इसलिए सपा ने उन्हें मिर्ज़ापुर संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है।
इस सच्चाई के बावजूद कि टीएमसी ने उत्तर प्रदेश से कभी चुनाव नहीं लड़ा है ऐसे में उसने पहली बार यूपी कांग्रेस के प्रमुख नेता और पूर्व कांग्रेस विधायक राजेश पति त्रिपाठी के बेटे ललितेश पति त्रिपाठी को इस निर्वाचन क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया है। सपा और टीएमसी में अच्छी बनती है। पूर्व विधायक राजेश उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के पोते हैं।
2012 में मरिहान विधानसभा सीट जीतने वाले कांग्रेस उम्मीदवार ललितेश पति त्रिपाठी ने 2019 में मिर्ज़ापुर से चुनाव लड़ने का इरादा किया था। हालांकि, वह कांग्रेस प्रतिनिधि के रूप में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने में असफल रहे। उन्हें केवल 8.25% प्राप्त हुए। कुछ ही समय बाद वह 2021 में टीएमसी में शामिल हो गए।
राजेंद्र बिंद का बड़ा व्यापारिक साम्राज्य है। उद्योगपति के तौर पर उनकी एक प्रतिष्ठा है। भदोही के सुरियावां के जगतपुर निवासी को प्रत्याशी बनाकर सपा ने जिले के डेढ़ लाख बिंद मतदाताओं को अपने पाले में करने की कोशिश की है। ऐसा माना जाता है कि बिंद मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का समर्थन करते हैं। ऐसे में सपा उम्मीदवार बसपा के जनाधार को अपने पाले में करने की कोशिश करेंगे। हालिया लोकसभा चुनाव में बसपा की समुद्रा देवी बिंद को 2,17,457 वोट मिले। वह दूसरे स्थान पर रहीं।