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दलित-आदिवासी साधुओं के महामंडलेश्वर बनने पर क्यों उठे सवाल?

नई दिल्ली। अखाड़ा परिषद द्वारा 100 दलित-आदिवासी वर्ग के साधुओं को महामंडलेश्वर बनाने की बात सामने आने के बाद मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर के पुजारी और अखिल भारतीय पुजारी महासंघ ने आपत्ति की है। आरोप लगाया कि साधु का कोई जाति या वर्ण नहीं होता, उसके लिए सभी समान होते हैं। साधुओं में एससी/एसटी और दलित क्यों? दलित के नाम का जातिवाद होने लगेगा, तो देश में साधु संतों का जो मान सम्मान कम होगा या समाप्त होगा। अखिल भारतीय पुजारी महासंघ ने अखाड़ा परिषद को एक पत्र लिखा है, जिसकी प्रतिलिपि पीएम और सीएम को भी भेजी है।

द मूकनायक को महासंघ के अध्यक्ष महेश पुजारी ने बताया कि मीडिया के माध्यम से पता लगा कि अखाड़ा परिषद 100 दलित साधुओं को महामंडलेश्वर बनाएगा। प्रसन्नता हुई, लेकिन मन में चिंता और दुख भी हुआ क्योंकि यदि साधुओं में भी दलित के नाम का जातिवाद होने लगेगा, तो देश में साधु-संत का जो मान सम्मान है, वह कम होगा या समाप्त होगा।

महेश पुजारी ने बताया कि जब किसी भी वर्ग का व्यक्ति साधु बनता है, तो वह स्वयं का पिंडदान कर देता है। उसका अपना अस्तित्व नहीं होता है। उसकी कोई जाति या वर्ण नहीं होता। उसके लिए सभी समान होते हैं, तो फिर साधुओं में दलित क्यों? अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने कहा कि इस वर्ग को समाज की मुख्य धारा से जोड़ना जरूरी है।

उन्होंने यह भी कहा कि दलित महामंडलेश्वर बनाएंगे, तो यह भी स्पष्ट करें कि क्या नवनियुक्त महामंडलेश्वर के नाम के आगे दलित लिखेंगे, क्योंकि आपने तो राजनैतिक गणित प्रतिशत और विश्लेषण के साथ प्रेस में वक्तव्य दिया है। क्या आपके अखाड़ों में इस वर्ग के लोग नहीं हैं? आपको इसका पता लगाना चाहिए और अखाड़ों के जितने भी महामंडलेश्वर हे उनकी जातिगत आधार पर सूची हिंदू समाज के सामने प्रस्तुत करना चाहिए। सभी की अलग पहचान के लिए जो महामंडलेश्वर जिस समुदाय से आते हो, उनके नाम के आगे उपनाम में यह भी लिखे की यह ब्राह्मण हे ,क्षत्रिय हे ,वैश्य हे या दलित है।

"वर्तमान में हमारे उज्जैन के संत को भारत सरकार द्वारा राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया है। वह वाल्मीकि समुदाय से आते है। ऐसा भी पता चला हे की चारधाम के महामंडलेश्वर प्रजापत(कुम्हार) समाज से आते हैं ऐसे और भी कई संत है जो सभी समाजों से आते हैं।आपके संत समुदाय में तो पहले से ही समरसता हैं तो आज जातिवाद का नया बीजारोपण क्यों?" महेश पुजारी ने कहा।

महेश पुजारी ने अपील की है कि यह सनातन धर्म संस्कृति के लिए घातक हैं। 100 महामंडलेश्वर नियुक्त होने के बाद इनके द्वारा आपसे अखाड़ा परिषद अध्यक्ष पद की मांग की जाती हे तो क्या सामाजिक समरसता और समभाव के लिए आप अपने अध्यक्ष पद का त्याग करेंगे। जिस दिन सनातन धर्म में राजनैतिक हस्तक्षेप बंद हो जाएगा, उस दिन से सनातन धर्म की ध्वजा का परचम विश्व में लहराएगा। अखिल भारतीय पुजारी महासंघ निवेदन करता है कि साधु संतों में दलित का वर्गीकरण कर उनका अपमान नहीं कराए।

क्या था अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्रपुरी पुजारी का बयान ?

