+

प्रो साईंबाबा और फिलिस्तीनी बच्चों को समर्पित उदयपुर फिल्म फेस्टिवल पर हुआ बवाल, आयोजक ने बताया ऑडिटोरियम छोड़कर क्यों गोशाला में करनी पड़ी स्क्रीनिंग?

उदयपुर: प्रो जीएन साईंबाबा और फिलिस्तीन में मारे गए बच्चों को समर्पित नौवें उदयपुर फिल्म फेस्टिवल को लेकर विवाद मच गया है . हिंदूवादी समूह के तीखे विरोध और प्रशासन की निष्क्रियता के चलते आयोजन को तीसरे दिन रविवार को RNT मेडिकल कॉलेज के ऑडिटोरियम से हटाकर एक अस्थायी गोशाला में आयोजित करना पड़ा। आयोजकों ने पूरे घटनाक्रम को लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला करार दिया है और कहा कि इस पर मीडिया से रूबरू होने और कानूनी कार्रवाई पर विचार कर रहे हैं।

तीन दिवसीय फेस्टिवल का आयोजन रवींद्रनाथ टैगोर मेडिकल कॉलेज (आरएनटी) ऑडिटोरियम में 15 से 17 नवंबर तक किया जा रहा था। पहले दिन 180 लोगों ने पंजीकरण कराया और दिनभर फिल्मों का प्रदर्शन सफल रहा। लेकिन दूसरे दिन, शनिवार को, कुछ हिंदूवादी समूह ने फेस्टिवल पर "जिहादी और माओवादी विचारधारा के प्रचार" का आरोप लगाते हुए विरोध शुरू कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने आयोजकों पर देश-विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया और धमकी दी कि उनके खिलाफ गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत FIR दर्ज किया जाएगा।

इस मामले में द मूकनायक ने आयोजक समिति की सदस्य रिंकू परिहार से विस्तृत बात की. रिंकू ने बताया कि हम तीन महीने से फेस्टिवल के आयोजन की तैयारी कर रहे थे, मेडिकल कालेज का ऑडिटोरियम बुक करके उन्हें तय फीस 30 हजार रूपये का भुगतान भी कर दिया था, आयोजन का ब्रोशर भी सार्वजनिक था, हमने इस बार का फिल्म फेस्टिवल प्रो जीएन साईबाबा और फिलिस्तीन में मारे गए बच्चों को समर्पित होने की जानकारी भी शेयर की थी. शनिवार को आधे दिन बाद कुछ प्रदर्शनकारियों ने कॉलेज के प्राचार्य डॉ. विपिन माथुर से मुलाकात की और फेस्टिवल को रोकने की मांग की। रिंकू ने बताया की प्राचार्य के रूम में मीटिंग हुई जिसमें हमसे सवाल पूछे गए कि भारत में भी बच्चे मर रहे हैं, इस्ज्रायल में भी मर रहे हैं तो केवाल फिलिस्तीनी बच्चों को क्यूँ समर्पित किया जा रहा है? उन्होने साईंबाबा जिनपर बम बनाने के आरोप थे, को लेकर भी आपत्ति की.

रिंकू ने कहा ,"हमने समझाने की कोशिश की कि फिलिस्तीन में मारे गए हजारों बच्चों और साईंबाबा, जिन्हें उनकी मृत्यु से पहले सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था, के प्रति एकजुटता दिखाना देश-विरोधी आचरण नहीं है। लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। प्राचार्य ने स्पष्ट कर दिया कि वे फेस्टिवल जारी रखने में हमारा समर्थन नहीं कर सकते।"

रिंकू ने कहा, " हमने विरोध करने वालों की बात पर सहमति जाहिर करते हुए कहा कि हम किसी भी नरसंहार का समर्थन नहीं करते तो अपने बैनर में यह सुधार करवा देंगे, और जब हम इसकी व्यवस्था कर रहे थे तो दुबारा मुझे प्राचार्य के कक्ष में आने को कहा गया जहां 8-10 लोगों ने और भी कई सवाल जवाब किये. उन्होंने अपने मोबाइल पर लिखे एक मेसेज को पढ़कर उसके अनुसार एक वीडियो जारी कर देश से क्षमा याचना करने की मांग की।"

आयोजकों को बोला गया कि मोबाइल पर लिखे एक मेसेज को पढ़कर उसके अनुसार एक वीडियो जारी कर देश से क्षमा याचना करें.
विरोध के बाद रविवार को गोशाला में टेंट लगाकार दर्शकों को फिल्में दिखाई गई.

जिलाधिकारी ने भी नहीं किया हस्तक्षेप

रिंकू कहती हैं कि प्राचार्य ने बिना कलेक्टर के परमिशन लिए आयोजन के लिए इनकार कर दिया तो आयोजकों ने रात 8 बजे जिलाधिकारी अरविंद पोसवाल से मुलाकात की, लेकिन उन्होंने भी हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। रिंकू ने बताया कि न तो जिलाधिकारी और न ही प्राचार्य ने यह स्पष्ट किया कि फेस्टिवल को मूल स्थान पर जारी रखने से क्यों रोका गया।

रिंकू ने कहा,"कलेक्टर ने यहां तक कह दिया कि आप ऐसे आयोजन क्यों करते हैं जहां विवाद पैदा होता है। हमने लिखित अनुरोध भी दिया, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की।" वैकल्पिक जगह देने के अनुरोध पर भी उन्होने कोई एक्शन नहीं लिया और कहा कि वे इस मामले में कुछ नहीं कर सकते हैं. रिंकू कहती हैं कि मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य ने कलेक्टर पर बात टाल दी और कलेक्टर ने मेडिकल कॉलेज पर बात डाली.

