भोपाल। मध्यप्रदेश में वर्षों से लंबित शासकीय सेवकों की पदोन्नति प्रक्रिया को लेकर एक बार फिर से बहस तेज हो गई है। प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित पदोन्नति फार्मूले को लेकर अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ (अजाक्स) ने गंभीर आपत्ति दर्ज की है। संगठन का कहना है कि सरकार का मौजूदा फार्मूला सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की संविधान पीठ द्वारा दिए गए निर्देशों के विपरीत है, और इससे न्यायालय के इंदिरा साहनी व नागराज मामलों में दिए गए फैसलों की अवमानना होगी।
गोरकेला प्रारूप को क्यों नजरअंदाज किया गया?
अजाक्स ने सवाल उठाया है कि वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट के विधि विशेषज्ञों की देखरेख में तैयार गोरकेला पदोन्नति प्रारूप को सरकार ने अब तक लागू क्यों नहीं किया? संगठन का कहना है कि यह ड्राफ्ट विधिसम्मत है, और इसमें सभी वर्गों की अपेक्षाओं को समाहित किया गया था। उस समय सामान्य प्रशासन विभाग ने वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज गोरकेला की अध्यक्षता में यह प्रारूप तैयार कराया था, जिसे मंत्री समूह की सिफारिशों के साथ मंजूरी भी दी गई थी।
अजाक्स के प्रांतीय प्रवक्ता विजय शंकर श्रवण ने कहा कि सरकार द्वारा अचानक नए फार्मूले को लाने की कोशिश न केवल विसंगतिपूर्ण है बल्कि यह सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों की अवहेलना है। उन्होंने मांग की कि राज्य शासन को पारदर्शिता बरतते हुए गोरकेला प्रारूप को ही लागू करना चाहिए।
क्या है विवाद का मूल मुद्दा?
सरकार ने हाल ही में ‘वर्टिकल रिजर्वेशन’ के आधार पर पदोन्नति देने का प्रस्ताव सामने रखा है। लेकिन अजाक्स का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने मेरिट आधारित पदोन्नति के बाद शेष आरक्षित पदों को भरने की व्यवस्था दी थी। गोरकेला प्रारूप में यही प्रावधान रखा गया था, जिससे किसी वर्ग के साथ अन्याय न हो और सभी को समान अवसर मिले।
संगठन का आरोप है कि सामान्य प्रशासन विभाग ने मुख्यमंत्री डाॅ. मोहन यादव को इस प्रारूप की जानकारी नहीं दी, जिससे इस निर्णय पर कानूनी पेच फंस सकता है। अजाक्स ने इसे गंभीर लापरवाही बताते हुए संबंधित अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है, और कार्रवाई की मांग की है।
मुख्यमंत्री की सराहना, पर विभागीय रवैये पर नाराज़गी
अजाक्स ने मुख्यमंत्री डाॅ. मोहन यादव के फैसले की प्रशंसा करते हुए कहा है कि उन्होंने वर्षों से लंबित पदोन्नति मामले के समाधान का निर्णय लिया है। लेकिन संगठन ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री को गोरकेला प्रारूप की जानकारी नहीं देना एक गंभीर चूक है।
अजाक्स के प्रांतीय प्रवक्ता विजय शंकर श्रवण ने द मूकनायक से बातचीत में कहा, “मुख्यमंत्री जी का निर्णय स्वागत योग्य है, परंतु विभाग ने उन्हें सही और संपूर्ण जानकारी नहीं दी। गोरकेला ड्राफ्ट को लागू करके ही मुख्यमंत्री के संकल्प की सफल क्रियान्वयन संभव है।”
क्या है गोरकेला पदोन्नति प्रारूप 2017?
गोरकेला प्रारूप वह नीति दस्तावेज है जिसे सुप्रीम कोर्ट के विधिक मार्गदर्शन में वरिष्ठ अधिवक्ताओं और विभिन्न कर्मचारी संगठनों के सुझावों को समाहित कर तैयार किया गया था। इसमें सभी वर्गों के लिए निष्पक्ष और न्यायसंगत पदोन्नति प्रक्रिया सुनिश्चित की गई थी। इस प्रारूप को राज्य शासन ने औपचारिक रूप से मंजूरी दी थी। इसे सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता मनोज गोरकेला की अध्यक्षता में बनाया गया था। जिसका नाम पदोन्नति अधिनियम 2017 दिया गया था।
प्रारूप की मुख्य विशेषताएं
मेरिट आधारित पदोन्नति के बाद रिक्त आरक्षित पदों को भरा जाना।
सभी श्रेणियों के कर्मचारियों के सुझावों को शामिल करना।
कानूनी दृष्टि से पूर्णतया सुरक्षित और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप।
सामान्य वर्ग, अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग सभी को समान अवसर की व्यवस्था।
संभावित कानूनी पेच
अजाक्स संगठन का कहना है कि यदि वर्तमान सरकार ‘वर्टिकल-रिजर्वेशन’ फार्मूला लागू करती है तो यह इंदिरा साहनी और एम. नागराज प्रकरणों में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवमानना मानी जाएगी। इससे सरकार के निर्णय पर कोर्ट की आपत्ति आ सकती है और पूरे पदोन्नति आदेश पर रोक लग सकती है।
अजाक्स की प्रमुख मांगें
गोरकेला ड्राफ्ट पदोन्नति अधिनियम 2017 को तत्काल लागू किया जाए।
मुख्यमंत्री को सही जानकारी देकर पारदर्शिता बरती जाए।
नए पदोन्नति फार्मूले को वापस लिया जाए।
सभी वर्गों की समान भागीदारी सुनिश्चित की जाए।