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उदयपुर NRI ₹1.83 करोड़ घूसकांड में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश —ACB की दूसरी जांच और DySP आंचलिया की 'बेगुनाही' को लेकर राजस्थान हाई कोर्ट की टिप्पणियां निष्प्रभावी!

नई दिल्ली - सुप्रीम कोर्ट ने 1 मई 2025 को उदयपुर मूल के कुवैत निवासी NRI नीरज पुरबिया की याचिका पर एक महत्वपूर्ण आदेश सुनाया, जिसमें डीवाईएसपी जितेंद्र आंचलिया व अन्य से जुड़े 1.83 करोड़ रुपये के घूसकांड मामले में राजस्थान हाईकोर्ट, जोधपुर के 20 फरवरी 2025 के आदेश को चुनौती दी गई थी।

जस्टिस पंकज मिथल और एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने अनुच्छेद 136 के तहत हस्तक्षेप से इनकार करते हुए एक महत्वपूर्ण निर्देश दिया कि हाईकोर्ट के आदेश में की गई टिप्पणियां ट्रायल के निर्णय को प्रभावित नहीं करेंगी। यह आदेश हाईकोर्ट द्वारा दूसरी ACB जांच को दी गई मंजूरी को प्रभावहीन कर देता है, जिसमें आंचलिया को बरी किया गया था।

यह मामला तब शुरू हुआ जब नीरज पुरबिया ने राजस्थान में पुलिस कर्मियों और कुछ निजी व्यक्तियों के खिलाफ ठगी और भ्रष्टाचार की शिकायत की। इस मामले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की दो विपरीत जांच रिपोर्ट सामने आई हैं। ACB की पहली चार्जशीट (नंबर 83/2023) में आंचलिया, SI रोशनलाल और दो निजी व्यक्तियों पर जमीन जबरन वापस खरीदने के लिए धमकी देने के आरोप लगाए गए थे। एसीबी ने इस मामले की जांच की और एक चार्जशीट दाखिल की, जिसमें जितेंद्र अंचलिया, रमेश राठौड और मनोज श्रीमाली जैसे आरोपियों के खिलाफ सबूत पेश किए गए।

चार्जशीट में इन लोगों पर भ्रष्टाचार और ठगी के गंभीर आरोप लगाए गए। बाद में एक दूसरी जांच में आरोपियों को क्लीन चिट दे दी। 2024 में हुई इस जांच में IO कैलाश सिंह सांधु ने अचानक आरोपियों को बरी कर दिया। नीरज पुरबिया का कहना था कि यह दूसरी जांच गैर-कानूनी थी और इसका मकसद आरोपियों को बचाना था। नीरज ने राजस्थान हाई कोर्ट में सीबीआई जांच की मांग की, लेकिन 20 फरवरी 2025 को हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने इस संदिग्ध पुनर्जांच पर भरोसा किया हालांकि हाईकोर्ट ने आरोपी अधिकारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करने से इनकार कर दिया था।

हाई कोर्ट ने आरोपियों की याचिकाओं पर विचार करते हुए निचली अदालत को निर्देश दिए, जो आरोपियों के पक्ष में थी। नीरज ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

पुरबिया की याचिका में कई गंभीर प्रक्रियात्मक गड़बड़ियों की ओर इशारा किया गया। दूसरी जांच तब शुरू की गई जब न तो शिकायतकर्ता और न ही आरोपी ने इसकी मांग की थी। पुरबिया ने पूर्व ACB प्रमुख डॉ. रवि प्रकाश मेहरड़ा का ऑडियो सबूत भी पेश किया, जिसमें उन्होंने राजनीतिक दबाव की बात स्वीकार की थी। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश अप्रत्यक्ष रूप से इन प्रक्रियात्मक गड़बड़ियों को स्वीकार करता है।

1 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस एस.वी.एन. भट्ट ने नीरज पुरबिया की याचिका पर सुनवाई की। नीरज की ओर से वरिष्ठ वकील अर्धेंदुमौली कुमार प्रसाद ने दलील दी कि हाई कोर्ट का फैसला गलत था, क्योंकि उसने दूसरी जांच पर भरोसा किया, जो बिना उचित अनुमति के की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, लेकिन एक अहम बात कही। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हाई कोर्ट के विवादित आदेश में की गई टिप्पणियां मुकदमे की गुणवत्ता को प्रभावित नहीं करेंगी।

इसका मतलब है कि निचली अदालत अब इस मामले को नए सिरे से देखेगी और केवल मेरिट यानी सबूतों के आधार पर फैसला करेगी। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश ने दूसरी जांच के प्रभाव को भी खत्म कर दिया, क्योंकि वह जांच बिना अनुमति के की गई थी। यह फैसला नीरज पुरबिया के लिए एक बड़ा कदम है, क्योंकि अब उनका मामला निष्पक्ष सुनवाई की दिशा में आगे बढ़ेगा।

केस से जुड़े अधिवक्ताओं का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद, ट्रायल कोर्ट को अब सभी सबूतों का फिर से मूल्यांकन करना होगा, जिसमें 1.83 करोड़ रुपये के लेन-देन के दस्तावेजी सबूत, धमकियों का वीडियो रिकॉर्डिंग, ACB की प्रारंभिक चार्जशीट, ACB प्रमुख डॉ. रवि प्रकाश मेहरड़ा का ऑडियो सबूत आदि शामिल हैं। ACB की विरोधाभासी रिपोर्ट भ्रष्टाचार विरोधी तंत्र की कमजोरियों को उजागर करती है, जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश पीड़ित को न्याय दिलाने का मार्ग प्रशस्त करता है।

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