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तमिलनाडु में जातिगत भेदभाव पर प्रहार: चंद्रू समिति की सिफारिशों पर अमल शुरू, स्कूलों में स्टूडेंट्स में 'एकता' बढ़ाएंगे

चेन्नई- तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में जाति आधारित भेदभाव को जड़ से खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, स्कूल शिक्षा विभाग ने हाल ही में एक सर्कुलर जारी किया है। इस सर्कुलर में सभी जिलों के मुख्य शिक्षा अधिकारियों (सीईओ) को निर्देश दिया गया है कि वे शिक्षकों द्वारा जाति आधारित पूर्वाग्रह की शिकायतों की तुरंत जांच करें और यदि आरोप सिद्ध होते हैं तो संबंधित शिक्षकों का स्थानांतरण कर दें।

यह कदम मुख्य सचिव की अध्यक्षता में अगस्त के अंतिम सप्ताह में आयोजित बैठक के बाद आया है, जिसमें जस्टिस के. चंद्रू समिति की रिपोर्ट के कार्यान्वयन पर चर्चा हुई थी। समिति की रिपोर्ट जो शिक्षा संस्थानों में जाति हिंसा और भेदभाव को रोकने के लिए गठित की गई थी, ने राज्य में गहरे पैठे जातिवाद को उजागर किया थाऔर कई क्रांतिकारी सिफारिशें की जिसे अब अमल में लाया जा रहा है।

इसकी प्रमुख सिफारिशों में हाई स्कूल और हायर सेकंडरी स्कूल के शिक्षकों का नियमित स्थानांतरण और अधिकारियों, जैसे सीईओ, डीईओ, बीईओ और प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति को रोकने के लिए दिशानिर्देश शामिल थे, ताकि किसी विशेष क्षेत्र के स्कूलों में स्थानीय प्रभावशाली जाति से संबंधित अधिकारी तैनात न हों। हालांकि इन सिफारिशों को अभी पूरी तरह लागू नहीं किया गया है, लेकिन विभाग ने अब सीईओ को शिक्षकों द्वारा जाति आधारित भेदभाव की शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई करने का निर्देश जारी किया है।

ये हैं सर्कुलर के मुख्य बिंदु:

  • सीईओ को प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों के साथ बैठकें आयोजित कर शिकायतें एकत्र करने और जांच करने का निर्देश।

  • जाति भेदभाव के खिलाफ सख्त कार्रवाई, साथ ही समय-समय पर अनुस्मारक जारी करना।

  • स्कूलों में मोबाइल फोन उपयोग पर रोक, जब्ती और अभिभावकों को सौंपना।

  • छात्रों की जाति जानकारी, विशेषकर छात्रवृत्ति विवरणों की गोपनीयता।

  • 'मगिझ मुट्रम' (हाउस सिस्टम) पहल को लागू कर छात्रों में एकता बढ़ाना और विवरण निदेशालय को भेजना।

  • नैतिक विज्ञान कक्षाएं प्रभावी ढंग से संचालित करना और 'मनवर मनासु' शिकायत बॉक्स के मुद्दों का त्वरित समाधान।

नंगुनेरी की दर्दनाक घटना ने हिलाया था राज्य को

यह सब कुछ अगस्त 2023 में तिरुनेलवेली जिले के नंगुनेरी शहर में स्थित एक हायर सेकंडरी स्कूल में घटी एक भयावह घटना से शुरू हुआ। 9 अगस्त 2023 को, बारहवीं कक्षा के दलित छात्र चिन्नादुरई पर उसके ही स्कूल केअन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित साथियों ने बेरहमी से हमला किया। चिन्नादुरई को बुरी तरह घायल कर दिया गया, और उसकी बहन भी इस घटना में घायल हुई। इस हमले ने पूरे तमिलनाडु में व्यापक आक्रोश पैदा किया, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से जाति आधारित हिंसा का मामला था।

सरकार ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए चेन्नई से विशेषज्ञों की एक टीम भेजी, जो चिन्नादुरई और उसकी बहन को बेस्ट मेडिकल ट्रीटमेंट प्रदान करने के लिए पहुंची। दोनों भाई-बहनों को दूसरे स्कूल में स्थानांतरित किया गया और परिवार को एक नई बस्ती में घर दिया गया। चिन्नादुरई की मां जो पति द्वारा छोड़ दी गई थीं और अकेले बच्चों की परवरिश कर रही थीं, मिड-डे मील सेंटर में काम करती थीं। उन्हें भी उनके नए घर के पास एक सेंटर में स्थानांतरित किया गया। इस घटना ने राज्य में शिक्षा संस्थानों में जाति हिंसा की गंभीर समस्या को उजागर किया, जो द्रविड़ आंदोलन की भूमि होने के बावजूद बनी हुई है।

चंद्रू समिति का गठन: जाति हिंसा रोकने की पहल

इस घटना के बाद मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने तुरंत कार्रवाई की। अगस्त 2023 में, उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस के. चंद्रू की अध्यक्षता में एक एकल सदस्यीय समिति का गठन किया। समिति का उद्देश्य नंगुनेरी घटना की जांच करना और स्कूलों तथा कॉलेजों में जाति आधारित हिंसा तथा भेदभाव को रोकने के उपाय सुझाना था। जस्टिस चंद्रू, जो सामाजिक न्याय के क्षेत्र में अपनी सख्त राय के लिए जाने जाते हैं, ने राज्य भर में व्यापक सर्वेक्षण किया, जिसमें छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों और विशेषज्ञों से बातचीत शामिल थी।

