नई दिल्ली। भारत के निजी व सरकारी उच्च शैक्षणिक संस्थान दलित और आदिवासी छात्रों के कत्लगाह बन गए हैं। देश में 2019 से 2021 के बीच अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के कम से कम 35 हजार छात्रों ने आत्महत्या के कारण अपनी जान गंवाई है. केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री अब्बैया नारायणस्वामी ने गत मंगलवार को लोकसभा में इसकी जानकारी दी.
इस मामले में ओडिशा के सामाजिक कार्यकर्ता व आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के पूर्व छात्र रहे मधुसूदन ने बताया कि यह तथ्य नया नहीं है. आईआईटी, आईआईएम और केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के अलावा अन्य शैक्षिक संस्थानों में दलित व आदिवासी समुदाय के छात्रों के साथ जातीय भेदभाव होता है. कैरियर खत्म करने का संस्थागत षडयंत्र किया जाता है. अधिकांश मामलों में समुदाय से आने वाले बच्चे इस दबाव को नहीं झेल पाते और उनको आत्महत्या करनी पड़ती है। उन्होंने रोहित वेमुला, पायल तड़वी व दर्शन सोलंकी आदि छात्रों के उदाहरण गिनाए.
मंत्री को जातीय भेदभाव की जानकारी नहीं
इधर, केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री अब्बैया नारायणस्वामी सदन ने सदन में दिए बयान में कहा था-देश में सामाजिक भेदभाव के कारण आत्महत्या करने वाले एससी/एसटी छात्रों की संख्या के बारे में कोई जानकारी नहीं है. नारायणस्वामी सामाजिक भेदभाव के कारण आत्महत्या करने वाले एससी/एसटी छात्रों की संख्या के बारे में जनता दल (यूनाइटेड) नेता डॉ. आलोक कुमार सुमन के एक सवाल का जवाब दे रहे थे'
चौंकाने वाले आंकड़े
मंत्री द्वारा सदन को दी जानकारी के अनुसार 2019 में 10,335, 2020 में 12526 और 2021 में 13,089 एससी/एसटी छात्रों ने आत्महत्या की है. इनमें 2021 में महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की. यहां कम से कम 1,834 छात्रों को अपनी जान लेने के लिए मजबूर किया गया. 2020 और 2019 में भी, महाराष्ट्र इस सूची में टॉप पर था, जब राज्य में क्रमशः 1,648 और 1,487 छात्रों ने आत्महत्या की.
तीन सालों में लक्षद्वीप में आत्महत्याओं की संख्या सबसे कम
राज्य मंत्री नारायणस्वामी ने अपने जवाब में यह उल्लेख किया कि तीन सालों में लक्षद्वीप में आत्महत्या के मामले शून्य रहे है. वहीं आत्महत्या पर रोक लगाने की कोशिशों पर बात करते हुए जानकारी दी कि उच्च शिक्षा विभाग ने, अन्य बातों के अलावा, शैक्षणिक संस्थानों में निम्न निकायों की स्थापना की है। इनमें काउंसलिंग सेल, एससी/एसटी स्टूडेंट सेल, समान अवसर सेल व छात्र शिकायत सेल बनाई गई है.
कॉलेज कैंपसों में जातिगत भेदभाव का आरोप
इस साल की शुरुआत में फरवरी में आईआईटी बॉम्बे में बीटेक फर्स्ट ईयर के छात्र दर्शन सोलंकी की आत्महत्या से मौत हो गई. इस मामले में एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. तब से, छात्रों द्वारा परिसर में जातिगत भेदभाव का आरोप लगाने वाली कई रिपोर्टें सामने आई हैं. 2023 में आईआईटी मद्रास के कम से कम दो छात्रों की भी आत्महत्या से मौत हो गई थी.
कोटा में सर्वाधिक मौतें
भारत में 2023 में छात्रों की आत्महत्या के मामले तेजी से दर्ज किए गए हैं. राजस्थान के कोटा में अकेले इस साल कम से कम 29 छात्रों की आत्महत्या से मौत हो चुकी है. छात्रों की बढ़ती आत्महत्या को देखते हुए, राजस्थान सरकार ने सितंबर में कोचिंग संस्थानों के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किए. केंद्र ने भी स्कूलों के लिए उम्मीद नामक दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है.
ड्रॉप आउट रेट भी सबसे ज्यादा
केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार ने गत दिनों लोकसभा में एक लिखित सवाल के जवाब में जानकारी दी कि पिछले पांच साल में आईआईटी और आईआईएम सहित अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले एससी व एसटी और ओबीसी कैटेगरी के 13000 से अधिक छात्रों ने पढ़ाई छोड़ी दी है.
शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में राज्य मंत्री ने बताया कि पिछले पांच साल में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले 4,596 ओबीसी 2,424 एससी और 2,622 एसटी छात्रों ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी. इनमें आईआईटी के भीतर 2,066 ओबीसी, 1,068 एससी और 408 एसटी छात्रों ने पढ़ाई छोड़ी. इसी तरह आईआईटी में पढ़ने वाले 2,066 ओबीसी, 1,068 एससी और 408 एसटी छात्रों ने पढ़ाई छोड़ दी. जबकि आईआईएम में पढ़ने वाले 163 ओबीसी, 188 एससी और 91 एसटी छात्रों ने पढ़ाई छोड़ी. इस तरह केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी और आईआईएम में पढ़ने वाले आरक्षित वर्ग के 13,626 छात्रों को पिछले पांच साल में पढ़ाई छोड़नी पड़ी.