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MP: भोपाल कमिश्नर दफ्तर में आत्मदाह की कोशिश, विदिशा के दलित बुजुर्ग ने जमीन विवाद से तंग आकर उठाया कदम

भोपाल। राजधानी के कोहेफिजा स्थित संभागायुक्त कार्यालय में गुरुवार को उस समय अफरा-तफरी मच गई, जब विदिशा जिले के गंजबासौदा तहसील के बेहलोट गांव निवासी 65 वर्षीय दलित बुजुर्ग राम सिंह अहिरवार ने वेटिंग रूम में खुद पर पेट्रोल डालकर आग लगाने की कोशिश की। अचानक उठती लपटों और धुएं के बीच दफ्तर में मौजूद कर्मचारी और आम नागरिक जान बचाकर भागे। मौके पर तैनात नगर सैनिकों ने तत्काल सूझबूझ दिखाते हुए उन्हें वेटिंग रूम से बाहर निकाला और स्थिति पर काबू पाया।

क्या है मामला?

राम सिंह अहिरवार ने अधिकारियों को बताया कि उनकी मां शक्करिया के नाम से सियारी गांव में 0.897 हेक्टेयर जमीन पट्टे पर आवंटित की गई थी। वर्ष 1999 में प्रशासन ने यह पट्टा निरस्त कर दिया और 2001 में उसी जमीन को शासकीय रास्ता मद में दर्ज कर दिया। इसके बाद से ही राम सिंह लगातार अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं।

बुजुर्ग का कहना है कि उन्होंने गंजबासौदा एसडीएम कार्यालय में कई बार आवेदन दिए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। न्याय की उम्मीद में उन्होंने अब तक 12 बार सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत दर्ज कराई, लेकिन हर बार मामले को “निराकृत” बताकर बंद कर दिया गया।

हंगामे के बाद कमिश्नर संजीव सिंह ने तुरंत राम सिंह को पुलिस के हवाले कर दिया। हालांकि देर रात तक उनके खिलाफ कोई अपराध दर्ज नहीं हुआ था। इसके बाद कमिश्नर ने शाम को उन्हें दोबारा कार्यालय बुलाकर उनकी पूरी समस्या सुनी और कहा कि मामले की जांच कर समाधान की कोशिश की जाएगी।

प्रशासन की कार्यप्रणाली पर उठ रहे सवाल!

यह घटना सिर्फ एक बुजुर्ग की पीड़ा नहीं, बल्कि शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल भी खड़े करती है। वर्षों तक न्याय के लिए दर-दर भटकने और शिकायतें करने के बाद भी जब कोई समाधान नहीं हुआ तो आखिरकार उन्हें आत्मदाह जैसा चरम कदम उठाना पड़ा।

ग्रामीणों में आक्रोश

घटना के बाद गंजबासौदा क्षेत्र के ग्रामीणों और समाज के लोगों में आक्रोश देखा जा रहा है। उनका कहना है कि यदि प्रशासन समय पर जमीन विवाद का समाधान कर देता तो राम सिंह को ऐसा कदम उठाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। लोगों ने मांग की है कि पीड़ित की जमीन वापस दिलाई जाए और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।

पहले भी सामने आए मामले

भोपाल कलेक्ट्रेट में इससे पहले भी एक सनसनीखेज़ मामला सामने आया था, जब राजधानी के ही एक युवक ने अपनी समस्या की सुनवाई न होने से आहत होकर कलेक्ट्रेट परिसर में ज़हर पी लिया था। अचानक हुई इस घटना से अफरा-तफरी मच गई थी और मौके पर मौजूद कर्मचारियों ने उसे तत्काल अस्पताल पहुँचाया था। यह घटना भी इस ओर इशारा करती है कि लोग अपनी पीड़ा और शिकायतों को लेकर इतने हताश हो जाते हैं कि प्रशासन का ध्यान खींचने के लिए ज़हर खाने जैसे चरम कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं।

इसके पहले भी भोपाल कलेक्ट्रेट में युवक द्वारा ज्ञापन को कागज़ में बांधकर दंडवत करते हुए पहुँचने का मामला सामने आया था। इससे पहले भी कई बार प्रदेश में लोग अपनी समस्याओं को प्रशासन तक पहुँचाने के लिए अनोखे और प्रतीकात्मक तरीक़े अपनाते रहे हैं। कभी घुटनों के बल चलकर, तो कभी नंगे पैर या दंडवत करते हुए नागरिकों ने ज्ञापन सौंपे हैं। इन तरीकों के पीछे उद्देश्य यही रहता है कि प्रशासन उनकी समस्याओं को गंभीरता से सुने और जल्द समाधान करे।

मध्यप्रदेश के अलग-अलग जिलों में पहले भी किसानों, बेरोजगार युवाओं और हाशिए पर खड़े वर्गों के लोगों ने इसी तरह पत्र या प्रार्थना-पत्र को कागज़ में बांधकर अधिकारियों तक पहुँचाया है। यह परंपरा विरोध और व्यथा प्रकट करने का एक अहिंसक साधन बन चुकी है। जब सामान्य तरीकों से सुनवाई नहीं होती, तो लोग दंडवत जैसे चरम प्रतीकात्मक तरीक़े अपनाकर अपनी आवाज़ उठाते हैं, ताकि उनकी समस्याओं की गूंज शासन-प्रशासन तक पहुँचे।

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