भोपाल। संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की 10 फीट ऊंची प्रतिमा को लेकर ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में विवाद गहराता जा रहा है। मामला अब केवल दो वकील गुटों की वैचारिक असहमति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि धीरे-धीरे जातीय तनाव का रूप लेता जा रहा है, जिसमें भीम सेना और आजाद समाज पार्टी जैसे बहुजन संगठन भी सड़कों पर हैं। प्रशासन के लिए यह मामला अब कानून-व्यवस्था की बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।
विवाद की शुरुआत कहां से हुई?
19 फरवरी 2025 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत ग्वालियर दौरे पर आए थे। इसी दौरान एडवोकेट विश्वजीत रतोनिया, धर्मेंद्र कुशवाह और राय सिंह ने उनसे एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा लगाने की मांग की गई थी। मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक सहमति दी और इसके आधार पर पीडब्ल्यूडी विभाग ने मूर्ति स्थापना के लिए फाउंडेशन भी तैयार कर दिया।
इसके बाद वकीलों के एक गुट ने जनसहयोग से मूर्ति बनवाई, जिसकी लंबाई 10 फीट है और फिलहाल उसे मूर्तिकार प्रभात राय के स्टूडियो में सुरक्षा के साथ रखा गया है।
बार एसोसिएशन का विरोध
जब मूर्ति का फाउंडेशन तैयार हुआ तो बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और सचिव को इसकी जानकारी नहीं थी। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया, न ही बिल्डिंग कमेटी से सहमति ली गई। उन्होंने 10 मई को जाकर उस स्ट्रक्चर पर तिरंगा झंडा लगा दिया।
बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पवन पाठक ने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का हवाला देते हुए कहा कि– "न्यायालय परिसर में किसी भी महापुरुष की प्रतिमा लगाना न्यायालय की गरिमा के विरुद्ध है। न्याय केवल तिरंगे के अधीन होना चाहिए, न कि किसी व्यक्ति विशेष के।"
इसके बाद 26 मार्च 2025 को प्रिंसिपल रजिस्ट्रार ने एक आदेश जारी किया। इसमें बताया गया कि कमेटी के 5 में से 3 सदस्यों ने प्रतिमा स्थापना को कुछ समय के लिए टालने का सुझाव दिया, जबकि 2 सदस्यों ने स्थापना का समर्थन किया।
आदेश के अंत में यह भी कहा गया कि– "चूंकि प्रतिमा बनकर तैयार हो चुकी है और इसके लिए भुगतान हो चुका है, अतः इसे स्थापित किया जा सकता है।"
जहां एक ओर यह विवाद वैचारिक असहमति के रूप में शुरू हुआ था, वहीं अब यह एक जातीय टकराव का रूप ले चुका है। सोशल मीडिया से लेकर गली-मोहल्लों तक में चर्चा हो रही है। भीम सेना और आजाद समाज पार्टी जैसे संगठन खुलकर मैदान में आ गए हैं। भीम सेना ने 29 जून को 'भीमराव अग्निपथ महासभा' बुलाई है और आजाद समाज पार्टी ने 11 जुलाई को 'अंबेडकर महापंचायत' का ऐलान किया है।
आजाद समाज पार्टी के नेता राजिंदर सिंह भाटी ने कहा– "प्रतिमा वहीं लगेगी, जहां उसकी योजना बनी है। इसे रोकना बहुजन समाज का अपमान है।"
सुरक्षा के कड़े इंतजाम
डॉ. अंबेडकर की बनी हुई प्रतिमा फिलहाल प्रभात राय के स्टूडियो में है। मूर्ति की सुरक्षा के लिए, एक सब इंस्पेक्टर सहित 8 पुलिसकर्मी 24 घंटे ड्यूटी पर हैं। एक दर्जन से अधिक CCTV कैमरे लगाए गए हैं। मूर्ति वाले क्षेत्र में किसी को आने-जाने की अनुमति नहीं है।
प्रदर्शन पर रोक
जिला कलेक्टर रुचिका चौहान और एसएसपी धर्मवीर सिंह ने किसी भी संभावित अशांति को रोकने के लिए कई उपाय किए हैं, जिला प्रशासन द्वारा सोशल मीडिया पर भड़काऊ बयानबाजी और वीडियो पर नजर रखी जा रही है। प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी जा रही है, चाहे वह स्थानीय हो या बाहरी संगठन का। भीम सेना और आजाद समाज पार्टी जैसे संगठनों को जिले की सीमा पर ही रोका जा रहा है।
सांसद से लेकर केंद्रीय मंत्री तक पहुंचे वकील
मूर्ति स्थापना के पक्षधर वकीलों ने 31 मई को ग्वालियर सांसद भारत सिंह कुशवाह को ज्ञापन सौंपा है। उनकी मांग है कि केंद्रीय कानून मंत्री इस विवाद में हस्तक्षेप कर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा को स्थापित कराएं।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन कहती है कि–"न्यायालय परिसर को निष्पक्ष और व्यक्ति-मुक्त रखना आवश्यक है। किसी महापुरुष की प्रतिमा लगाने से न्याय के प्रतीकात्मक स्वरूप को ठेस पहुंच सकती है।"
हालांकि, इसके अपवाद भी रहे हैं – जैसे कई न्यायालय परिसरों में महात्मा गांधी या सरदार पटेल की प्रतिमाएं स्थापित हैं। ऐसे में बहुजन समाज सवाल कर रहा है कि जब अन्य महापुरुषों की प्रतिमाएं लग सकती हैं, तो संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर की क्यों नहीं?
द मूकनायक से बातचीत करते हुए भीम आर्मी प्रदेश अध्यक्ष सुनील बैरसिया ने कहा, "ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा लगाने का मुद्दा सिर्फ एक मूर्ति लगाने का नहीं है, ये न्याय, सम्मान और पहचान का सवाल है। बाबा साहब इस देश के संविधान निर्माता रहे हैं, देश के पहले कानून मंत्री रहे हैं और उन्होंने हमें सामाजिक न्याय का सिद्धांत दिया। आज कुछ लोग, जो सामाजिक न्याय के खिलाफ हैं, वो बाबा साहब की मूर्ति से डरते हैं। ये डर दिखाता है कि उनके विचार आज भी कितना प्रभावशाली हैं। हम मांग करते हैं कि हाईकोर्ट परिसर में उनकी प्रतिमा तुरंत लगाई जाए।"
ग्वालियर हाईकोर्ट के अधिवक्ता धर्मेंद्र कुशवाहा ने 'द मूकनायक' से बातचीत में कहा, “बाबा साहेब केवल दलितों के नहीं, पूरे देश के प्रेरणा स्रोत हैं। उनका योगदान भारतीय संविधान, लोकतंत्र और न्याय प्रणाली में अमूल्य है। उनकी प्रतिमा लगना न्यायपालिका की गरिमा को बढ़ाएगा।”
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब सुप्रीम कोर्ट और जबलपुर हाईकोर्ट में अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित की जा सकती है, तो ग्वालियर बेंच में क्यों नहीं? उन्होंने बार एसोसिएशन के विरोध को संविधान और सामाजिक न्याय की भावना के खिलाफ बताया।