नई दिल्ली – स्त्रीकाल के संस्थापक संपादक, लेखक और राजनीतिक विश्लेषक संजीव चंदन ने अपनी हालिया पुस्तक में कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी की राजनीतिक यात्रा का विश्लेषण करते हुए उन्हें "व्याकुल मन का नायक" कहा है। पुस्तक में चंदन ने राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सफलताओं और असफलताओं पर गहराई से प्रकाश डाला है।
चंदन का तर्क है कि राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी की सहजता और विनम्रता के उत्तराधिकारी हैं, जबकि सोनिया गांधी से उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक समन्वय की कला सीखी। हालांकि, राहुल में वैचारिक दृढ़ता और इंदिरा गांधी जैसा साहस का अभाव दिखता है, जो एक प्रभावी नेता बनने के लिए आवश्यक होते हैं। यह पुस्तक राहुल गांधी की राजनीतिक यात्रा के उन क्षणों को भी सामने लाती है, जब उनके निर्णयों ने पार्टी की स्थिति को कमजोर किया।
पुस्तक का मुख्य सार और विश्लेषण
चंदन ने 2004 में राहुल के अमेठी से सांसद बनने के बाद के घटनाक्रम को विशेष रूप से रेखांकित किया है। उन्होंने राहुल के उन कदमों पर आलोचना की है, जो उनकी राजनीतिक क्षमता को लेकर संदेह उत्पन्न करते हैं। चंदन के अनुसार, राहुल का प्रधानमंत्री बनने से खुद को दूर रखना और नेतृत्व के अवसरों को गंवाना, उनके नेतृत्व में कमजोरियों को उजागर करता है। उनके निर्णयों में अक्सर विचारों की अस्थिरता और आत्मविश्वास की कमी दिखती है, जिसने पार्टी की विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचाया है।
पुस्तक में 2013 के उस महत्वपूर्ण क्षण का भी जिक्र है, जब राहुल गांधी ने एक प्रमुख अधिनियम को पलटने का आवेगपूर्ण निर्णय लिया। चंदन के अनुसार, इस फैसले ने न केवल कांग्रेस पार्टी की सार्वजनिक छवि को कमजोर किया बल्कि उनके नेतृत्व पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा किया। राहुल के राजनीतिक करियर में इस प्रकार के अनिश्चित निर्णय और उनकी आवेगशीलता ने पार्टी के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं, जो उनकी नेतृत्व क्षमता पर शंका उत्पन्न करते हैं।
चंदन ने यह सवाल उठाया है कि राहुल गांधी की इस अनिश्चित नेतृत्व शैली के बावजूद बुद्धिजीवी वर्ग ने उन्हें नायक क्यों माना। उन्होंने विशेष रूप से ब्राह्मणवादी समाज की आलोचना करते हुए कहा कि भारतीय समाज के प्रमुख वर्गों ने राहुल को एक आभासी नेता के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि वे वास्तविक नेतृत्व प्रदान करने में असमर्थ रहे हैं। चंदन के अनुसार, राहुल गांधी के प्रति यह अंधभक्ति और उनका "वर्चस्ववादी" नेतृत्व का प्रयास कांग्रेस पार्टी की वास्तविक मजबूती के लिए हानिकारक है।
राहुल को लिखे गए पत्र: सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर कांग्रेस का झुकाव?
