बेंगलुरु - भारत के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में जातिगत भेदभाव के आरोपों का सिलसिला जारी है। हाल ही में इंफोसिस के सह-संस्थापक सेनापथी क्रिस गोपालकृष्णन और भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के 17 प्रोफेसरों के खिलाफ SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत FIR दर्ज की गई है।
यह मामला भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) बेंगलुरु के निदेशक डॉ. ऋषिकेश टी. कृष्णन और सात वरिष्ठ प्रोफेसरों के खिलाफ जातिगत भेदभाव के आरोप में दर्ज FIR के बाद सामने आया है, जिसे पिछले साल दायर किया गया था।
ताजा मामला 27 जनवरी को डॉ. डी. सन्ना दुर्गप्पा द्वारा दायर किया गया, जो IISc के सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी सेंटर (Centre for Sustainable Technologies) के पूर्व प्रोफेसर हैं और बोवी समुदाय (अनुसूचित जाति) से संबंधित हैं। डॉ. दुर्गप्पा का आरोप है कि 2014 में उन्हें फर्जी हनी-ट्रैप केस में फंसाकर नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया और जातिगत गालियां व धमकियां दी गईं।
शिकायतकर्ता डॉ. दुर्गप्पा द्वारा 71वें सिटी सिविल और सेशन्स कोर्ट में दर्ज मुकदमें के बाद कोर्ट ने सदाशिवनगर पुलिस को FIR दर्ज करने और मामले की जांच करने के आदेश दिए। आरोपियों में IISc के प्रमुख प्रोफेसर गोविंदन रंगराजन, श्रीधर वॉरियर, संध्या विश्वस्वरैया और दासप्पा सहित क्रिस गोपालकृष्णन का नाम भी शामिल है, जो IISc बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज के सदस्य हैं।
डॉ. दुर्गप्पा की शिकायत के अनुसार, आरोपियों ने उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने और फर्जी हनी-ट्रैप केस का सहारा लेकर उनकी नौकरी समाप्त करने की साजिश रची। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जातिगत गालियों और धमकियों के कारण उनके लिए कार्यस्थल का वातावरण असहनीय हो गया।
Dr.Babasaheb Ambedkar National Association of Engineers (BANAE) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नागसेन सोनारे ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा: हम इंफोसिस के सह-संस्थापक और 17 अन्य प्रोफेसरों द्वारा जातिवाद, भेदभाव और एक अनुसूचित जाति के प्रोफेसर के खिलाफ आपराधिक साजिश की कड़ी निंदा करते हैं। प्रो. डी. सन्ना दुर्गप्पा को दस साल पहले एक फर्जी हनी ट्रैप केस में फंसाकर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। हम उनकी इस हिम्मत को सलाम करते हैं कि उन्होंने IISc प्रबंधन और इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन के खिलाफ खड़े होकर लड़ाई लड़ी। सेशन्स कोर्ट के आदेश पर सभी आरोपियों के खिलाफ अत्याचार अधिनियम के तहत FIR दर्ज की गई है। इन्हें तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
इस मामले को संज्ञान में लेते हुए, हम IIM बैंगलोर के प्रोफेसर प्रो. गोपाल दास को सलाम करते हैं, जिन्होंने जातिवादी ब्राह्मण वर्चस्ववादी प्रोफेसर और IIM बैंगलोर के निदेशक डॉ. ऋषिकेश टी कृष्णन और सात अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ अत्याचार अधिनियम के तहत FIR दर्ज कराई। प्रो. गोपाल दास के इस केस का हवाला सेशन्स कोर्ट में इंफोसिस के सह-संस्थापक और 17 अन्य प्रोफेसरों के खिलाफ सुनवाई में दिया गया। BANAE न्याय के लिए प्रो. गोपाल दास की लड़ाई का समर्थन कर रहा है और आगे भी उन सभी मामलों में समर्थन करेगा जहां हमारे लोगों को जातिगत अत्याचार और भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
डॉ. दुर्गप्पा के इस कानूनी संघर्ष ने IIM बेंगलुरु के सहायक प्रोफेसर डॉ. गोपाल दास के मामले की ओर ध्यान खींचा है। डॉ. दास के मामले में, SC/ST एक्ट के तहत बेंगलुरु पुलिस द्वारा गत वर्ष 20 दिसंबर को दर्ज की गई एफआईआर No. 0467/2024 में आईआईएम बैंगलोर के निदेशक डॉ. ऋषिकेश टी. कृष्णन और 7 प्रोफेसर जिनमे डॉ. दिनेश कुमार, डॉ. सैनेश जी, डॉ. श्रीनिवास प्रख्या, डॉ. चेतन सुब्रमण्यम, डॉ. आशीष मिश्रा, डॉ. श्रीलता जोनालागेडा और डॉ. राहुल डे सहित आठ आरोपियों के नाम हैं।
इन व्यक्तियों पर जाति-आधारित अत्याचार और प्रणालीगत भेदभाव के लिए एससी-एसटी अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए हैं।
सिविल राइट्स एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट ( Directorate of Civil Rights Enforcement (DCRE) द्वारा की गई एक विस्तृत जांच में आरोपियों के खिलाफ जाति आधारित भेदभाव और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करने के आरोपों की पुष्टि हुई थी। वर्तमान में मामले में हाईकोर्ट का स्टे प्रभावी होने से एफआईआर में जांच आगे नहीं बढ़ सकी है।