+

मानगढ़ धाम का पाठ हटाने पर गहलोत का भाजपा सरकार पर तीखा हमला, कहा - 'आदिवासी इतिहास मिटाने की साजिश'

जयपुर: राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य की भाजपा सरकार पर अकादमिक पाठ्यक्रम से आदिवासी समुदायों की गौरवशाली विरासत और योगदान को "मिटाने" का गंभीर आरोप लगाते हुए कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह भाजपा की आदिवासी पहचान और इतिहास के प्रति उपेक्षा को दर्शाता है।

मामला कक्षा 4 की पाठ्यपुस्तक से 'मानगढ़ धाम' पर आधारित अध्याय को हटाने से जुड़ा है। गुरुवार को एक बयान जारी करते हुए गहलोत ने इस कदम को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और "शर्मनाक" बताया। उन्होंने कहा, "आदिवासी प्रतिरोध के पवित्र स्थल मानगढ़ धाम पर अध्याय को हटाना सिर्फ एक अकादमिक भूल नहीं है, बल्कि यह जानबूझकर इतिहास को मिटाने की कार्रवाई है।"

गहलोत ने इस मुद्दे को अपने 'X' हैंडल पर भी उठाया और लिखा, "जब से भाजपा सरकार में आई है तब से आदिवासियों के योगदान को हर जगह कमतर दिखाने का प्रयास करती रही है। आदिवासी अस्मिता को लेकर भाजपा की तुच्छ मानसिकता का यह परिचायक है कि चौथी कक्षा की किताब से मानगढ़ धाम के इतिहास को हटाने का काम किया है।"

पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी याद दिलाया कि यह इस तरह की कोई पहली घटना नहीं है। उन्होंने कहा, "इससे पहले, शिक्षा की अलख जगाने वाली वीर कालीबाई का पाठ हटा दिया गया था। भाजपा ने ठान लिया है कि वो आदिवासियों का बलिदान, उनकी गाथाएं लोगों की स्मृतियों से हटा कर ही मानेगी।"

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये घटनाएं अलग-थलग नहीं हैं, बल्कि ये आदिवासी समुदायों के बलिदान, वीरता और विरासत को लोगों की स्मृति से मिटाने के एक बड़े और सुनियोजित प्रयास का हिस्सा हैं। गहलोत ने दृढ़ता से कहा, "लेकिन आदिवासी समाज का बलिदान इतना कमजोर नहीं है कि उसे किताबों से हटा कर भुलाया जा सके।"

अशोक गहलोत ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक प्रगति में आदिवासी समुदायों का योगदान बहुत गहरा और अमिट है। उन्होंने कहा, "उनके बलिदान इस राष्ट्र की आत्मा का हिस्सा हैं। किसी भी राजनीतिक दल या सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वह अपनी राजनीतिक सुविधा के लिए उस विरासत के साथ छेड़छाड़ करे।"

अंत में, उन्होंने भाजपा से इस "अस्वीकार्य कृत्य" के लिए आदिवासी समुदायों से माफी मांगने की मांग की। गहलोत ने सरकार से आग्रह किया कि मानगढ़ धाम, कालीबाई और अन्य आदिवासी प्रतीकों की कहानियों को स्कूली पाठ्यक्रम में तुरंत बहाल किया जाए।

Trending :
facebook twitter