नई दिल्ली- दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित लेडी श्री राम (LSR) कॉलेज में हाल ही में एक अतिथि व्याख्यान ने हंगामा मचा दिया है। सेवानिवृत्त राजनयिक और पूर्व राजदूत दीपक वोहरा के भाषण में की गई टिप्पणियां इतनी विवादास्पद साबित हुईं कि छात्राओं, पूर्व छात्राओं और छात्र संघ ने इसे न केवल मिसोगिनिस्टिक (महिला-विरोधी) बल्कि इस्लामोफोबिक (इस्लाम-विरोधी), क्यूअरफोबिक (समलैंगिक-विरोधी) और जातिवादी करार दिया।
उन्होंने खुद को "मोदी का चमचा, महा चमचा" कहा, जो राजनीतिक चमचागिरी (साइकोफैंसी) को दर्शाता है और कई छात्राओं को असहज लगा। इस घटना ने कैंपस की सुरक्षा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अतिथि वक्ताओं के चयन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
हालाँकि छात्र-छात्राओं के बढ़ते विरोध और वोहरा से सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने की मांगों को देखते हुए पूर्व आईएफएस अधिकारी ने प्रिंसिपल को भेजे एक सन्देश में अपने वक्तव्य के लिए खेद व्यक्त किया। LSR कैंपस में विरोध जारी था लेकिन सूत्रों के मुताबिक मामले को दबाने के प्रयास किये गए जिसमे स्टूडेंट्स के बीच ये मेसेज भेजा गया कि इस विवाद के कारण कॉलेज की प्रतिष्ठा खराब हो रही है और कैंपस प्लेसमेंट्स में लाखों का पैकेज ऑफर करने वाली कम्पनियां भी नहीं आएँगी जिसके बाद छात्राएं बेकफुट पर आ गई हैं।
घटना का पृष्ठभूमि: क्या था वह व्याख्यान?
यह घटना 11 सितंबर को LSR कॉलेज के बीए प्रोग्राम विभाग द्वारा आयोजित एक सेमिनार में हुई। व्याख्यान का शीर्षक था "Unstoppable India 2047" , जो भारत की वैश्विक भूमिका, राष्ट्रीय विकास, नीति और कूटनीति पर केंद्रित था। इस कार्यक्रम में 700 से अधिक छात्राएं मौजूद थीं, और दीपक वोहरा को अतिथि वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था। वोहरा आर्मेनिया, पोलैंड और सूडान में भारत के पूर्व राजदूत रह चुके हैं और उन्हें अफ्रीका में विशेष सलाहकार के रूप में भी जाना जाता है। कार्यक्रम का उद्देश्य छात्राओं को भारत की प्रगति और भविष्य की चुनौतियों पर प्रेरित करना था, लेकिन यह जल्द ही विवाद का केंद्र बन गया।
व्याख्यान के दौरान वोहरा ने महाभारत और रामायण का जिक्र किया, बॉलीवुड गानों का सहारा लिया और कई जोक्स सुनाए। उन्होंने भारत की आजादी के पलों को 1947 से जोड़ते हुए सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति के उद्घाटन और राम मंदिर के अभिषेक को "भारत की आजादी" के रूप में पेश किया, जो कई लोगों को सांप्रदायिक लगा। लेकिन असली बवाल उनकी व्यक्तिगत टिप्पणियों से मचा।

दीपक वोहरा की आपत्तिजनक टिप्पणियां: क्या कहा गया?
दीपक वोहरा की टिप्पणियां न केवल हास्य के नाम पर की गईं, बल्कि वे गहरे पूर्वाग्रहों को उजागर करती नजर आईं।
मुस्लिम समुदाय पर व्यंग्य और पॉलीगैमी का मजाक: वोहरा ने कहा, "मैं अपना नाम बदलकर मोहम्मद दीपक रख लूंगा, इससे मुझे चार शादियां करने की अनुमति मिल जाएगी, ताकि मैं आपकी प्रिंसिपल से शादी कर सकूं क्योंकि वह खूबसूरत हैं और मैं जवान हूं।" यह टिप्पणी मुस्लिम समुदाय में बहुविवाह की प्रथा का मजाक उड़ाती हुई थी और इसे इस्लामोफोबिक माना गया। छात्राओं ने इसे महिलाओं के प्रति फ्लर्टेटियस और अपमानजनक बताया।
उन्होंने खुद को "मोदी का चमचा, महा चमचा" कहा, जो राजनीतिक साइकोफैंसी को दर्शाता है और कई छात्राओं को असहज लगा। व्याख्यान में उन्होंने छात्राओं से कहा कि वे अपनी भूमिका मुख्य रूप से मां और पत्नी के रूप में देखें। एक मौके पर, जब प्रिंसिपल कनिका अहुजा ने मजाक में कहा कि अगले जन्म में वे महिला बनकर LSR में पढ़ना चाहेंगी, तो वोहरा ने जवाब दिया कि वे पुरुष बनकर ही जन्म लेना पसंद करेंगे। इसे गहरी मिसोगिनी का प्रतीक माना गया।
उन्होंने रामायण और महाभारत के संदर्भों में जोक्स सुनाए, जो सांप्रदायिक लगे। साथ ही, क्यूअरफोबिक और जातिवादी टिप्पणियां भी की गईं, जैसे कि महिलाओं को घरेलू भूमिकाओं तक सीमित करने वाले बयान दिए। एक स्लाइड में राम मंदिर को "भारत की आजादी" से जोड़ा गया, जो कई लोगों को सांप्रदायिक प्रचार लगा।
ये टिप्पणियां व्याख्यान के दौरान हंसी और तालियों से स्वागत की गईं, लेकिन बाद में छात्राओं ने इन्हें "दिविसिव और ऑफेंसिव" करार दिया। रेडिट पोस्ट्स में इसे "खुले तौर पर मिसोगिनी" कहा गया।
'फिर से बुलाओगे ना? नहीं बुलाओगे तब भी आता रहूंगा'
एक वीडियो में दीपक वोहरा को नाचते और मजाक करते हुए देखा गया, जिसमें उन्होंने कहा, "फिर से बुलाओगे ना? नहीं बुलाओगे तब भी आता रहूंगा..."
