India Justice Report 2025: भारतीय पुलिस फोर्स में महिलाएं, SC/ST/OBC कहां गायब हैं?

12:58 PM Apr 21, 2025 | Geetha Sunil Pillai

नई दिल्ली- संवैधानिक सुरक्षा और दशकों पुराने नीतिगत दावों के बावजूद, भारत की पुलिस व्यवस्था आज भी सवर्ण पुरुष वर्चस्व का गढ़ बनी हुई है। 'इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025' की ताज़ा पड़ताल इस कटु सच्चाई को उजागर करती है—दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग और महिलाएं या तो पुलिस बल में नहीं हैं, या फिर नीचे के पदों में ही सिमट कर रह गई हैं।

पंजाब जैसे राज्यों में जहाँ एसटी के लिए 25% आरक्षण है, वहाँ अफसर स्तर पर मात्र 3 आदिवासी मौजूद हैं। पूरे देश में पुलिस अफसरों में सिर्फ़ 8% महिलाएं हैं। यह केवल आंकड़ों का सवाल नहीं, बल्कि सत्ता और निर्णय की संरचनात्मक नाकेबंदी का मामला है।

सरकारी आंकड़ों पर आधारित यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UTs) में समावेशन का ढांचा न केवल असंतुलित है, बल्कि इसमें सुधार की कोशिशों के बावजूद गहरी जड़ें जमाए असमानताएं अब भी बनी हुई हैं।

जनवरी 2023 के आंकड़ों पर आधारित यह रिपोर्ट लिंग और जाति—अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)—के आधार पर पुलिस बल में प्रतिनिधित्व की विस्तृत तस्वीर पेश करती है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि किस राज्य ने अपने तय आरक्षण कोटा को पूरा किया है और कहाँ वह बुरी तरह विफल रहा है, चाहे वह सिपाही स्तर हो या अधिकारी पद। कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों में प्रगति दिखती है, पर अधिकांश राज्यों में पुलिस जैसे न्याय-प्रदाय संस्थान में भी बहिष्करण की परंपरा जारी है।

अनुसूचित जाति (SC): सबसे ज़्यादा पीछे

राज्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे जनसंख्या अनुपात के आधार पर आरक्षण निर्धारित करें, लेकिन आंकड़े साफ दिखाते हैं कि विशेषकर अधिकारियों के स्तर पर अनुसूचित जातियों (SCs) का प्रतिनिधित्व बहुत कम है:

  • केवल 5 राज्यों—गुजरात, मणिपुर, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और गोवा—ने ही अधिकारी स्तर पर SC कोटा पूरा किया।

  • सिर्फ 4 राज्य ऐसे हैं जिन्होंने अधिकारियों और सिपाही, दोनों स्तरों पर कोटा पूरा किया।

  • 12 राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों में अधिकारी स्तर पर SC की कमी 20% से 40% के बीच रही।

  • उत्तर प्रदेश (61%), राजस्थान (52%), त्रिपुरा (47%) और बिहार (42%) में सबसे ज्यादा कमी दर्ज की गई।

सिपाही स्तर पर स्थिति थोड़ी बेहतर, लेकिन असमानता बरकरार

  • 11 राज्यों ने सिपाही स्तर पर SC कोटा पूरा किया।

  • 20 राज्य/UTs में SC सिपाहियों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज हुई।

लेकिन भारी कमी अब भी बनी हुई है:

  • हरियाणा (31%), गोवा (57%), और असम (71%) में SC सिपाहियों की भागीदारी में सबसे बड़ी खाई पाई गई।

अनुसूचित जनजाति (ST): कुछ राज्यों में प्रगति, लेकिन व्यापक असमानता बरक़रार

जहाँ कुछ राज्यों में ST वर्ग के समावेश में सुधार देखने को मिला है, वहीं कई राज्य अब भी गंभीर कमियों से जूझ रहे हैं।