पुस्तक में संजीव चंदन द्वारा राहुल गांधी को लिखे गए दो पत्रों का भी उल्लेख किया गया है। पहले पत्र में, चंदन ने राहुल को सामाजिक न्याय और अम्बेडकरवादी समानता के सिद्धांतों पर आधारित कांग्रेस का पुनर्निर्माण करने की सलाह दी। चंदन ने जोर देकर कहा कि यदि कांग्रेस अपने पुरानी विचारधारा के आधार पर जनता के समक्ष जाएगी, तो उसे पुनः स्थापित होने में कठिनाई होगी। इसके विपरीत, यदि राहुल गांधी कांग्रेस को समावेशी और प्रगतिशील मूल्यों की दिशा में ले जाते हैं, तो यह जनता के बीच अपनी खोई हुई साख को पुनः प्राप्त कर सकती है।
चंदन ने अपने पत्र में यह सवाल उठाया है कि कांग्रेस की मौजूदा रणनीति में सामाजिक न्याय के प्रतीकों और नायकों को क्यों अनदेखा किया जा रहा है, जबकि बीजेपी इन्हें अपने लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कर्पूरी ठाकुर को ऐसे समय याद किया जब उन्होंने संवैधानिक पद पर रहते हुए राम मंदिर में पूजा कर संविधान की मूलभूत भावना को चुनौती दी। इसके विपरीत, कांग्रेस ने कर्पूरी ठाकुर जैसे समाजवादी और सामाजिक न्याय के प्रतीकों को भुला दिया।
चंदन ने विशेष रूप से 25 जून का उल्लेख किया, जो इमरजेंसी की बरसी और वीपी सिंह की जयंती का दिन है, और कहा कि कांग्रेस इस मौके को सामाजिक न्याय की दिशा में एक नई पहल के रूप में प्रस्तुत कर सकती थी। वीपी सिंह, जिन्होंने राजीव गांधी का विरोध किया था, बाद में साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ सोनिया गांधी के साथ खड़े रहे। चंदन का कहना है कि ऐसे नायकों को स्मरण कर कांग्रेस साम्प्रदायिकता के खिलाफ अपना सशक्त रुख स्पष्ट कर सकती थी, मगर दुर्भाग्यवश कांग्रेस ने इसे एक अवसर की तरह नहीं देखा।
दूसरे पत्र में चंदन ने कांग्रेस की संरचना में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि राहुल को पार्टी में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत करना चाहिए और नेतृत्व के लिए नए चेहरों को मौका देना चाहिए। चंदन का मानना है कि यदि कांग्रेस नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ती है, तो वह भारतीय राजनीति में एक मजबूत विकल्प के रूप में उभर सकती है।
पुस्तक के अंत में संजीव चंदन ने इस बात पर गहरी टिप्पणी की है कि राहुल गांधी को 2024 के चुनावों में जनता से वह समर्थन नहीं मिला, जिसकी उम्मीद थी।
चन्दन लिखते हैं, " 2024 में विपक्ष का नैरेटिव मोदी बनाम राहुल पर टिकता गया। जो बेहद प्रत्यक्ष न भी था तो भी बेहद आक्रामक था। राहुल के अलावा विपक्ष के किसी भी नेता को डिस्क्रेडिट करने की मुहिम मैं देख रहा था। खासकर तब, जब वह राहुल या कांग्रेस से अलग राय लेता हो। इसका शिकार अखिलेश यादव तक हुए, जिन्होंने बीजेपी का रथ पीडीए के जरिये यूपी में जकड़ दिया, 37 सीटें अपनी पार्टी के लिए हासिल की और कांग्रेस के खाते में भी 6 सीटें डाल दीं।"
वे लिखते हैं : " 2024 के फरवरी में इंडिया गठबंधन के संयोजक के लिए सोनिया गांधी द्वारा नीतीश कुमार के नाम की घोषणा के बाद राहुल का हस्तक्षेप और नीतीश कुमार का नाराज हो जाना और उनका एनडीए ज्वाइन कर लेना, इसके बाद अबतक का सबसे बड़ा कुप्रभाव हुआ। इंडिया गठबंधन मुकाबले में कमजोर हो गया।"
चन्दन ने राहुल की उस नेतृत्व शैली पर सवाल उठाया जिसमें स्पष्ट पोर्टफोलियो के बिना ही सुप्रीम नेता बनने की कोशिश दिखाई देती है। चंदन का मानना है कि राहुल गांधी के पास कांग्रेस पार्टी को पुनर्जीवित करने की क्षमता है, लेकिन इसके लिए उन्हें अपने नेतृत्व में दृढ़ता और विचारशीलता लानी होगी।
संजीव चंदन कहते हैं, "राहुल गांधी की राजनीति में अनिश्चितता और अवसरवादी व्यवहार ने उन्हें एक स्थायी नेता के रूप में स्थापित होने से रोक दिया है। कांग्रेस को अपने 99 सीटों की सीमा से आगे बढ़ाने के लिए वास्तविक नेतृत्व और स्पष्ट नीतियों की आवश्यकता है।"
चंदन की यह पुस्तक न केवल राहुल गांधी की व्यक्तिगत राजनीतिक यात्रा का आलोचनात्मक अध्ययन है, बल्कि कांग्रेस के भविष्य के लिए भी गंभीर सवाल उठाती है। यह किताब पाठकों के बीच व्यापक चर्चा का विषय बन गई है, जिसमें राहुल गांधी की भूमिका, कांग्रेस की संभावनाएँ और भारतीय राजनीति के बदलते स्वरूप पर विचार करने का आग्रह है।