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राजस्थान में REET-2025 में जनेऊ विवाद पर दलित शिक्षिका निलंबित, डॉ. अंबेडकर मेमोरियल वेलफेयर सोसाइटी ने कहा—जाति के कारण बनीं सॉफ्ट टारगेट!

जयपुर -  राजस्थान के सभी जिलों में 27 और 28 फरवरी को राजस्थान अध्यापक पात्रता परीक्षा हुई। डूंगरपुर जिले में परीक्षा के दौरान दो केन्द्रों पर अभ्यर्थियों से जनेऊ उतरवाने का मामला गरमा गया. इस घटना के बाद प्रशासन ने सुंदरपुर परीक्षा केंद्र की फील्ड सुपरवाइजर सुनीता कुमारी, जो राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, खेड़ा कच्छवासा में प्राध्यापक हैं, को सस्पेंड कर दिया। सुनीता एससी वर्ग से हैं।

इस कार्रवाई पर अम्बेडकर वेलफेयर सोसाइटी ने कड़ी आपत्ति जताई है और अतिरिक्त मुख्य सचिव, स्कूल शिक्षा, भाषा, पुस्तकालय एवं पंचायती राज (प्रारंभिक शिक्षा) विभाग को पत्र लिखकर निलंबन आदेश निरस्त करने की मांग की है।

सोसाइटी के महासचिव जी.एल. वर्मा ने पत्र में लिखा कि मामले में केंद्राविक्षक विजय कुमार जोशी ने इस केंद्र पर इस प्रकार की किसी भी घटना होने से इनकार किया है और सुनीता कुमारी के ऊपर भी किसी प्रकार का आक्षेप नहीं लगाया है। सुनीता कुमारी अनुसूचित जाति की एक कर्तव्यनिष्ठ सरकारी कर्मचारी है और उनके निलंबन से राजस्थान में अनुसूचित जाति को गहरा आघात पहुंचा है।

ये था मामला - अभ्यर्थियों से जनेऊ उतारने को कहा

रीट परीक्षा के दूसरे दिन 28 फरवरी को डूंगरपुर जिले में सुबह परीक्षा केंद्र में जांच के समय दो ब्राह्मण कैंडिडेट्स की जनेऊ उतारने की घटना सामने आई थी. पुनाली के एक कॉलेज में दो ब्राह्मण कैंडिडेट्स की जनेऊ उतरवाई गई थी. जबकि सुंदरपुर सेंटर पर भी एक ब्राह्मण कैंडिडेट की जनेऊ उतरवाने का मामला सामने आया था.

अभ्यर्थियों ने इसे अपनी संस्कृति और धर्म का हिस्सा बताते हुए विरोध जताया, लेकिन उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी गई। बाद में जनेऊ उतारकर पास के पेड़ पर टांगना पड़ा। परीक्षा समाप्त होने के बाद उन्होंने जनेऊ वापस धारण किया।

जब यह घटना सामने आई, तो ब्राह्मण समाज में आक्रोश फैल गया। विप्र फाउंडेशन और अन्य संगठनों ने इस मुद्दे को उठाते हुए डूंगरपुर जिला कलेक्टर अंकित कुमार सिंह से कार्रवाई की मांग की।

विप्र फाउंडेशन ने इस घटना की कड़ी निंदा की और जोर देकर कहा कि जनेऊ ब्राह्मण समाज के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। फाउंडेशन के जिला अध्यक्ष ललित उपाध्याय और महामंत्री प्रशांत चौबीसा ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर जवाबदेही की मांग की। उन्होंने सवाल उठाया कि जब सरकार ने जनेऊ हटाने का कोई निर्देश जारी नहीं किया था, तो अभ्यर्थियों पर यह नियम क्यों थोपा गया? फाउंडेशन ने कहा कि यह घटना सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं के प्रति संवेदनहीनता को दर्शाती है।

जांच के बाद प्रशासन ने कड़ा रुख अपनाया। सुंदरपुर परीक्षा केंद्र की सुपरवाइजर सुनीता कुमारी, जो राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, खेड़ा कच्छवासा की प्रधानाध्यापिका हैं, को निलंबित कर दिया गया। साथ ही, पुनाली केंद्र के हेड कॉन्स्टेबल शिवलाल को लाइन हाजिर किया गया। 

डॉ. अंबेडकर मेमोरियल वेलफेयर सोसाइटी का रुख: जाति के कारण निशाना

सुनीता कुमारी के निलंबन पर डॉ. अंबेडकर मेमोरियल वेलफेयर सोसाइटी ने आरोप लगाया है कि उन्हें उनकी जाति के कारण निशाना बनाया गया है। संगठन के महासचिव जी.एल. वर्मा ने द मूकनायक से बातचीत में कहा कि यह घटना अकेली नहीं है, जहां प्रतियोगी परीक्षाओं में नकल और धोखाधड़ी रोकने के लिए सख्त नियम लागू किए गए हों।