  • कर्नाटक, बिहार और हिमाचल प्रदेश ने दोनों स्तरों (अधिकारी और सिपाही) पर ST कोटे को पूरा किया।

  • मध्य प्रदेश ने अधिकारी स्तर पर ST की कमी को 44% (2017) से घटाकर सिर्फ़ 4% (2023) कर दिया।

  • केरल ने भी ST रिक्तियों को 44% से घटाकर 14% कर दिया।

लेकिन कई राज्यों में स्थिति अब भी बेहद चिंताजनक:

  • पंजाब, जहाँ ST के लिए 25% आरक्षण है, वहाँ केवल 3 अधिकारी नियुक्त हैं — यानी 99.8% की कमी।

  • जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा जैसे राज्य भी अधिकारी स्तर पर गंभीर कमी दर्शाते हैं।

  • 8 राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों में ST अधिकारी पदों पर अब भी 20% से 40% तक की कमी बनी हुई है।

सिपाही स्तर पर भी भारी कमी:

  • नगालैंड, जहाँ ST के लिए 100% आरक्षण है, वहाँ भी 31% की कमी दर्ज की गई।

  • त्रिपुरा (28%), सिक्किम (25%), अरुणाचल प्रदेश (29%) और मणिपुर (43%) में भी ST सिपाहियों की गंभीर कमी है।

बढ़ती रिक्तियाँ:

  • 2022 से 2023 के बीच 12 राज्यों/UTs में ST सिपाहियों की रिक्तियों में वृद्धि दर्ज की गई।

  • तेलंगाना, जो पहले कोटा पूरा करता था, वहां केवल एक साल में 15% की कमी आई।

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC): अधिकारी स्तर पर गहरी रिक्तियाँ

OBC अधिकारियों के लिए तय आरक्षण को सिर्फ 9 राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों ने पूरा किया है। लेकिन अधिकांश राज्यों में गंभीर कमी अब भी बनी हुई है।

कुछ प्रमुख बिंदु:

  • तमिलनाडु ने अपने 40% से अधिक OBC कोटे से भी ज़्यादा भरती की है।

  • केरल में 7% और सिक्किम में 10% की कमी अब भी बनी हुई है।

  • 7 राज्यों में OBC अधिकारियों की 25% से 40% तक की रिक्तियाँ दर्ज की गई हैं।

एक साल में बुरी गिरावट:

  • महाराष्ट्र में OBC अधिकारियों की कमी 2022 में 2% से बढ़कर 2023 में 35% हो गई।

  • मध्य प्रदेश में यह अंतर 15% से बढ़कर 35% हो गया।

सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वाले राज्य:

  • मणिपुर (94%), राजस्थान (74%), हिमाचल प्रदेश (70%), गोवा (67%), और पश्चिम बंगाल (63%) — इन राज्यों में 2017 से लगातार उच्च स्तर की रिक्तियाँ बनी हुई हैं।

सिपाही स्तर पर स्थिति थोड़ी बेहतर, लेकिन असमानता जारी

  • 28 में से 15 राज्य/UTs ने OBC सिपाही कोटे को पूरा किया है।

  • लेकिन गोवा, असम, मणिपुर और अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह में 2020 से लगातार 60% से ज़्यादा कमी बनी हुई है।

रैंक आधारित असंतुलन: एक नई चिंता

  • बिहार में OBC सिपाहियों की संख्या कोटे से ज़्यादा है, लेकिन वहीं अधिकारियों के स्तर पर 32% की कमी है।

  • इसी तरह, उत्तर प्रदेश में OBC सिपाहियों की संख्या तय सीमा से ज़्यादा है, जबकि अधिकारियों के स्तर पर 31% की कमी बनी हुई है।