आखिरकार, आयोजकों ने एक खाली जगह ढूंढी, जहां पहले मवेशी बांधे जाते थे। गोशाला को साफ कर वहां टेंट लगाया गया, और तीसरे दिन का आयोजन वहीं किया गया। लेकिन विरोध और व्यवधान के डर के कारण दर्शकों की संख्या बेहद कम रही। पहले दिन जहां सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक स्क्रीन की गई फिल्मों को अपनी रुचि के अनुसार देखने वालों की संख्या करीब 180 थी वहीं दूसरे दिन 137 रजिस्ट्रेशन हुए थे. तीसरे दिन स्थान बदलने के कारण लोगों को जानकरी नहीं मिल सकी और 50-60 जनों की ही भागीदारी रही.

रिंकू ने कहा, "यह बेहद निराशाजनक है कि प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से भागता है और शरारती तत्वों के दबाव में झुक जाता है। लोगों को अर्थपूर्ण सिनेमा दिखाने और समाज के महत्वपूर्ण इश्यूज पर सोचने के लिए प्रेरित करने वाले ऐसे आयोजन का विरोध करना और प्रदर्शनकारियों का समर्थन दोनों ही गलत है, हम लीगल कारवाई पर विचार कर रहे हैं ।"

इस मामले में द मूकनायक ने उदयपुर कलेक्टर अरविंद पोसवाल से उनका पक्ष जानने के लिए उनसे संपर्क का प्रयास किया, जिलाधिकारी से जवाब प्राप्त होने की स्थिति में खबर अपडेट की जायेगी.

फेस्टिवल में शामिल होने के लिए किसी भी तरह के निमंत्रण या प्रवेश टिकट नहीं था।

भगवा चाय है क्या ?

कार्यक्रम कन्वीनर रिंकू ने बताया कि आयोजन स्थल पर प्रदर्शनकारियों का रवैया और लहजा व्यंगात्मक और आक्रमक था. रिंकू ने कहा, " उन्होंने बुक स्टाल पर बाबा साहब आंबेडकर पर कुछ पाठ्य सामग्री को देख कर कहा ' इस तरह' की किताबें क्यूँ रखते हो. इसके अलावा फेस्टिवल में एक मूवी " जाति- आखिर क्यों" पर भी सवाल उठाये. मैंने उन्हें फिल्म देखने का अनुरोध किया तो बोले हम जाति नहीं मानते लेकिन ऐसी मूवी नहीं देखते. जब उन्हें हमने चाय ऑफर की तो वे बोले- भगवा चाय है क्या? हम वही पीते हैं" .

इस मुद्दे को लेकर PUCL द्वारा भी उदयपुर जिला प्रशासन से दखल की मांग की थी लेकिन प्रशासन की चुप्पी के बाद आयोजन स्थल ही बदलना पड़ा. दलित और मानव अधिकार कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने इस मसले पर अपनी राय रखते हुए कहा, " सांप्रदायिक तत्वों ने उदयपुर फ़िल्म फ़ेस्टिवल का विरोध करते हुए 'हद अनहद' फ़िल्म की स्क्रीनिंग रुकवा दी और आरएनटी मेडिकल कालेज प्रशासन ने भी फ़ेस्टिवल को तुरंत रोकने के लिये कहा,सभागार के बाहर विरोध प्रदर्शन किया गया,जिसके चलते फ़ेस्टिवल बाधित हुआ और दूसरी जगह कार्यक्रम करना पड़ा.यह अभिव्यक्ति की आज़ादी पर कुठाराघात है,यह फ़ासिस्ट ताक़तों का निंदनीय कृत्य है."

क्या था उदयपुर फेस्टिवल का उद्देश्य?

नौवें उदयपुर फ़िल्म फेस्टिवल में कुल 7 कथा फ़िल्मों , 1 प्रयोगात्मक फ़िल्म और 16 दस्तावेज़ी फिल्मों का प्रदर्शन निर्धारित था। पांच फिल्में फिलिस्तीन पर आधारित थीं। इसके अलावा, जाति व्यवस्था और सामाजिक न्याय जैसे विषयों पर बनी फिल्में भी शामिल थीं। आयोजकों ने स्पष्ट किया कि यह फेस्टिवल "सिनेमा ऑफ रेसिस्टेंस" का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य सामाजिक मुद्दों पर संवाद को बढ़ावा देना है।

फेस्टिवल में सिनेमा इन स्कूल अभियान की विशेष प्रस्तुति के बतौर थारू आदिवासियों के जीवन से सम्बंधित दस्तावेज़ी फिल्म 'थारू ईको वीव्स' का प्रदर्शन हुआ जिसका निर्माण उत्तराखंड की तराई में स्थित नानकमत्ता पब्लिक स्कूल के थारू विद्यार्थियों ने किया है।

फेस्टिवल का एक आकर्षण फ़िलिस्तीनी फिल्मों के पैकेज था जिसका क्यूरेशन जयपुर में ओरलिटीज़ संस्था के संचालक विनीत अग्रवाल ने किया है।

फ़िल्म समारोह में राजस्थान के 14 युवा फ़िल्मकारो के अलावा अहमदाबाद, राँची, कुर्दुला , भोपाल आदि जगहों से प्रतिभागी शामिल थे।

हर बार की तरह इस बार भी नवारुण प्रकाशन के स्टाल पर विभिन्न विषयों की किताबें और कविता पोस्टर बिक्री के लिए उपलब्ध थे। फेस्टिवल में शामिल होने के लिए किसी भी तरह के निमंत्रण या प्रवेश टिकट नहीं था।

वर्ष 2015 में ' रोहित वेमुला' को समर्पित करने पर भी उदयपुर फिल्म फेस्टिवल का विरोध किया गया था.

facebook twitter