समिति ने जून 2024 में अपनी 600 पृष्ठों वाली विस्तृत रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी। विडंबना यह है कि रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि तत्कालीन तिरुनेलवेली जिला मुख्य शिक्षा अधिकारी द्वारा स्कूल शिक्षा निदेशालय को सौंपी गई रिपोर्ट में इस घटना को "दो छात्र समूहों के बीच मात्र संघर्ष" बताया गया था, जिसे जस्टिस चंद्रू ने "बेहद निराशाजनक" करार दिया। रिपोर्ट ने तमिलनाडु के शिक्षा तंत्र में गहरे पैठे जातिवाद को उजागर किया, जो राज्य की सामाजिक न्याय की छवि को चुनौती देता है।

चंद्रू समिति की प्रमुख सिफारिशें: जातिवाद उन्मूलन का रोडमैप

समिति की रिपोर्ट में शिक्षा संस्थानों से जातिवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कई गहन सिफारिशें की गई हैं। इनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:

  • जाति चिह्नों पर प्रतिबंध: रिपोर्ट में रंगीन कलाई बैंड, जो जाति पहचान के कोडेड मार्कर बन गए हैं, पर पूर्ण प्रतिबंध की सिफारिश की गई है। उदाहरण के लिए, थेवर समुदाय के लिए लाल-पीला, नादर के लिए नीला-पीला, यादव के लिए केसरिया, जबकि दलित पल्लर समुदाय के लिए हरा-लाल और अरुंधतियार के लिए हरा-काला-सफेद। साथ ही, अंगूठियां, तिलक, बिंदी और अन्य जाति चिह्नों पर भी रोक लगाने का सुझाव दिया गया है।

  • गोपनीयता और प्रशासनिक सुधार: जाति रिकॉर्ड को गोपनीय रखा जाए, केवल स्कूल प्रमुखों तक पहुंच हो। कक्षाओं में बैठने की व्यवस्था वर्णमाला क्रम में हो, उपस्थिति रजिस्टर में जाति कॉलम न हो, और शिक्षक छात्रों को जाति नाम से न पुकारें। किसी भी उल्लंघन पर सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।

  • ओरिएंटेशन और संवेदनशीलता कार्यक्रम: प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत में शिक्षकों, स्टाफ और छात्रों के लिए अनिवार्य ओरिएंटेशन कार्यक्रम आयोजित किए जाएं, जो सामाजिक मुद्दों, जाति भेदभाव और कानूनी प्रावधानों पर केंद्रित हों।

  • स्कूल वेलफेयर ऑफिसर: माध्यमिक स्कूलों में स्कूल वेलफेयर ऑफिसर नियुक्त किए जाएं, जो जाति, यौन या रैगिंग संबंधी अपराधों की निगरानी करें और संवेदनशीलता कार्यक्रम आयोजित करें।

  • मिड-डे मील में भेदभाव पर अंकुश: दलित रसोइयों के खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए प्रत्येक राजस्व ब्लॉक में केंद्रीकृत रसोईघर स्थापित किए जाएं, जो गुणवत्ता और समानता सुनिश्चित करें।

  • स्कूल नामों से जाति हटाना: सभी शिक्षा संस्थानों के नामों से जाति उपनाम हटाए जाएं, जैसे कल्लर रिक्लेमेशन स्कूल या आदि द्रविड़ स्कूल। तमिलनाडु सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1975 में संशोधन कर यह अनिवार्य किया जाए कि नए संस्थानों के नाम में जाति न हो। साथ ही, सभी स्कूलों को एकीकृत शिक्षा विभाग के तहत लाने का सुझाव।

  • सामाजिक न्याय छात्र बल: राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के तहत केरल के स्टूडेंट पुलिस कैडेट स्कीम की तर्ज पर 'सोशल जस्टिस स्टूडेंट्स फोर्स' गठित किया जाए, जो स्वयंसेवकों का एक बल होगा।

  • आरक्षण नीति पर स्पष्ट रुख: रिपोर्ट में कुछ सुझावों का उल्लेख है कि आरक्षण नीति हटाने से जाति हिंसा रुकेगी, लेकिन इसे खारिज करते हुए कहा गया है कि ऐसे सुझाव देने वाले कई खुद आरक्षण के लाभार्थी थे।

रिपोर्ट ने न केवल संस्थागत सुधारों पर जोर दिया, बल्कि समाज स्तर पर हस्तक्षेप की आवश्यकता भी बताई, जिसमे नए कानून बनाने के सुझाव जो सामाजिक समावेशन को बढ़ावा दे और जाति भेदभाव पर दायित्व तय करे आदि शामिल थे।

जून-जुलाई 2024 में रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद, सरकार ने इसके कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया। अगस्त 2025 के अंत में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक हुई, जिसमें रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशों जैसे हाई स्कूल शिक्षकों का नियमित स्थानांतरण और अधिकारियों की पोस्टिंग में स्थानीय प्रभावशाली जातियों से बचने के दिशानिर्देशों पर चर्चा हुई। हालांकि ये सिफारिशें पूरी तरह लागू नहीं हुईं, लेकिन विभाग ने तत्काल कदम उठाते हुए सर्कुलर जारी किया।

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