यूट्यूब पर अपलोड किए गए एक रिकॉर्डेड हिस्से में उन्हें कहते सुना गया, "जब मैं प्रिंसिपल मैडम जैसी मैडम से मिलता हूं, मैं क्या कहता हूं?" इसके बाद उन्होंने लोकप्रिय गाना गाया, "बचना ऐ हसीनों, लो मैं आ गया।" उन्होंने यह भी मजाक किया, "यह मत सोचो कि मैं नरेंद्र मोदी का चमचा हूं, मैं महा चमचा हूं।"

छात्राओं और पूर्व छात्राओं की प्रतिक्रियाएं: क्यों मचा बवाल?
व्याख्यान के दौरान कई छात्राएं हंसती नजर आईं, लेकिन बाद में व्हाट्सऐप ग्रुप्स और सोशल मीडिया पर गुस्सा फूट पड़ा। एक द्वितीय वर्ष की अर्थशास्त्र छात्रा ने इसे "दुखद प्रयास" बताया और कहा कि यह उनकी बुद्धिमत्ता का अपमान है। गायत्री वीर नामक छात्रा ने एक मीडिया समूह से बातचीत के दौरान कॉलेज प्रशासन पर सवाल उठाया कि ऐसे विवादास्पद व्यक्ति को क्यों आमंत्रित किया गया, जबकि फेमिनिस्ट स्कॉलर निवेदिता मेनन को लॉन पर व्याख्यान देना पड़ा।
LSR छात्र संघ ने बयान जारी कर कहा, "यह सेशन भारत के भविष्य पर रिफ्लेक्शन के लिए था, लेकिन इसमें विभाजनकारी और अपमानजनक टिप्पणियां की गईं।" उन्होंने सार्वजनिक माफी की मांग की और कहा कि कोई भी समुदाय कैंपस पर भेदभाव महसूस नहीं करना चाहिए। पूर्व छात्राओं के एसोसिएशन ELSA ने 300 से अधिक हस्ताक्षरों वाली याचिका जारी की, जिसमें प्रशासन से जवाबदेही मांगी गई। पूर्व छात्रा गायत्री श्रीवास्तव (1996 बैच) ने कहा कि डॉ. मीनाक्षी गोपीनाथ के समय में ऐसा असंभव था। रेडिट पर पोस्ट्स में LSR की गिरावट और दर्शकों की मिलीभगत पर चर्चा हुई। इस घटना ने कैंपस को हेट स्पीच का मंच बनाने पर चिंता जताई।
बीए प्रोग्राम विभाग ने आधिकारिक बयान जारी कर खुद को वोहरा की टिप्पणियों से अलग किया। उन्होंने कहा, "ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं और विभाग की स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करते। हम दुख पहुंचाने के लिए माफी मांगते हैं और भविष्य में बेहतर वेटिंग मैकेनिज्म लागू करेंगे।" प्रिंसिपल कनिका अहुजा ने व्याख्यान के दौरान तालियां बजाईं और डांस किया, लेकिन बाद में कोई टिप्पणी नहीं की। छात्राओं ने अतिथि चयन में पृष्ठभूमि जांच की कमी पर सवाल उठाया।
दीपक वोहरा की माफी: क्या थी प्रतिक्रिया?
वोहरा ने मीडिया से कहा कि उन्हें प्रतिक्रिया का कोई अंदाजा नहीं था। लेकिन दबाव बढ़ने पर उन्होंने प्रिंसिपल कनिका अहुजा को संदेश भेजा: "प्रिय प्रिंसिपल अहुजा, मैं अपने इंटरैक्शन के दौरान छात्राओं और स्टाफ को परेशान करने वाली किसी भी टिप्पणी के लिए सचमुच माफी मांगता हूं – ईमानदार बिना शर्त माफी। सुरक्षित रहें, आशीर्वादित रहें। वंदे मातरम!" उन्होने ट्रिब्यून से माफीनामे की पुष्टि भी की।
हालांकि, पूर्व छात्रा आन्या विज ने कहा कि अगर वोहरा सचमुच पछतावा महसूस करते हैं, तो सार्वजनिक बयान जारी करें। कई लोगों ने इसे अपर्याप्त माना। यह घटना कैंपस को सुरक्षित स्थान बनाने की जिम्मेदारी पर सवाल उठाती है। असहमति के लिए सुरक्षित समझे जाने वाले कैंपस अब हेट और असहिष्णुता को वैधता दे रहे हैं। नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक छात्रा ने कहा," यह महिलाओं के कॉलेज में मिसोगिनी और सांप्रदायिक जहर फैलाने का उदाहरण है, जो भविष्य की हिंसा का आधार तैयार कर सकता है। LSR जैसे संस्थान, जो हजारों महिलाओं के मूल्यों पर खड़े हैं, को ऐसे कार्यक्रमों से बचाना जरूरी है।"