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"मणिपुर ऑन फायर" किताब के बारे में वह बातें जो आप जानना चाहेंगे..

"मणिपुर ऑन फायर: जातीय संघर्ष और अस्तित्व की गवाही" [Manipur on Fire: Eyewitness to Ethnic Strife and Survival] में राजन चौधरी उन कहानियों को बुनते हैं जो हाल ही में भारत के इतिहास में हुए सबसे भयानक जातीय संघर्ष की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है। नोशन प्रेस द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक, 2023 की गर्मियों में मणिपुर में भड़की हिंसा का प्रत्यक्ष अनुभव है जिसमें हिंसा के बाद संघर्षों और चुनौतियों से जूझ रही आदिवासी जिंदगियों की आँखों देखी मानवीय कहानी भी हैं।

द मूकनायक के सहायक संपादक राजन चौधरी ने मणिपुर हिंसा पर अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग की श्रृंखलाओं सहित, संघर्ष से तबाह समुदायों की दबी आवाज़ों और उन अनकही कहानियों को किताब के माध्यम से दुनिया के सामने लाने का प्रयास किया है जो लगभग राज्य के बाहरी हिस्सों के लिए अनजान हैं। किताब अमेजन, फ्लिप्कार्ट और नोशन प्रेस पब्लिकेशन के बुक स्टोर पर उपलब्ध है.

लेखक ने किताब के शुरुआत में जिक्र किया है कि, कैसे मणिपुर हिंसा की रिपोर्टिंग के लिए राज्य में प्रवेश करने के लिए, लखनऊ से दीमापुर, नागालैंड और उसके बाद मणिपुर के अस्थिर केंद्र तक की यात्रा भयावह और तनावपूर्ण रही। सीमित संसाधनों और बिना किसी सुरक्षा के, शारीरिक कठिनाइयों, अवैध वसूली और सशस्त्र पूछताछ का सामना हुए लेखक जोखिम भरे रास्तों से होकर गुजरता है।

मणिपुर ऑन फायर किताब, विस्थापितों, घायल लोगों और शोकग्रस्त परिवारों के अनुभवों को दस्तावेजीकरण करने का प्रयास करता है।

सुर्खियों से परे, "मणिपुर ऑन फायर" किताब, असाधारण परिस्थितियों में फंसे आम लोगों के जीवन की दुर्दाशाओं से पाठक को महसूस करता है। पुस्तक ऐसे व्यक्तियों के जीवंत चित्रण प्रस्तुत करती है जैसे कि खैदम सुभाष, एक व्यक्ति जिसकी घर बनाने की उम्मीद हिंसा के कारण टूट जाती है, और लमवाह तौथांग, जो एक राहत शिविर में बच्चे को जन्म देती हैं और विस्थापन की चुनौती से जूझती हैं। बेटी के जन्म के तुरंत बाद उसके पास साफ कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं होता जिसमें वह अपने नवजात बच्ची को रख सके, क्योंकि हिंसा के दौरान उसके घर और कपड़े, सबकुछ जल चुके थे. इस किताब की प्रत्येक कहानी एक भावनात्मक भार लिए हुए है जिसे केवल आँकड़ों के माध्यम से व्यक्त नहीं किया जा सकता।

पुस्तक महिलाओं के धैर्य का शब्दों के माध्यम से सजीव और मार्मिक चित्रण करती है। महिलाओं के खाने और दवाइयों की खोज से लेकर राहत शिविरों में खराब परिस्थितियों में गर्भवती महिलाओं के अनुभव तक, पुस्तक में शामिल ये कहानियाँ संघर्ष के समय में महिलाओं और बच्चों पर पड़ने वाले असमान बोझ को उजागर करती हैं।

यह पुस्तक मणिपुर के दो टूक हुए भागों का सावधानीपूर्वक विवरण देती है, जहाँ समुदाय जातीय सीमाओं के अनुसार विभाजित हैं। किताब का एक महत्वपूर्ण खंड मुस्लिम ड्राइवरों पर केंद्रित है जो कुकी और मैतेई क्षेत्रों के बीच तटस्थ मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं, जिससे क्षेत्र की नाजुक सामाजिक-राजनीतिक संरचना का पता चलता है।

लेखक किताब में उन मानवीय संकटों पर प्रकाश डालता है जो क्षेत्र को लंबे समय तक प्रभावित करते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से लेकर शिक्षा में बाधा तक, पुस्तक जातीय संघर्ष के दीर्घकालिक प्रभावों का दस्तावेज़ बनाती है। सामान्य स्थिति की उम्मीद लगाए बच्चे, अपने नुकसान का शोक मनाते परिवार, और अलग प्रशासन की मांग करने वाले समुदाय एक अपरिवर्तित तनाव का चित्रण करते हैं।

"मणिपुर ऑन फायर" सिर्फ घटनाओं का वर्णन नहीं है; यह जवाबदेही और न्याय की मांग है। किताब की कहानियां पाठकों को असुविधाजनक सच्चाइयों का सामना करने और मुख्यधारा के मीडिया द्वारा प्रचारित कहानियों पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित करते हैं।

राजन चौधरी की "मणिपुर ऑन फायर" समकालीन भारतीय साहित्य में एक सशक्त, आवश्यक योगदान हो सकता है। यह रिपोर्टिंग और व्यक्तिगत गवाही के बीच की खाई को पाटती है, साथ ही पाठकों को याद दिलाती है कि हर संघर्ष के पीछे मानव जीवन और कहानियाँ हैं जो सुनी जानी चाहिए।

पत्रकारों, इतिहासकारों, नीति निर्माताओं और सहानुभूतिपूर्ण पाठकों के लिए, यह पुस्तक मणिपुर के जातीय संघर्ष और उसके लोगों की अदम्य भावना को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करती है। 30 दिसंबर को इ-कामर्स वेबसाइटों पर किताब प्रकाशित होने के बाद से ही किताब के प्रति लोगों की खासा जिज्ञासा दिखाई दिया है. लेखक ने बताया कि किताब के प्रकाशन के बाद से ही मात्र एक दिन में Manipur on Fire की एक दर्जन से भी अधिक प्रतियां पाठक ऑर्डर कर चुके हैं.

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