भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के पहले दलित मुख्य न्यायाधीश (चीफ जस्टिस) सुरेश कुमार कैत 24 मई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। मंगलवार को जब हाईकोर्ट परिसर में उनके सम्मान में विदाई समारोह आयोजित किया गया, तो जस्टिस कैत अपने जीवन संघर्षों को याद कर भावुक हो उठे। उन्होंने कहा कि मजदूर पिता के बेटे होने के नाते उन्होंने खुद मजदूरी कर मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की।
"मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं जज बनूंगा," — समारोह में यह बात कहते हुए उन्होंने भावुक स्वर में कहा कि उन्होंने जिन परिस्थितियों में पढ़ाई की, वहां स्कूल के लिए कमरे भी नहीं थे। "पेड़ों के नीचे कक्षा लगती थी," उन्होंने कहा।
संविधान निर्माता को दी श्रद्धांजलि
जस्टिस कैत ने अपने करियर के महत्वपूर्ण क्षणों को याद करते हुए बताया कि जब वे पहली बार 2008 में दिल्ली हाईकोर्ट के जज बने, उसी दिन पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के बेटे बदर दुरेज अहमद ने भी शपथ ली थी। उस ऐतिहासिक दिन सभी ने डॉक्टर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि दी थी — जिन्होंने भारत के मजदूर वर्ग और वंचित समुदाय को समान अवसर दिलाने के लिए संविधान बनाया।
मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में 53 जजों की स्वीकृत संख्या है, लेकिन इस समय केवल 33 जज कार्यरत हैं। इससे न केवल न्याय की प्रक्रिया धीमी होती है, बल्कि जजों पर भी भारी काम का दबाव आता है। "मैंने 27 सितंबर से अब तक 3810 मामलों की सुनवाई की है,"
गरीब छात्रों को सिविल जज बनने में मदद
अपने कार्यकाल के दौरान कैत ने सिविल जज की भर्ती में 70% अंकों की अनिवार्यता को समाप्त किया। उन्होंने कहा, "ज्यादातर सरकारी विश्वविद्यालयों से पढ़ने वाले गरीब छात्र 70% अंक नहीं ला पाते, जबकि निजी विश्वविद्यालयों के छात्र ला लेते हैं। इस नियम के कारण गरीब छात्र सिविल जज की परीक्षा से बाहर हो जाते थे।"
भोपाल गैस त्रासदी के कचरे को नष्ट करने की पहल
चीफ जस्टिस कैत ने भोपाल गैस कांड के खतरनाक रासायनिक कचरे को नष्ट करने की प्रक्रिया की मॉनिटरिंग भी की। उन्होंने यूनियन कार्बाइड के कचरे को नष्ट करने की पहल की, हालांकि इसके विरोध में कई याचिकाएं दाखिल हुईं, लेकिन कैत ने वैज्ञानिक प्रक्रिया और सरकारी अनुमति के साथ कचरे को जलाने की कार्रवाई को आगे बढ़ाया।
दिव्यांगों और पीड़ितों के लिए रहे संवेदनशील
कैत ने न्यायपालिका में संवेदनशीलता की मिसाल पेश की। उन्होंने एक मामले में दिव्यांग व्यक्ति को कोर्ट में बार-बार आवेदन लेकर भटकते देखा तो बिना सुनवाई के ही उसका तबादला आदेशित कर दिया। दिव्यांग बच्चों को हवाई यात्रा की अनुमति का मामला भी उनके समक्ष आया, जिसे उन्होंने तत्काल सुलझाया।
थानों में मंदिर निर्माण पर लगाई रोक
एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान उन्होंने सरकार से सवाल किया कि आखिर थानों के अंदर मंदिर क्यों बनाए जा रहे हैं और किसकी अनुमति से। उन्होंने स्पष्ट आदेश देते हुए कहा कि नए थानों में मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी जाए। उनका यह फैसला धर्मनिरपेक्षता की संवैधानिक भावना को मजबूत करता है।
मुख्य न्यायधीश कैत का सफर
मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत का जन्म हरियाणा में एक मजदूर परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद दिल्ली की सेंट्रल यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। वकालत के क्षेत्र में उन्होंने दिल्ली में अभ्यास किया और इस दौरान वे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के जूनियर भी रहे। उनकी न्यायिक सेवा की शुरुआत वर्ष 2008 में हुई, जब उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इसके बाद वर्ष 2023 में उन्हें मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। न्यायपालिका में उनके योगदान के बाद वे 24 मई 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।