भोपाल- मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत ने एक महत्वपूर्ण और विचारोत्तेजक बयान दिया है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के गठन के बाद से आज तक अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग से कोई भी व्यक्ति न्यायाधीश नहीं बन सका है। उन्होंने यह सवाल उठाया कि ऐसा क्यों हुआ, जबकि योग्य उम्मीदवार मौजूद थे। यह बयान उन्होंने विदिशा में शनिवार को अधिवक्ता राजकुमार जैन की स्मृति में आयोजित एक सेमिनार के दौरान दिया, जहां उन्होंने सामाजिक न्याय पर अपने विचार साझा किए।
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत ने कहा कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का गठन वर्ष 1956 में हुआ था और यहां अब तक न तो सर्विसेस से और ना ही एडवोकेट में से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति वर्ग का कोई व्यक्ति न्यायाधीश नहीं बन सका। ऐसा क्यों हुआ, यह मुझे नहीं पता। जबकि ऐसे व्यक्ति थे जो न्यायाधीश बन सकते थे लेकिन फिर भी नहीं बने तो कोई वजह होगी। आज जब हम समानता की बात करते है तो हमें एक बार फिर सोचने को जरूरत है कि ऐसा क्यों हो रहा हैं।
समानता और बंधुत्व की जरूरत
मुख्य न्यायाधीश कैत ने अपने संबोधन में कहा कि केवल समानता की बात करना पर्याप्त नहीं है; आज के समय में बंधुत्व की भावना को भी बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति के लिए बनाए गए कठोर नियम एससी/एसटी वर्ग के लोगों के लिए एक बड़ी बाधा साबित हो रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने बताया कि प्रदेश में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित 109 पद अभी भी खाली हैं क्योंकि इस वर्ग के विद्यार्थी इन नियमों को पूरा करने में असमर्थ रहते हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि यदि समाज इन वर्गों की मदद करेगा और उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए विशेष कदम उठाएगा, तभी वे आगे बढ़ पाएंगे और न्यायिक क्षेत्र में अपनी पहचान बना पाएंगे।
सामाजिक न्याय के लिए आरक्षण जरूरी
मुख्य न्यायाधीश कैत ने आरक्षण की जरूरत को स्पष्ट करते हुए कहा कि जिन वर्गों को सदियों से अधिकारों से वंचित रखा गया है, उन्हें उचित स्थान देने से ही समाज में समानता स्थापित हो सकती है। उन्होंने आरक्षण को सामाजिक समरसता और न्याय का आधार बताया।
उन्होंने कहा, "अपराध का सबसे बड़ा कारण शिक्षा का अभाव है। जैसे-जैसे शिक्षा का प्रसार होगा, वैसे-वैसे अपराधों में कमी आएगी।"
सख्त नियमों पर विचार की जरूरत
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उच्च न्यायालय में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति के लिए बनाए गए नियम इतने सख्त हैं कि एससी/एसटी वर्ग के विद्यार्थी इन नियमों का पालन नहीं कर पाते। उन्होंने सुझाव दिया कि इन वर्गों को मदद और मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे नियम जो केवल उच्च सामाजिक और शैक्षिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के लिए अनुकूल हैं, उन्हें पुनर्विचार के दायरे में लाने की आवश्यकता है।
अन्य न्यायाधीशों ने भी रखी राय
इस सेमिनार में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जेके माहेश्वरी और ग्वालियर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आनंद पाठक ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने सामाजिक न्याय और समरसता पर जोर देते हुए कहा कि समाज में शिक्षा और अवसर की समानता लाने के लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।