गुजरात के बाद अब महाराष्ट्र में एससी और एसटी वर्ग के चार महामंडलेश्वर बनाने की तैयारी चल रही है। अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरिगिर महाराज और रविंद्र पुरी महाराज ने गत 19 अप्रैल को गुजरात में एससी-एसटी वर्ग के चार महामंडलेश्वर का पट्टाभिषेक किया था।

इस अवसर पर जूना अखाड़े के रविंद्र पुरी महाराज ने देशभर में एससी-एसटी वर्ग के 100 महामंडलेश्वरबनाने की घोषणा की थी। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी महाराज ने कहा था कि यह तबका वर्षों से पिछड़ा है। इसे समाज की मुख्यधारा से जोड़ना जरूरी है। इसलिए बाधाओं को दूर कर इस दिशा में काम कर रहे हैं।

संतों का कहना है कि पुरानी सोच को बदलने की जरूरत है। 1300 साल बाद हिंदू समाज में जाति व्यवस्था से ऊपर उठकर समानता के लिए यह कदम उठाया गया है। इससे सामाजिक संतुलन समरसता का माहौल बनेगा।

क्या है हिंदू धर्म में महामंडलेश्वर बनने की अर्हता?

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी जी महाराज ने बताया कि महामंडलेश्वर का पद बड़ा ही जिम्मेदारी वाला है। महामंडलेश्वर बनने के लिए शास्त्री, आचार्य होना जरूरी है, जिसने वेदांत की शिक्षा हासिल कर रखी हो। अगर ऐसी डिग्री न हो तो व्यक्ति कथावाचक हो। उसके वहां मठ होना अति आवश्यक है। मठ में जनकल्याण के लिए सुविधाओं का भी अवलोकन किया जाता है। देखा जाता है कि वहां पर ब्राह्मणों के लिए विद्यालय, मंदिर, गौशाला अन्य सभी होना है या नहीं. यह सब देखने के बाद महामंडलेश्वर पद के लिए किसी का चयन होता है।

महामंडलेश्वर का ज़ब पूरी तरह चयन हो जाता है, उसके बाद उन्हें संत की दीक्षा दी जाती है। महामंडलेश्वर का ज़ब पूरी तरह चयन हो जाता है, उसके बाद उन्हें संत की दीक्षा दी जाती है उनकों संन्यास दिया जाता है। संन्यास का अर्थ कोई आसान नहीं होता है. इसका मतलब उनका पिंडदान उन्हीं के द्वारा कराया जाता है। उनके पूर्वजों का भी पिंडदान इसी में शामिल रहता है। उसके बाद उनकी शिखा (चोटी) रखी जाती है। फिर ज़ब भी वह अखाड़े मे जाएंगे, तब वहां उनकी यह शिखा भी काट दी जाती है। उसके बाद उन्हें दीक्षा दी जाती है। इसके बाद पट्टाभिषेक होता है। पट्टाभिषेक पूजन बड़ी ही विधि से संपन्न होता है। अखाड़े में दूध, घी, शहद, दही, शक्कर से बने पंचामृत से पट्टाभिषेक किया जाता है। अखाड़े की ओर से चादर भेंट की जाती है। 13 अखाड़ों के संत, महंत समाज के लोग पट्टा पहनाकर स्वागत करते हैं।

कुम्भ मेले में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आस्था कि डुबकी लगाने आते हैं। सभी साधु, संत, और महामंडलेश्वर इसमें शामिल होते हैं। महामंडलेश्वर स्नान के दिन चांदी की पालकी में बैठकर राजा स्वरूप निकलते हैं। महामंडलेश्वर के अनुयायी जयकारे लगाते हैं. साथ ही नागा साधुओं का विशाल सैलाब महामंडलेश्वर की सुरक्षा में चलता है।

महामंडलेश्वर के काम

  • सनातन धर्म का प्रचार देश के कोने कोने में करना।

  • अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाना।

  • भटके लोगों को मानवता की सही राह दिखाना।

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