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संविधान को कहते हैं 'भीम स्मृति', तीस्ता सेटलवाड के लिए आधी रात को खुलवाए थे सुप्रीम कोर्ट के द्वार: जस्टिस BR Gavai के CJI बनने को लेकर बहुजन समुदाय क्यों हैं हर्षित

नई दिल्ली- 13 मई, 2025 को भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना सेवानिवृत्त हो रहे हैं, और उनके स्थान पर 14 मई को जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे।

जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट के दूसरे दलित और पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश होंगे, जो अपने अंबेडकरवादी विचारधारा और मानवीय दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं।

उनके पिता, आर.एस. गवई, एक प्रमुख अंबेडकरवादी नेता और पूर्व राज्यपाल थे, जिनके आदर्शों को जस्टिस गवई ने न केवल अपनाया, बल्कि अपने न्यायिक फैसलों और कार्यों के माध्यम से उन्हें जीवंत किया।

24 नवंबर, 1960 को अमरावती, महाराष्ट्र में जन्मे जस्टिस गवई का परिवार डॉ. बी.आर. अंबेडकर के विचारों से गहरे तक जुड़ा रहा। उनके पिता ने न केवल अंबेडकर के आदर्शों को अपनाया, बल्कि उन्हें सामाजिक बदलाव का आधार बनाया। उनके पिता ने 1956 में बाबा साहब के बौद्ध धर्मान्तरण आन्दोलन के दौरान हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया था। जस्टिस गवई ने अपने पिता के आह्वान पर न्यायिक सेवा को चुना, ताकि वे अंबेडकर के सपनों को साकार कर सकें।

नागपुर विश्वविद्यालय से बीए, एलएलबी की पढ़ाई पूरी करने के बाद जस्टिस गवई ने 16 मार्च, 1985 को वकालत शुरू की। उन्होंने महाराष्ट्र के पूर्व एडवोकेट जनरल और बॉम्बे हाई कोर्ट के जज राजा एस. भोंसले के साथ अपने करियर की शुरुआत की। 1987 से 1990 तक उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस की और फिर नागपुर बेंच में संवैधानिक और प्रशासनिक कानून के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई। 14 नवंबर, 2003 को वे बॉम्बे हाई कोर्ट के अतिरिक्त जज बने और 12 नवंबर, 2005 को स्थायी जज। 24 मई, 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया।

मैं भी संविधान को कहता हूँ ' भीम स्मृति': गवई

इस वर्ष अप्रेल में डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर (डीएआईसी) द्वारा आयोजित डॉ. बीआर अंबेडकर स्मारक व्याख्यान में बोलते हुए न्यायमूर्ति गवई ने अपने जीवन का मार्ग तय करने का श्रेय अंबेडकर को दिया था। उन्होंने कहा, “मैं यहां केवल डॉ. बी.आर. अंबेडकर और भारत के संविधान की वजह से हूं।” वे मानते हैं कि बाबा साहब अंबेडकर द्वारा तैयार संविधान की बदौलत भारत ने महत्वपूर्ण सामाजिक प्रगति की है। संविधान समय की कसौटी पर खरा उतरा है और देश को मजबूत, स्थिर और एकजुट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस अवसर पर उन्होंने संविधान सभा के सदस्य के.एम. जेधे के भाषण को भी उद्धृत किया, जिन्होंने बताया था कि अनुसूचित जातियों के नेता के रूप में अंबेडकर की स्थिति के कारण, संविधान को कभी-कभी "भीम स्मृति" के रूप में संदर्भित किया जाता था।

"जेधे ने कहा कि कुछ सदस्यों ने डॉ. अंबेडकर को बधाई देते हुए उन्हें मनु कहा और डॉ. अंबेडकर को मनु से बहुत नफरत थी। उन्होंने कहा, 'वे उन्हें भीम कहते हैं और जनता को बताते हैं कि उन्होंने भीम स्मृति को गढ़ा है। मैं भी इसे भीम स्मृति कहता हूं, हालांकि मैं शूद्र वर्ग से हूं,'" गवई ने उद्धृत किया।

