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MP: भोपाल के 42 मोहल्लों में भूजल आज भी जहरीला, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद नहीं मिल रहा साफ पानी

भोपाल। "अगर हमें पहले पता होता कि हम ज़हर पी रहे हैं, तो शायद हम बच जाते," अन्नू नगर की सबिदा बी की आंखें भर आती हैं। वह बताती हैं कि उन्होंने सालों तक ट्यूबवेल का पानी पिया, अब उन्हें किडनी की गंभीर बीमारी है।

"हमारे मोहल्ले में शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहां कोई बीमार न हो," वह कहती हैं। "कई लोगों की कैंसर से मौत हो चुकी है, तो कुछ किडनी की बीमारी में चल बसे। ये सब उसी जहरीले पानी की देन है, जिसकी सच्चाई हमें बहुत देर से पता चली।" द मूकनायक से बातचीत में भोपाल की प्रदूषित बस्तियों के लोग अपनी पीड़ा साझा कर रहे हैं।

यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी को बीते चार दशक हो चुके हैं, लेकिन इसकी मार आज भी भोपाल के कई बस्तियों में साफ तौर पर देखी जा सकती है। फैक्ट्री के आसपास बसे करीब 42 मोहल्लों में आज भी लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं। इन इलाकों में भूजल अब भी कार्बाइड के जहरीले रसायनों से प्रदूषित है। सुप्रीम कोर्ट के 30 अगस्त 2018 के आदेश पर बनी निगरानी समिति की देखरेख में इन क्षेत्रों का नया निरीक्षण अभियान शुरू किया गया है।

गत चार दिनों में 19 मोहल्लों का निरीक्षण किया जा चुका था। मंगलवार को जांच दल ने बाकी बचे 23 मोहल्लों में पानी की गुणवत्ता की जांच की। यह अभियान जेपी नगर स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री और उसके आसपास के प्रभावित क्षेत्रों में चलाया गया। निरीक्षण में डीआईजी बंगला जैसे क्षेत्र भी शामिल थे। इस दौरान जिला प्रशासन, पर्यावरण विभाग और जल संस्थान के अधिकारियों के साथ गैस पीड़ित संगठनों के पदाधिकारी भी मौजूद रहे।

निरीक्षण में जुटी समिति ने लिए पानी के सैंपल

निरीक्षण का कार्य मंगलवार शाम तक चला, जहां टीम ने जगह-जगह से भूजल के नमूने एकत्र किए। गैस पीड़ितों के संगठनों ने भी निरीक्षण टीम को प्रदूषित पानी, सीवर की कमी और गंदगी की स्थिति से संबंधित फोटो और वीडियो साक्ष्य सौंपे। इसके साथ ही एक विस्तृत रिपोर्ट भी प्रस्तुत की गई, जिसमें 42 मोहल्लों की पानी की स्थिति और बुनियादी सुविधाओं की कमी को रेखांकित किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार, इन 42 मोहल्लों में से लगभग 70% इलाकों में आज भी लोगों को स्वच्छ पानी नहीं मिल रहा है। कई बस्तियों में अब तक पाइपलाइन से जल आपूर्ति की व्यवस्था नहीं की गई है और लोग टैंकर या हैंडपंप से पानी लेने को मजबूर हैं, जिनमें अधिकांश जगहों पर पानी विषैला और खारा है।

पहले भी मिल चुके हैं जहरीले रसायन

‘भोपाल ग्रुप फॉर इनफॉर्मेशन एंड एक्शन’ की संयोजक रचना ढिंगरा ने द मूकनायक से बातचीत में बताया कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के आसपास के 14 मोहल्लों के भूजल में पहले ही हैवी मेटल्स (जैसे मरकरी, आर्सेनिक), कीटनाशक और परसिस्टेंट ऑर्गेनिक पॉल्यूटेंट्स (POPs) की मौजूदगी पाई गई थी। 2012 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सीकोलॉजिकल रिसर्च (IITR) की रिपोर्ट में 14 मोहल्लों के साथ-साथ 8 और बस्तियों के पानी में भी ज़हर मिला था।

2018 में पेश एक नई रिपोर्ट में 20 और मोहल्लों में जल प्रदूषण की पुष्टि हुई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिए थे कि प्रभावित सभी बस्तियों में पाइपलाइन से शुद्ध जल आपूर्ति की जाए, सीवरेज की सुविधा हो और प्रत्येक तीन महीने में जल गुणवत्ता की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।

अभी भी नहीं दिए गए नल कनेक्शन

रचना ढिंगरा ने बताया कि फूटा मकबरा, कैंची छोला, कल्याण नगर जैसे कई इलाकों में अभी तक नल कनेक्शन नहीं दिए गए हैं। इन मोहल्लों में रहने वाले परिवार आज भी गंदे और जहरीले पानी का उपयोग करने को मजबूर हैं। जबकि अदालत ने साफ निर्देश दिया था कि सभी प्रभावित क्षेत्रों को स्वच्छ पानी देना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।

स्वास्थ्य पर पड़ रहा गंभीर असर

भूजल में ज़हर होने के चलते इन बस्तियों में बच्चों और महिलाओं में त्वचा रोग, पेट संबंधी बीमारियां, गर्भपात, अस्थमा, कैंसर जैसी समस्याएं देखी जा रही हैं। गैस पीड़ित संगठनों का कहना है कि यह सरकार और प्रशासन की लापरवाही का नतीजा है कि इतने वर्षों बाद भी बुनियादी अधिकारों से लोग वंचित हैं।

गैस पीड़ित संगठनों की मांगें

निरीक्षण के दौरान मौजूद संगठनों ने निगरानी समिति से यह प्रमुख मांगें रखीं:

  • सभी 42 मोहल्लों में तुरंत पाइपलाइन से शुद्ध जल की आपूर्ति शुरू की जाए।

  • जिन इलाकों में नल कनेक्शन नहीं हैं, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर जोड़ा जाए।

  • सीवरेज लाइन का निर्माण कर जलस्रोतों को और प्रदूषित होने से बचाया जाए।

  • हर तीन महीने में भूजल जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए।

  • सरकार इस मुद्दे को सामान्य प्रशासनिक कार्यवाही की तरह नहीं, बल्कि मानवीय आपदा मानते हुए तत्काल समाधान करे।

अब निगरानी समिति क्या करेगी?

सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में गठित यह समिति निरीक्षण के बाद एक रिपोर्ट केंद्र सरकार और राज्य शासन को सौंपेगी। इसमें इस बात का मूल्यांकन होगा कि अदालत के आदेशों का पालन कितनी गंभीरता से किया गया है और आगे किन उपायों की आवश्यकता है। रिपोर्ट के आधार पर अदालत की अगली कार्रवाई तय होगी।

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