+

MP: आउटसोर्सिंग भर्ती प्रणाली को अजाक्स संघ ने दी कानूनी चुनौती, हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल

भोपाल। मध्य प्रदेश में चल रही आउटसोर्सिंग भर्ती प्रणाली की संवैधानिकता पर सवाल उठाते हुए अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी-कर्मचारी संघ (अजाक्स) ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। यह याचिका ठाकुर ला एसोसिएट्स के माध्यम से दाखिल की गई है, इसकी सुनवाई 5 मई को निर्धारित है।

याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि राज्य शासन द्वारा मध्यप्रदेश भंडारण क्रय तथा सेवा उपार्जन नियम 2015 में संशोधन कर श्रमिकों को प्राइवेट एजेंसियों के माध्यम से वस्तुओं की तरह खरीदने और सरकारी विभागों में नियोजित करने की व्यवस्था की गई है। अजाक्स ने इस प्रक्रिया को असंवैधानिक और मानव तस्करी जैसा अमानवीय कृत्य बताया है।

भंडारण नियमों के तहत श्रमिकों की 'खरीद'

राज्य सरकार के वित्त विभाग द्वारा 31 मार्च 2023 को अधिसूचना क्रमांक F-11-/2023/नियम/चार जारी कर सभी विभागों को निर्देशित किया गया कि चतुर्थ श्रेणी के कर्मियों की सेवाएं आउटसोर्स एजेंसियों के माध्यम से प्राप्त की जाएं। यह संशोधन 31 मार्च 2022 को मध्यप्रदेश भंडारण क्रय तथा सेवा उपार्जन नियम 2015 में नियम 32 जोड़कर किया गया, जिसमें ‘सेवा का उपार्जन’ नाम से यह व्यवस्था की गई।

आरक्षण की अवहेलना

अजाक्स संघ का कहना है कि राज्य के सभी विभागों में कर्मचारियों की स्वीकृत संरचना (सेटअप) पहले से निर्धारित है, जिसमें वेतनमान, सेवा शर्तें और आरक्षण के प्रावधान स्पष्ट हैं। इसके बावजूद आउटसोर्सिंग के माध्यम से कर्मचारियों की नियुक्ति न केवल संवैधानिक प्रावधानों बल्कि श्रमिक कानूनों और आरक्षण संबंधी अधिनियमों का खुला उल्लंघन है।

कानून में नहीं कोई राहत

अजाक्स संघ का यह भी आरोप है कि आउटसोर्सिंग एजेंसियां अपने मनमाफिक वेतन देती हैं और जब चाहे कर्मचारियों को हटा देती हैं। इन कर्मचारियों के पास न तो किसी प्रकार का विधिक उपचार है और न ही स्थायित्व। यह पूरी प्रक्रिया एक लोकतांत्रिक देश में ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसे अपराधों को बढ़ावा देती है।

हाईकोर्ट में उठाए गए प्रमुख मुद्दे

आउटसोर्सिंग को संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 21 का उल्लंघन बताया गया

श्रमिकों की वस्तुओं की तरह खरीद बिक्री का विरोध

आरक्षण व्यवस्था की पूरी तरह अनदेखी

आउटसोर्स कर्मचारियों को नहीं मिलता कानूनी संरक्षण

मुख्यमंत्री को सौंपा ज्ञापन

अजाक्स संघ ने इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा है, जिसमें यह मांग की गई है कि वित्त विभाग द्वारा जारी अधिसूचना को तत्काल निरस्त किया जाए और सभी नियुक्तियां नियमित प्रक्रिया व आरक्षण के नियमों के तहत की जाएं।

संघ का यह भी दावा है कि आउटसोर्सिंग पद्धति के कारण पढ़े-लिखे युवाओं का शोषण हो रहा है और उन्हें स्थायी रोजगार के अवसरों से वंचित रखा जा रहा है। यह न केवल युवाओं के साथ अन्याय है बल्कि राज्य के संवैधानिक ढांचे को भी नुकसान पहुंचाने वाला कदम है।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने बताया कि मध्यप्रदेश सरकार द्वारा लागू किए गए आउटसोर्सिंग प्रावधान पूर्णतः असंवैधानिक हैं। भंडारण क्रय तथा सेवा उपार्जन नियमों के तहत मजदूरों की सेवाओं को एजेंसियों के माध्यम से 'क्रय' करना न केवल मानव गरिमा के खिलाफ है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 16 (सरकारी नौकरियों में समान अवसर) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का सीधा उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था श्रमिकों को वस्तुओं की तरह खरीदने और बेचने जैसी है, जो कि लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं हो सकती।

उन्होंने आगे कहा, कि जब सेवा नियम पहले से मौजूद हैं और नियमित भर्ती की प्रक्रिया स्पष्ट है, तो वित्त विभाग द्वारा एजेंसियों के माध्यम से कर्मचारियों की आपूर्ति का निर्णय न केवल अवैधानिक है, बल्कि यह आरक्षण व्यवस्था को भी अप्रभावी बनाता है। यह पूरी प्रणाली पढ़े-लिखे बेरोजगार युवाओं के अधिकारों का हनन है और कोर्ट से इसे रद्द करने की पूरी उम्मीद है।

facebook twitter