प्रयागराज/यूपी: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस गैंगरेप और हत्या मामले में निलंबित थाना प्रभारी (एसएचओ) दिनेश कुमार वर्मा की याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में वर्मा ने सीबीआई अदालत, गाज़ियाबाद द्वारा उनके खिलाफ जारी समन और आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।
यह मामला वर्ष 2020 में एक 19 वर्षीय दलित युवती के सामूहिक बलात्कार और बाद में हुई उसकी मृत्यु से जुड़ा है, जिसने पूरे देश में आक्रोश फैला दिया था।
जस्टिस राज बीर सिंह ने 25 अप्रैल को दिए गए आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता का आचरण न केवल प्रक्रिया के उल्लंघन का परिचायक है, बल्कि उसमें पीड़िता के प्रति संवेदनशीलता की भी भारी कमी थी। कोर्ट ने माना कि प्रारंभिक जांच में एसएचओ की भूमिका गंभीर रूप से लापरवाह रही।
सीबीआई ने वर्मा के खिलाफ आईपीसी की धारा 166ए(बी)(सी) और 167 के तहत आरोपपत्र दाखिल किया है। ये धाराएं यौन अपराध से जुड़ी जानकारी दर्ज न करने और गलत दस्तावेज तैयार कर चोट पहुंचाने के इरादे से जुड़ी हैं।
आरोपों की प्रमुख बातें
सीबीआई के आरोपपत्र के अनुसार, जब पीड़िता को थाने लाया गया, तब वर्मा ने खुद अपने मोबाइल से उसका वीडियो रिकॉर्ड किया और उसकी चिकित्सकीय जांच की कोई व्यवस्था नहीं की, जबकि उसने स्पष्ट रूप से यौन उत्पीड़न की बात कही थी।
इसके अलावा, गंभीर रूप से घायल पीड़िता को अस्पताल ले जाने के लिए उन्होंने न तो पुलिस वाहन और न ही एम्बुलेंस की व्यवस्था की, बल्कि उसके परिवार को एक साझा ऑटो की व्यवस्था करने के लिए मजबूर किया गया।
आरोप है कि एसएचओ के निर्देश पर पुलिस डायरी में झूठी प्रविष्टियां की गईं, जिनमें यह दावा किया गया कि एक महिला कांस्टेबल ने पीड़िता की जांच की, जबकि सीसीटीवी फुटेज से स्पष्ट है कि कांस्टेबल तब पहुंची जब पीड़िता पहले ही अस्पताल भेजी जा चुकी थी।
झूठी प्रविष्टियों में यह भी दर्ज किया गया कि पीड़िता के शरीर पर कोई चोट नहीं थी, जबकि उसकी जांच ही नहीं की गई थी। साथ ही, एसएचओ ने पीड़िता के बयान के आधार पर एफआईआर दर्ज करने में भी विफलता दिखाई।
वकील की दलीलें और कोर्ट की टिप्पणी
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पीड़िता की अचानक भीड़ और मीडिया के बीच थाने लाए जाने की स्थिति में वर्मा ने हालात को संभालने की कोशिश की और कोई गैरकानूनी कार्य नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि वर्मा ने पीड़िता के परिवार पर संदेह नहीं किया और उसे अस्पताल भेज दिया, लेकिन "ज़बरदस्ती" शब्द को अनदेखा कर देना एक मानवीय त्रुटि थी।
हालांकि, अदालत ने शिकायतकर्ता के बयान, गवाहों की गवाही, सीसीटीवी फुटेज और थाने की डायरी प्रविष्टियों को ध्यान में रखते हुए पाया कि वर्मा के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
क्या था पूरा मामला?
14 सितंबर 2020 को हाथरस में चार लोगों द्वारा एक दलित युवती के साथ गैंगरेप का आरोप सामने आया था। पीड़िता को दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 29 सितंबर को उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद, 29 और 30 सितंबर की दरम्यानी रात को पुलिस ने कथित तौर पर परिवार की इच्छा के खिलाफ उसका अंतिम संस्कार कर दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेकर "मौत के बाद गरिमा" के अधिकार की जांच के लिए केस दर्ज किया था।