वाराणसी: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में बौद्ध धर्म के अध्ययन और शोध को एक नई ऊंचाई मिलने वाली है। ताइवान की प्रतिष्ठित संस्था 'बौद्ध कम् पैशन रिलीफ त्ज़ु ची फाउंडेशन' और बीएचयू प्रशासन के बीच एक उच्च स्तरीय बैठक हुई, जिसमें विश्वविद्यालय के कला संकाय स्थित पाली और बौद्ध अध्ययन विभाग के तहत एक अत्याधुनिक 'बौद्ध धर्म अनुसंधान केंद्र' स्थापित करने पर गहन चर्चा की गई।
सोमवार को त्ज़ु ची फाउंडेशन की उपाध्यक्ष लिन पी यू के नेतृत्व में एक 13 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने बीएचयू का दौरा किया। प्रतिनिधिमंडल ने कुलपति प्रोफेसर अजित कुमार चतुर्वेदी से मुलाकात कर केंद्र की स्थापना के प्रस्ताव पर विस्तार से बातचीत की। कुलपति प्रोफेसर चतुर्वेदी ने इस पहल का पुरजोर समर्थन किया और आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय इस प्रस्तावित केंद्र की स्थापना के लिए अपने मानदंडों के अनुसार तेजी से सभी आवश्यक कदम उठाएगा।
क्या होगा केंद्र का उद्देश्य?
यह प्रस्तावित केंद्र पूरी तरह से एक शोध-उन्मुख संस्थान होगा, जिसका मुख्य लक्ष्य बौद्ध धर्म की थेरवाद और महायान दोनों परंपराओं को बढ़ावा देना है। इस केंद्र के माध्यम से निम्नलिखित कार्य किए जाएंगे:
शास्त्रीय ग्रंथों का गहन अध्ययन, अनुवाद और प्रकाशन।
उच्च गुणवत्ता वाले शोध पत्रों को प्रकाशित करना।
एक विशेष व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन करना।
दोनों महान परंपराओं के बीच समझ को गहरा करने के लिए विद्वानों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना।
महायान परंपरा के पुनरुद्धार पर होगा ज़ोर
बैठक के दौरान इस बात पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया कि महायान बौद्ध धर्म, जो कभी भारत में एक अत्यंत समृद्ध और प्रमुख परंपरा थी, समय के साथ अपनी ही जन्मभूमि से लगभग लुप्त हो गई। बीएचयू में इस केंद्र की स्थापना से महायान विचारधारा और साहित्य पर शोध को फिर से जीवित करने में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी।
इसके साथ ही, यह केंद्र प्रमुख बौद्ध धर्मग्रंथों और महत्वपूर्ण पांडुलिपियों का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने का भी कार्य करेगा, ताकि विद्वानों, शोधार्थियों और अनुयायियों के लिए यह ज्ञान सुलभ हो सके। त्ज़ु ची फाउंडेशन ने थेरवाद और महायान दोनों परंपराओं के पवित्र ग्रंथों और साहित्य के अनुवाद एवं प्रकाशन में हरसंभव सहयोग देने की अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है।