उन्होंने बताया कि पहले भी महिला अभ्यर्थियों की नथ उतरवाने और हाथों में बंधे धागे काटने जैसी घटनाएं हुई हैं, लेकिन उन पर इतना बवाल नहीं हुआ। वर्मा ने कहा, "यहां चूंकि वह एक महिला और दलित समुदाय से हैं, इसलिए उन्हें सॉफ्ट टारगेट बनाया गया। यह हास्यास्पद है। हम इस मुद्दे को विधानसभा में उठाएंगे।"

क्या लेडी टीचर्स बन रही हैं आसान निशाना- पहले हेमलता फिर मेनका!

यह घटना अकेली नहीं है। इससे पहले भी दलित समुदाय की हेमलता बैरवा और आदिवासी समाज की मेनका डामोर  जैसी शिक्षिकाओं को विवादास्पद परिस्थितियों में निलंबित किया गया था, जिससे यह आरोप लगे कि शिक्षकों को अनुचित तरीके से निशाना बनाया जा रहा है। 

राजस्थान के बारां जिले में स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय लकड़ई की शिक्षिका हेमलता बैरवा ऐसे ही एक संघर्ष का प्रतीक बन गई। गणतंत्र दिवस 2024 के अवसर पर विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान मंच पर केवल बाबा साहब और महात्मा गांधी की तस्वीरें देखकर कुछ लोगों द्वारा सरस्वती की तस्वीर रखने पर जोर दिया गया. हेमलता बैरवा ने उनको इनकार करते हुए स्पष्ट कहा था, "शिक्षा की असली देवी सावित्री बाई फुले हैं।"

उनके इस साहसिक कदम ने स्थानीय जातिवादी मानसिकता को चुनौती दी, लेकिन इसके परिणामस्वरूप उनके खिलाफ विभागीय कारवाई के साथ एफआईआर हुई और उन्हें निलंबित कर दिया गया। उनका मुख्यालय बीकानेर किया गया था। कानूनी लड़ाई जीतकर अप्रैल माह में वे बहाल हो गईं, जुलाई में उन्हें पोस्टिंग भी मिली लेकिन मार्च 2024 से वेतन न मिलने के कारण हेमलता बैरवा और उनके परिवार को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें जनवरी 2025 तक वेतन नहीं दिया गया.

इसी तरह डूंगरपुर की आदिवासी शिक्षिका मेनका डामोर को शिक्षा विभाग द्वारा 18 जुलाई 2024 को बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम में आयोजित एक रैली के दौरान सिंदूर (sindoor) और मंगलसूत्र (mangalsutra) पर की गई टिप्पणियों के लिए निलंबित किया गया था।

मेनका डामोर, डूंगरपुर के सादडिया के सरकारी स्कूल में एक सेकंड-ग्रेड शिक्षिका के रूप में कार्यरत थीं, उन्हें 24 जुलाई 2024 को बिना किसी नोटिस निलंबित कर दिया गया था। उनपर सेवा नियमों के विपरीत आचरण का आरोप लगाया गया था.

मेनका ने मानगढ़ धाम में भील प्रदेश सांस्कृतिक महारैली के दौरान हिंदू परंपराओं पर अपने विचार साझा किए थे। डामोर ने सिंदूर-मंगलसूत्र पहनने के बारे में अपनी राय व्यक्त की और आदिवासी समुदायों में शिक्षा के महत्व पर जोर दिया।

शिक्षा विभाग की कारवाई को मेनका ने राजस्थान हाई कोर्ट, जोधपुर में चुनौती दी जिसपर कोर्ट ने डामोर के निलंबन पर रोक लगा दी। जस्टिस फरज़ंद अली ने 2 अगस्त 2024 को आदेश पारित किया, जिसमें उन्होंने याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें सुनने के बाद कहा कि निलंबन की कार्रवाई "मनमाना और अनियमिततापूर्ण" प्रतीत होती है और इसे उचित मानक प्रक्रियाओं के अनुरूप नहीं पाया।

हेमलता और मेनका के बाद अब सुनीता कुमारी का निलंबन इस धारणा को और मजबूत कर रहा है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या राजस्थान में अपने कर्तव्यपालन और सत्यनिष्ठा को धर्म और जाति के प्रतीक चिन्हों के उपर रखने वाली अजा और जजा वर्ग की महिला अध्यापिकाएं जातिवादी मानसिकता और संकीर्ण सोच वालों के लिए सच में सॉफ्ट टारगेट हो गई हैं?

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