जुलाई 2023 को तीस्ता सेटलवाड के लिए दौड़ पड़े जस्टिस गवई

जुलाई 2023 की एक शनिवार की रात, जब अधिकांश लोग अपने सप्ताहांत का आनंद ले रहे थे, जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई एक सांस्कृतिक कार्यक्रम से सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। मकसद? सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सेटलवाड को तत्काल गिरफ्तारी से बचाना। 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े एक मामले में तीस्ता पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ का आरोप था। जस्टिस गवई की अगुवाई वाली बेंच ने देर रात सुनवाई की और सवाल उठाया कि एक सामान्य अपराधी को भी अंतरिम राहत का अधिकार है, तो तीस्ता को क्यों नहीं? इस घटना ने जस्टिस गवई की मानवीय संवेदना और कानून के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को उजागर किया।

जस्टिस गवई न केवल एक कठोर और निष्पक्ष न्यायाधीश हैं, बल्कि एक ऐसे इंसान भी हैं जो सामाजिक न्याय और मानवीय मूल्यों को गहराई से समझते हैं। मणिपुर में लंबे समय से चले आ रहे जातीय संघर्ष के पीड़ितों से मिलने के लिए वे स्वयं राहत शिविरों में गए। वहां उन्होंने पीड़ितों से बात की और उनकी तकलीफों को सुना, जिससे उनकी संवेदनशीलता और जमीनी स्तर पर जुड़ाव का पता चलता है।

नोटबंदी से लेकर कोटे में कोटा तक वो निर्णय जो रहे चर्चा में

जस्टिस गवई ने अपने करियर में कई ऐतिहासिक फैसलों में हिस्सा लिया। उन्होंने नोटबंदी, अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण, इलेक्टोरल बॉन्ड योजना और अनुसूचित जाति/जनजाति में उप-वर्गीकरण जैसे मामलों में संवैधानिक बेंच के फैसलों में योगदान दिया। खास तौर पर, उन्होंने अनुसूचित जाति/जनजाति में ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा को लागू करने की वकालत की, ताकि वास्तविक समानता हासिल हो सके। इसके अलावा, उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मानहानि मामले में राहत दी और वकील प्रशांत भूषण को अवमानना मामले में एक रुपये का जुर्माना लगाया। उनके फैसले सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता उन्हें “बुद्धिमत्ता और मासूमियत का अनूठा संगम” बताते हैं, जो मानवीय समस्याओं को गहराई से समझते हैं।

जस्टिस गवई का कोर्टरूम में एक अलग ही रुतबा है। वे धैर्यपूर्वक वकीलों की दलीलें सुनते हैं, लेकिन गलत होने पर अपनी बात बेबाकी से रखते हैं। वरिष्ठ वकीलों के अनुचित व्यवहार पर उनकी टिप्पणी, जैसे “फिर आप आदेश पारित करें,” कोर्ट में अनुशासन बहाल कर देती है। वे जूनियर वकीलों को प्रोत्साहित करते हैं और कमजोर वर्गों के हक की रक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ते। जस्टिस गवई खाने के शौकीन हैं और मराठी भोजन का लुत्फ उठाने अक्सर दिल्ली में महाराष्ट्र सदन जाते हैं। उनकी हास्यप्रियता उन्हें सहकर्मियों के बीच लोकप्रिय बनाती है।

जस्टिस गवई का मानना है कि न्यायपालिका में विश्वास ही लोकतंत्र की नींव है। वे चाहते हैं कि न्याय हर उस जरूरतमंद तक पहुंचे, जो सामाजिक-आर्थिक पिरामिड के सबसे निचले पायदान पर है। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन के अध्यक्ष विपिन नायर कहते हैं, “जस्टिस गवई के नेतृत्व में भारतीय संविधान के मूल्य न केवल सुरक्षित रहेंगे, बल्कि नई ऊंचाइयों को छूएंगे।” गवई के CJI बनने को लेकर बहुजन समुदाय हर्षित है क्योंकि सभी को विशवास है कि उनके छह महीने के कार्यकाल (23 नवंबर, 2025 तक) में भारतीय न्यायपालिका निश्चित रूप से नई मिसालें कायम करेगी।

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