भोपाल। मध्य प्रदेश के भिंड जिले से फिर एक दलित उत्पीड़न, जातिगत भेदभाव से जुड़ा मामला सामने आया है, जिसने प्रदेशभर की राजनीतिक और सामाजिक माहौल को गर्मा दिया है। पहले एक दलित ट्रक चालक के साथ अमानवीय और अपमानजनक बर्बरता, और अब उसी जिले में कथित रूप से ब्राह्मण समाज के कुछ लोगों द्वारा जाटव (दलित) समुदाय के सामाजिक बहिष्कार की शपथ इस पूरे घटनाक्रम ने प्रदेश के दलित समुदाय में गहरा आक्रोश पैदा कर दिया है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दिख रहा है कि कथित महापंचायत में कुछ लोग से जाटव समाज के लोगों से किसी भी प्रकार का संबंध न रखने की शपथ दिलाई जा रही है। इसी वीडियो ने पूरे मामले में जातीय तनाव की चिंगारी को और भड़का दिया है।
इस घटना की पृष्ठभूमि में दीवाली के दिन हुआ वह दर्दनाक मामला है, जिसमें दलित युवक ज्ञानसिंह जाटव, जो एक ट्रक चालक हैं, के साथ दंभी जातिवादियों ने क्रूर व्यवहार किया। पीड़ित के अनुसार- “बंदूक की नोक पर गाड़ी में बैठाया गया, लोहे की जंजीरों से बांधकर लगातार पीटा गया। अपमानित करने के लिए मुझे जबरदस्ती बोतल में भरकर पेशाब पिलाई गई। ये सिर्फ हिंसा नहीं, जाति के नाम पर दी गई सज़ा थी। यह जातीय आतंक है।” घटना के उजागर होने के बाद भी पीड़ित पक्ष का आरोप है कि गिरफ्तारियाँ टालमटोल में हैं, जबकि आरोपी खुलेआम इधर-उधर घूम रहे हैं।
अब महापंचायत और बहिष्कार की शपथ
ताजा वीडियो में कथित ब्राह्मण समाज की बैठक में मंच से यह कहा जा रहा है कि जाटव समाज के लोगों से संबंध, संवाद, लेन-देन, सामाजिक व्यवहार और नातेदारी- किसी भी स्तर पर नहीं रखी जाएगी। इससे दलित संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों ने इसे संवैधानिक मर्यादाओं पर सीधा हमला बताया है।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह सीधे-सीधे अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, भारतीय दंड संहिता की धारा 153-A (समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाना) और धारा 505 (अफवाहों और भाषणों के माध्यम से नफरत फैलाने का प्रयास) के दायरे में आता है। इन धाराओं के तहत किसी भी समुदाय के खिलाफ़ घृणा पैदा करना, सामाजिक बहिष्कार का आह्वान करना, सार्वजनिक रूप से उकसावेभरे बयान देना और जातीय वैमनस्य फैलाने वाली सभा आयोजित करना दंडनीय अपराध है।
द मूकनायक से बातचीत में विधि विशेषज्ञ अधिवक्ता मयंक सिंह ने कहा- “वीडियो में जिस तरह कथित रूप से एक समुदाय के बहिष्कार की शपथ दिलाई जा रही है, वह न केवल सामाजिक रूप से खतरनाक है, बल्कि संवैधानिक मूल्यों पर सीधा प्रहार है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 सभी नागरिकों को समानता की गारंटी देता है, अनुच्छेद 15 जाति के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है, और अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता एवं उससे जुड़ी प्रथाओं को पूर्ण रूप से समाप्त करता है। ऐसे में किसी समुदाय के बहिष्कार की सार्वजनिक घोषणा, संविधान, क़ानून और न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के विपरीत है।”
उन्होंने आगे कहा, “SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम में ऐसे कृत्यों को गंभीर अपराध माना गया है, क्योंकि यह किसी व्यक्ति या समुदाय को सामाजिक, मानसिक और आर्थिक रूप से उत्पीड़ित करने का सुनियोजित प्रयास होता है। वहीं IPC की धारा 153-A और 505 ऐसे बयानों व सभाओं पर लागू होती हैं, जो समाज में नफरत, तनाव या विभाजन को बढ़ावा देती हैं। ऐसे मामलों में पुलिस और प्रशासन का कर्तव्य है कि वे तत्काल संज्ञान लेकर कठोर कार्रवाई करें, ताकि समाज में कानून का संदेश जाए, न कि गुंडागर्दी और जातीय उन्माद का।”
आजाद समाज पार्टी का विरोध
आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद ने एक्स पर एक पोस्ट जारी करके पूरे घटनाक्रम को “जातीय आतंकवाद का चरम रूप” बताया है।
उन्होंने कहा- “अपराधियों को सज़ा मिलने के बजाय सवर्ण समाज के एक वर्ग द्वारा महापंचायतें की जा रही हैं और जाटव समाज के बहिष्कार की शपथ ली जा रही है। यह संविधान, समानता और मानवीय गरिमा के खिलाफ़ युद्ध है। अगर यह आतंकवाद नहीं, तो और क्या है?”
उन्होंने सरकार से माँग की है कि-
- आरोपियों और भड़काने वालों की तत्काल गिरफ्तारी हो।
- महापंचायत आयोजित करने वालों पर SC/ST एक्ट और राजद्रोह में एफआईआर हो।
-पीड़ित परिवार को सुरक्षा और सम्मान दिया जाए।
भिंड के पुलिस अधीक्षक असित यादव ने इस मामले पर द मूकनायक से बातचीत में कहा कि वायरल वीडियो को पुलिस ने संज्ञान में ले लिया है और इसकी जांच की जा रही है। उन्होंने कहा, “वीडियो सामने आया है। पुलिस पूरे प्रकरण की पड़ताल कर रही है। जांच के बाद ही तथ्यों के आधार पर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल मामला परीक्षण में है।”
क्या कहता है संविधान?
भारत का संविधान हर नागरिक को भेदभाव-रहित जीवन जीने का मौलिक अधिकार देता है। छुआछूत, जातिगत बहिष्कार और सामाजिक अलगाव को यह गैर-कानूनी घोषित करता है, साथ ही राज्य पर यह दायित्व भी डालता है कि वह समाज के कमजोर वर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और उन्हें समान अवसर उपलब्ध कराए। ऐसे में किसी भी समुदाय के साथ अपमान, उत्पीड़न या बहिष्कार न केवल मानवीय मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि सीधे-सीधे संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन भी है।
यह वीडियो इसलिए और गंभीर माना जा रहा है, क्योंकि यह सामूहिक बहिष्कार को वैध ठहराने का प्रयास दिखाता है- यह वही सामाजिक व्यवस्था है जिसे डॉ. भीमराव आंबेडकर ने सामाजिक दासता का आधार बताया था।