— ✍️ आशुतोष रांका
कई विशेषज्ञों ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी को मिली अप्रत्याशित हार का जिम्मेदार राजधानी में व्याप्त choked governance को ठहराया था। यह उम्मीद जताई गई कि राज्य में बीजेपी की सरकार बनने से policy paralysis खत्म होगा और दिल्ली में विकास की रफ्तार तेज़ होगी।
लेकिन पिछले तीन महीनों में रफ्तार तेज़ होना तो दूर की बात, पिछले 12 वर्षों में हुए विकास को ही एक-एक कर खत्म किया जा रहा है।
दिल्ली चुनावों की प्रक्रिया के बीच भारतीय जनता पार्टी ने शिक्षा व्यवस्था में बड़े बदलाव और “जहाँ झुग्गी, वहाँ मकान” जैसे बड़े दावे किए थे। यहाँ तक कहा गया कि आम आदमी पार्टी ने शिक्षा और ग़रीबों के लिए कुछ नहीं किया।
पर मात्र तीन महीने में रेखा गुप्ता की सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को पुराने ढर्रे पर ले जाने की तैयारी कर ली। चुनाव के बाद पहले ही बजट में दिल्ली का शिक्षा बजट, जो पूर्ण बजट का लगभग 25% हुआ करता था, उसे घटाकर 19% कर दिया गया। पूरी दुनिया में प्रशंसा प्राप्त करने वाले हैप्पीनेस और देशभक्ति करिकुलम को बंद कर दिया गया। एंटरप्रेन्योरशिप करिकुलम और बिज़नेस ब्लास्टर जैसे कार्यक्रम, जिनसे बच्चों में उद्यमिता की भावना विकसित हो रही थी और सैकड़ों बच्चे अपने बिज़नेस शुरू करने में सफल हुए थे, उन्हें भी बंद कर दिया गया। मिशन बुनियाद, जो कि बच्चों में लर्निंग गैप्स को कम करने के लिए शुरू किया गया था, उसे भी बंद कर दिया गया।
किराड़ी और सुंदर नगरी में बने बिल्कुल नए स्कूल, जिनमें 10,500 से अधिक बच्चे पढ़ने वाले थे, वे धूल खा रहे हैं। बोर्ड के नतीजे आने के बाद कई हफ्तों तक बच्चों से मुलाकात नहीं की गई, न ही सरकारी स्कूलों की रिपोर्ट जारी की गई। सरकार ने अलग से दिल्ली बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन को भी बंद करने का निर्णय ले लिया। प्राइवेट स्कूलों ने अंधाधुंध फीस बढ़ा दी। हद तो तब हो गई जब एक स्कूल में बच्चों को फीस जमा न कराने पर लाइब्रेरी में बंद कर दिया गया।
इसी तरह, हर दूसरे दिन “जहाँ झुग्गी वहाँ मकान” की बात करने वाली भाजपा अब तक तीन झुग्गियों को साफ कर चुकी है। मार्च में सीलमपुर की यमुना झुग्गी को साफ किया गया, जिसमें 100 से ज़्यादा परिवारों ने अपना घर खो दिया। मई में जगंपुरा की मद्रासी कैंप झुग्गी को हटाया गया, जिसमें लगभग 400 से ज़्यादा घर ध्वस्त हुए। और अभी कुछ दिन पहले कालकाजी में भूमिहीन कैंप में 300 घरों को उजाड़ दिया गया।
पिछले तीन महीनों में दिल्ली में हो रही गतिविधियों का यह बहुत ही छोटा सा हिस्सा है। स्वास्थ्य, सार्वजनिक परिवहन, पानी, बिजली – लगभग सभी क्षेत्रों में पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा शुरू की गई कई कल्याणकारी योजनाओं को बंद कर दिया गया, या उन्हें कमजोर कर दिया गया, या फिर कुछ नहीं तो सिर्फ नाम बदल दिया गया। इन सबमें एक पैटर्न साफ है – ज़्यादातर योजनाएँ पहले आम आदमी पार्टी द्वारा लाई गई थीं और जनता के बीच बेहद लोकप्रिय थीं।
क्यों भाजपा सरकार राजनीति से ऊपर उठकर पुरानी अच्छी योजनाओं को जारी नहीं रखना चाहती? क्या राजनीति अब सिर्फ बदले की भावना से चल रही है?
राजनीति में हार-जीत लगी रहती है। अगर दिल्ली की जनता ने इस बार भाजपा को वोट दिया है, तो कुछ सोच-समझकर ही दिया होगा। पर क्या जीत का मतलब यह है कि आप पूर्ववर्ती सरकार द्वारा किए गए सभी अच्छे कार्यों को बंद करवा दें? इसलिए कि आपको पिछली सरकार से कोई राजनीतिक द्वेष है? या इसलिए कि उन कामों से आपको कोई राजनीतिक लाभ नहीं है, भले ही वे जनता के लिए लाभकारी हों?
क्या इस तरह दिल्ली आगे बढ़ेगी? क्या इस तरह देश आगे बढ़ पाएगा?
अगर आम आदमी पार्टी ने भी यही सोच रखी होती और यह मान लिया होता कि शीला दीक्षित सरकार के कार्यकाल में बने इन्फ्रास्ट्रक्चर को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए क्योंकि उससे कांग्रेस को फायदा हो जाएगा, तो क्या आज दिल्ली में पिछले 12 वर्षों में 70 से ज़्यादा फ्लाईओवर बन पाते?
ये सवाल पूछे जाने चाहिए।
राजनीति का मकसद देश को आगे बढ़ाने का होना चाहिए, अपने प्रतिद्वंद्वियों से बदला लेने का नहीं। और बच्चों की शिक्षा तथा ग़रीबों के घरों से खिलवाड़ करके तो बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि वह बदले की नहीं, गुनाह करने की श्रेणी में आएगा। यह दिल्ली की जनता से धोखा करने की श्रेणी में आएगा।
नोट- लेखक आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता हैं। वे आईआईटी कानपुर और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से स्नातक हैं और पहले मैकिन्से में सलाहकार थे। वे शहरी विकास, बेरोजगारी, सामाजिक न्याय और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर रुचि रखते हैं और नियमित रूप से लिखते हैं।