लखनऊ: बृहस्पतिवार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) के सीनेट परिसर स्थित नॉर्थ हॉल में कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव की अध्यक्षा में हुई कार्य परिषद की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि इविवि की छवि बिगाड़ने में अगर विश्वविद्यालय के किसी शिक्षक या कर्मचारी की संलिप्तता पाई जाती है तो उन्हें सेवानिवृत्ति पर ग्रेच्युटी का लाभ नहीं दिया जाएगा।
सिर्फ यही नहीं, कार्य परिषद ने यह भी मंजूरी दी कि यदि कोई कर्मचारी भ्रष्टाचार, यौन उत्पीड़न, ड्यूटी पर उपस्थित न होने या विश्वविद्यालय की छवि के लिए हानिकारक किसी अन्य कार्य में लिप्त पाया जाता है तो विश्वविद्यालय के नियम संहिता के अनुसार उस कर्मचारी को सेवानिवृत्ति पर ग्रेच्युटी का लाभ नहीं दिया जाएगा।
साथ ही विश्वविद्यालय के कर्मचारी कुलपति की ओर से अनुमोदन के बाद ही सोशल मीडिया पर विश्वविद्यालय के बारे में लिख सकेंगे। निर्णय लिया गया कि इस संबंध में देवी-देवताओं के खिलाफ अपमानजनक बयान देने के मामले में मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विक्रम हरिजन को चेतावनी जारी की जाएगी।
इसके साथ ही सोशल मीडिया गाइडलाइन संबंधी रजिस्ट्रार की ओर से दिसंबर 2020 को सभी संकाय और कर्मचारियों के लिए जारी आदेश को पुनः जारी करने को मंजूरी दी गई। कुलसचिव की ओर से शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को आदेश जारी किया जाएगा कि बिना कुलपति की अनुमति के कोई भी इनपुट प्रेस को न भेजा जाए। सभी प्रकार की जानकारी विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी कार्यालय के माध्यम से ही प्रेषित की जाएंगी।
विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विक्रम हरिजन ने द मूकनायक को बताया कि, "अभी तक मुझे कोई लिखित निर्देश नहीं मिला है. अगर देंगे तो मैं हाईकोर्ट जाऊंगा. मीडिया रिपोर्ट के माध्यम से मुझे सूचना मिली है कि वह (विश्विद्यालय प्रशासन) कह रहें हैं कि मैं हिन्दू देवी-देवताओं के खिलाफ सोशल मीडिया पर टिप्पणी करता हूँ. लेकिन मैं किसी देवी देवता का अपमान नहीं कर रहा हूँ. मैं सिर्फ यही कहता हूँ कि आप गाय को अपनी माता बनाईये, लेकिन मैं तो सावित्री बाई फुले को अपनी माता बनाऊंगा."
उन्होंने आगे कहा कि, "एक प्रोफेसर होने के नाते साइंटिफिक टेम्प्रामेंट को बढ़ावा देना मेरा दायित्व है. मैं वही काम कर रहा हूँ. अगर धर्म में समस्या है तो उसकी बात क्यों नहीं किया जाए...? धर्म अगर हमारी महिलाओं को देवदासी बनाता है तो मैं क्यों न उस मुद्दे को उठाऊं? अगर धर्म हमारे संविधान और कानून को नहीं मानता है तो उस पर सवाल उठाना हमारा हक है. यह बात नहीं चलेगी कि हम धर्म और आस्था के नाम पर सवाल न उठायें."
"आपने जाति के आधार पर ब्राह्मण को कह दिया ये करो, क्षत्रिय को कह दिया वह करो.. और सफाई की जिम्मेदारी आपने दलितों पर थोप दिया. आपने जानबूझकर कहा कि हम गन्दा काम करें. यह धर्मों ने कहा न..? हमें तो संविधान ने ऐसा नहीं कहा. तो अगर धर्म गलत कर रहा है तो हम उसे सपोर्ट कैसे करें? यह नहीं हो सकता कि अगर धर्म देवदासी प्रथा को बढ़ावा दे रहा है, सती प्रथा को बढ़ावा दे रहा है, जाति को बढ़ावा दे रहा है, अन्धविश्वास को बढ़ावा दे रहा है तो हम धर्म के नाम पर उसको छोड़ देंगे", प्रोफेसर विक्रम ने कहा.