पुलिस में महिलाएँ: 33% आरक्षण का लंबा इंतज़ार

2009 में केंद्र सरकार ने राज्यों को सलाह दी थी कि वे पुलिस बलों में महिलाओं के लिए 33% पद आरक्षित करें। लेकिन जनवरी 2023 तक यह प्रतिनिधित्व केवल 12.3% तक ही पहुँचा है — जो कि 2022 में 11.7% था।

विभागवार स्थिति:

  • सिविल पुलिस और ज़िला सशस्त्र रिज़र्व (DAR) में महिलाओं की भागीदारी 14% है।

  • स्पेशल आर्म्ड पुलिस बटालियनों और इंडियन रिज़र्व बटालियनों (IRBs) में यह भागीदारी केवल 5% है।

राज्यवार विषमता:

  • बिहार ने बड़ी और मध्यम श्रेणी के राज्यों में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है, जहाँ महिला भागीदारी 2022 में 21% से बढ़कर 2023 में 24% हो गई है। इसने आंध्र प्रदेश (22%) को पीछे छोड़ दिया है।

  • पाँच राज्यों में दिसंबर 2023 तक महिलाओं के लिए कोई आरक्षण नहीं था।

  • 17 राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों में पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी अब भी 10% से कम है।

निचले स्तरों पर महिलाओं की अधिकता:

  • कांस्टेबल, जो कि पुलिस बल का 80% हिस्सा बनाते हैं, उसमें महिलाएँ केवल 13% हैं।

  • अधिकारी स्तर पर यह स्थिति और भी ख़राब है: कुल पुलिस अधिकारियों में महिलाएँ केवल 8% हैं (देशभर में 25,282 महिलाएँ)।

इनमें:

  • 52% महिलाएँ सब-इंस्पेक्टर पद पर हैं।

  • 25% महिलाएँ असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर (ASI) पद पर हैं।

उदाहरण के तौर पर:

  • बिहार में महिला पुलिसकर्मियों में 88% कांस्टेबल हैं, जबकि केवल 12% अधिकारी हैं।

  • महाराष्ट्र, जहाँ महिलाओं की भागीदारी 19% है, वहाँ 93% महिलाएँ कांस्टेबल पद पर कार्यरत हैं।

रिपोर्ट कहती है कि: संख्यात्मक विविधता का अर्थ शक्ति में विविधता नहीं है।

  • महिलाएँ और वंचित जातीय समूह अब भी निचले पदों तक सीमित हैं और निर्णय लेने की स्थिति से बहुत दूर हैं।

  • कई राज्यों में महिलाओं के लिए कोई आरक्षण नहीं है और अधिकांश राज्य SC, ST और OBC के संवैधानिक कोटे को भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं।

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (IJR) 2025 के बारे में:

India Justice Report 2025 एकमात्र ऐसा व्यापक मात्रात्मक सूचकांक है जो केंद्र और राज्य सरकारों के आधिकारिक आँकड़ों पर आधारित है और जो भारत की औपचारिक न्याय व्यवस्था की क्षमता का मूल्यांकन करता है।

यह रिपोर्ट एक साझा प्रयास है जिसमें DAKSH, Commonwealth Human Rights Initiative, Common Cause, Centre for Social Justice, Vidhi Centre for Legal Policy, और TISS-Prayas शामिल हैं।

  • यह रिपोर्ट पहली बार 2019 में प्रकाशित हुई थी।

  • 2025 संस्करण इसका चौथा संस्करण है और यह 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की न्यायिक, पुलिस, जेल, विधिक सहायता और मानवाधिकार आयोगों से संबंधित क्षमताओं का विश्लेषण करता है।

यह रिपोर्ट IJR 2025 पर आधारित एक श्रृंखला की पहली कड़ी है, जिसमें पुलिस व्यवस्था, न्यायपालिका, जेल प्रणाली, कानूनी सहायता और मानवाधिकार आयोगों की स्थिति का गहराई से विश्लेषण किया जाएगा।

स्रोत:

India Justice Report: Ranking States on the Capacity of Police, Judiciary, Prisons and Legal Aid (2025)